इस तरह था भय्यूजी महाराज का जीवन सफर, देखिए तस्वीरें | Bhaiyyuji Maharaj :

इस तरह था भय्यूजी महाराज का जीवन सफर, देखिए तस्वीरें

इस तरह था भय्यूजी महाराज का जीवन सफर, देखिए तस्वीरें

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:40 PM IST, Published Date : June 12, 2018/10:33 am IST

इंदौर। खुद को गोली मारकर खुदकुशी करने वाले संत भैय्यूजी महाराज का असली नाम उदय सिंह देशमुख था। अप्रैल 2017 में 49 वर्ष की आयु में भय्यूजी महाराज ने दूसरी शादी की थी। उन्‍होंने ग्वालियर की डॉक्‍टर आयुषी के साथ सात फेरे लिए थे।

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भय्यू महाराज की पहली पत्नी माधवी का नवंबर 2015 में निधन हो गया था। पहली शादी से उनकी एक बेटी कुहू है, जो पुणे में स्टडी कर रही है। दूसरे विवाह से पहले भय्यूजी महाराज सार्वजनिक जीवन से संन्यास की घोषणा कर चुके थे, लेकिन अचानक उन्‍होंने शादी का फैसला लेकर सबको चौंका दिया था।

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वे गृहस्थ जीवन में रहते हुए संत-सी जिंदगी जीते थे। वे अक्सर ट्रैक सूट में भी नजर आते थे। वे खेतों को जोतते-बोते भी सुर्खियों में रहते थे, तो कभी क्रिकेट के शौकीन नजर आते थे। घुड़सवारी और तलवारबाजी में महारथ के अलावा कविताओं में भी उनकी दिलचस्पी थी। जवानी में उन्होंने सियाराम शूटिंग-शर्टिंग के लिए पोस्टर मॉडलिंग भी की थी।

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राजनीति में गहरी पैठ

29 अप्रैल 1968 में मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के शुजालपुर में जन्मे भय्यूजी के चहेतों के बीच धारणा है कि उन्हें भगवान दत्तात्रेय का आशीर्वाद हासिल है। महाराष्ट्र में उन्हें राष्ट्र संत का दर्जा मिला था। बताते हैं कि सूर्य की उपासना करने वाले भय्यूजी महाराज को घंटों जल समाधि करने का अनुभव था। राजनीतिक क्षेत्र में उनका खासा प्रभाव रहा। उनके ससुर महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं। दिवंगत केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख से उनके करीबी संबंध रहे। बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी से लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत भी उनके भक्तों की सूची में शामिल थे। महाराष्ट्र की राजनीति में उन्हें संकटमोचक के तौर पर देखा जाता था।

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सामाजिक कामों का बीड़ा

भय्यूजी महाराज पद, पुरस्कार, शिष्य और मठ के विरोधी रहे। उनके अनुसार देश से बड़ा कोई मठ नहीं होता है। व्यक्तिपूजा को वह अपराध की श्रेणी में रखते थे। उन्होंने महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और समाज सेवा के बडे़ काम किए। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पंडारपुर में रहने वाली वेश्याओं के 51 बच्चों को उन्होंने पिता के रूप में अपना नाम दिया। यही नहीं बुलढाना जिले के खामगांव में उन्होंने आदिवासियों के बीच 700 बच्चों का आवासीय स्कूल बनवाया। इस स्कूल की स्थापना से पहले जब वह पार्धी जनजाति के लोगों के बीच गए, तो उन्हें पत्थरों से मार कर भगा दिया गया। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आखिर में उनका भरोसा जीत लिया। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में उनके कई आश्रम हैं।

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शिक्षा का उजाला

भय्यूजी महाराज ग्लोबल वॉर्मिंग से भी चिंतित रहते थे, इसीलिए गुरु दक्षिणा के नाम पर एक पेड़ लगवाते थे। अब तक 18 लाख पेड़ उन्होंने लगवाए। आदिवासी जिलों देवास और धार में उन्होंने करीब एक हजार तालाब खुदवाए। वह नारियल, शॉल, फूलमाला भी नहीं स्वीकार करते थे। वह अपने शिष्यों से कहते थे कि फूलमाला और नारियल में पैसा बर्बाद करने की बजाय उस पैसे को शिक्षा में लगाया जाना चाहिए। ऐसे ही पैसे से उनका ट्रस्ट करीब 10 हजार बच्चों को स्कॉलरशिप देता है।

वेब डेस्क, IBC24