जन्मदिन : आज़ादी के बाद ऐसा भारत चाहते थे 'शहीद भगत सिंह' | Birthday: Shaheed De Azam Bhagat Singh

जन्मदिन : आज़ादी के बाद ऐसा भारत चाहते थे ‘शहीद भगत सिंह’

जन्मदिन : आज़ादी के बाद ऐसा भारत चाहते थे 'शहीद भगत सिंह'

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:10 PM IST, Published Date : September 28, 2017/6:22 am IST

 

28 सितंबर 1907, इसी दिन मां भारती की गोद उस अमनोल रत्न से शोभित हुई थी जिसने गुलामी की बेड़ियां तोड़ने के लिए आजादी को दुल्हन और मौत को अपनी महबूबा माना जिन्हे हम शहीदे आज़म भगत सिंह के नाम से जानते है। आज भारत मां के उसी वीर सपूत का जन्मदिन है इस मौके आजादी के लिए उनकी दिवानगी को याद कर हम उन्हे श्रद्धा सुमन अर्पित करने की कोशिश कर रहे है। 

जीवन परिचय

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को संयुक्त भारत के पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले के एक छोटे से गांव बंगा में हुआ। सरदार किशन सिंह के यहां जनमें भगत सिंह के बारे में कहा जाता है की वे बचपम में बहुत शरारती हुआ करते है और उनकी शरारतों से उनके परिवार वाले परेशान हो जाया करते थे। लेकिन भगत का बचपन ज्याद दिन तक उनके साथ नहीं रहा, महज 12 वर्ष की आयु में उन्होने वह सब देखा जिसने उन्हे आजादी और अपने देश के लिए मर मिटने के लिए प्रेरित कर दिया। जलियाॅंवाला बाग में हुए नरसंहार ने कच्ची उम्र के उस बच्चे के जीवन पर ऐसी गहरी छाप छोड़ी, जिसने आगे चलकर देश आजादी के लिए मील के पत्थर का काम किया। महज 13 वर्ष की आयु में वे एक क्रान्तिकारी समूह से जुड़ गए। 

आपको यह जानकर हैरानी होगी की जब परिजनों ने भगत की शादी करनी चाही तो वे घर छोड़कर भाग गए। अपने पीछे जो खत छोड़ा उसमें उन्होंने लिखा कि “मैं अपना जीवन देश को आजाद कराने के महान काम के लिए समर्पित कर चुका हूं। इसलिए गृहस्थी और ऐशो-आराम मुझे आपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकता”। 

आजादी के लिए संघर्ष

स्वतंत्रता के लिए भगत सिंह के संघर्ष की कहानी अद्भुत और चैकाने वाली है। यह वह दौर था जब देशभर में महात्मा गांधी की आगुवाई में असहयोग आंदोलन की शुरूआत हुई। महज 13 वर्ष के बालक भगत ने इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। जवानी में पैर रखने के साथ ही भगत ने भारत की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा नाम के एक संगठन की स्थापना की और बड़ी संख्या में नौजवान साथियों को इसमे जोड़ा। लेकिन चन्द्रशेखर आजाद के मुलाकात के बाद वे आजाद की पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन से जुड़ गए। बाद में इस संगठन का नाम बदलकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया गया। संठगन का सिर्फ एक ही धैय था ऐसे नौजवान तैयार करना जो देश की आजादी के लिए सेवा, त्याग के पीड़ा झेल सकने के काबिल हो।

इनकलाब जिंदाबाद के नारों के साथ असेंबली में बम धमाके

आपनी छोटी-छोटी कोशिशों से बहरी अंग्रेज सरकार को जगता नहीं देख, भगत ने आपने साथियों के साथ असेंबली में बम धमाके करने की योजना बनाई। इसी के साथ यह सुनिश्चित किया गया की बम सिर्फ और सिर्फ आजादी की गूंज अंग्रेजी शासन के कानों तक पहुंचाने के लिए फेंका जाएगा, किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं। जिसके बाद 1929 को बटुकेश्वर दत्त और भगत ने इनकलाब के नारों के साथ असेंबली में बम धमाके किए, जिसमें किसी को मौत नहीं हुई। बम फेंकने के बाद भगत वहां से भाग सकते थे लेकिन देश के उन लाखों करोड़ लोगों तक यह संदेश पहुंचाने के लिए कि देश को बलिदान चाहिए और उसके लिए सभी को आगे आना होगा, उन्होंने अपनी गिरफ्तारी दी। जेल में बंद रहने के दौरान भगत सिंह ने कई शायरी व कविताओं की रचना जो आजादी के लिए उनकी दिवानगी की कहानी कहती है। गिरफ्तारी के दो सालों तक अंग्रेजी शासन ने भगत और उनके साथियों पर मुकदमा चलाया जिसके बाद अंग्रेजों ने 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में भगत सिंह को उनके अन्य साथियों के साथ फांसी दे दी। आज हम आजाद भारत के तौर पर 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाते है। 

आजाद भारत से क्या चाहते थे भगत सिंह….

आजादी के उस दिवाने का सपना एक ऐसा मुल्क बनाने का था जहां किसी व्यक्ति में अमीरी-गरीबी का फर्क न किया जा सके। एक आजाद,सामर्थ्यवान  और सक्षम भारत का सपना लिए उस वीर जनाव ने अपने प्राण हमारे लिए आजादी अर्जित करने में खपा दिए अब हमारे उपर है हम कैसे इस आजादी को सार्थक करें जिससे उन महान आत्मा को शांति मिल सके। अमन वर्मा, वेब डेस्क, आईबीसी24

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