ये रामायण है...पुण्य कथा श्रीराम की | Blog by sourabh tiwari on Ramayana TV serial

ये रामायण है…पुण्य कथा श्रीराम की

ये रामायण है...पुण्य कथा श्रीराम की

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 06:36 PM IST, Published Date : April 18, 2020/7:45 am IST

भतीजे कौस्तुभ ने फोन करके पूछा- बड़े पापा! रावण के सिंहासन के सामने किसकी लेटी हुई मूर्ति है, जिस पर वो पैर रखकर बैठता है? मूर्ति शनिदेव की है या यमराज की, इसे लेकर मुझे संशय था। मुझे याद पड़ा कि रावण की इंट्री वाले एपिसोड में फिल्माए गए अभिनंदन गीत में रविंद्र जैन ने मूर्ति का उल्लेख किया है। वो गीत यू ट्यूब में देखा। गीत के अंतरा में आता है- नवगृह चाकर तोरे, खड़े रहे कर जोड़े। शनि को भी तले दबाया, यम को भी लटकाया…। कन्फर्म होने के बाद जब तक भतीजे को फोन करता, उसका ही फोन आ गया। ‘बड़े पापा! मालूम पड़ गया, वे शनिदेव हैं। हमने इंटरनेट से पता कर लिया।‘ ये बताते हुए उसकी प्रसन्नता सुनते ही बनती थी।

घर-घर की यही कहानी है। हर घर में ऐसे ना जाने कितने सवाल बच्चों की ओर से पूछे जा रहे हैं। कुछ सवाल में बालसुलभ जिज्ञासा छिपी होती है, तो कुछ में नीतिगत विमर्श। ‘राम-लक्ष्मण वनवास में शेविंग कैसे करते थे’- जैसे मासूम सवाल से लेकर ‘राम ने आखिर बाली को छिपकर क्यों मारा’ जैसे गंभीर प्रश्न।

‘रामायण’ ने एक बार फिर कमाल कर दिया है। रामायण तीन पीढ़ियों के बीच संवेदनात्मक सेतु बनकर आया है। जिस रामायण को कभी मेरी पीढ़ी के लोगों ने जिन बड़े-बुजुर्गों के साथ बैठकर देखा था, आज वो अपने पोते-पोतियों के साथ देख रहे हैं, उस पर चर्चा कर रहे हैं। कुछ भी तो नहीं बदला है, इन 33 सालों में। तकनीकी तौर पर पीढ़ी कहां से कहां पहुंच गई, लेकिन रामायण को लेकर भावबोध वही पुराना है। आज के बच्चों को भी 9 बजने की उतनी ही प्रतीक्षा रहती है, जितनी 33 साल पहले हमें। ये देखना वाकई काफी रोचक है कि एक तरफ आज की पीढ़ी रामायण के तब के फिल्मांकन के तौर तरीके का मजाक उड़ाकर हंसी-ठिठोली करती है और दूसरी तरफ उसे चाव से देख भी रही है।

लॉक डाउन में जब रामायण के पुनर्प्रसारण की घोषणा हुई तो किसी को ये भान नहीं था कि ये आज की पीढ़ी को भी उतना ही पसंद आएगा। कहां एडवांस टेक्नालॉजी में विस्मृतकारी विजुवल इफेक्ट के साथ फिल्माई जाने वाली फिल्मों की शौकीन हाईटेक नई पीढ़ी और कहां गुजरे जमाने की टेक्नालॉजी पर बनी रामायण। वर्तमान टेक्नालॉजी के आनुपातिक लिहाज से बिल्कुल कस्बाई रामलीलानुमा फिल्मांकन। लेकिन रामानंद सागर कृत रामायण की सर्वकालिक स्वीकार्यता ने सिद्ध कर दिया कि इसकी प्रसिद्धि के मूल में सिनेमाई शिल्प की बजाए अंतर्निहित भाव की संप्रेषणीयता समाहित है। भव्यता पर भावना भारी पड़ी है। वरना रामायण पर बने दूसरे भव्य सीरियल्स को भी रामानंद सागर जैसा दुलार भला क्यों नसीब नहीं होता?

ये भावना ही है जिसने रामानंद जी की रामायण की लोकप्रियता को कालातीत बना दिया। यही वजह रही कि मौजूदा सिनेमायी टेक्नालॉजी और पैरामीटर के लिहाज से उनकी औसत स्तर की प्रस्तुति आज की पीढ़ी के साथ भी आत्मीय तादात्म स्थापित कर सकी। कुछ तो ऐसा है इस रामायण में जिसके प्रसंगों में समाए भाव अश्रुगंगा बनकर चेतना का प्रक्षालन करने को उमड़ पड़ते हैं।

दरअसल रामानंद जी की खूबी ये रही कि वे रामायण में निहित पारिवारिक-सामाजिक नीति निर्देशिका के मर्म को पकड़ सके। भारतीय जनमानस में ‘सीताराम चरित अति पावन, मधुर, सरस अरु अति मनभावन’ की मान्यता को उन्होंने वाकई अपने काम से चरित्रार्थ कर दिखाया। रामानंद जी रामायण की इस पावनता, मधुरता और सरसता को बरकरार रख पाने में सफल रहे तभी तो उनकी कृति मनभावन बन पाई। इस खूबी के आगे प्रस्तुति के तौर पर बरती गई बाकी सारी सिनेमाई खामियां गौण साबित हुई। पुनि-पुनि कितनेहू सुने सुनाए, हिय की प्यास बुझत ना बुझाए।

 

सौरभ तिवारी

डिप्टी एडिटर, IBC24