कोविड-19 महामारी: उठते भरोसे और गिरते बाज़ार के बीच लाभ के गणित से फँसी साँसे | blog on coronavirus effect of market and recession by manoj trivedi

कोविड-19 महामारी: उठते भरोसे और गिरते बाज़ार के बीच लाभ के गणित से फँसी साँसे

कोविड-19 महामारी: उठते भरोसे और गिरते बाज़ार के बीच लाभ के गणित से फँसी साँसे

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:36 PM IST, Published Date : August 11, 2020/7:31 am IST

कोविड-19 पूरे विश्व को झिंझोड़ कर रख दिया है। विज्ञान की सदी में विज्ञान ने ही मानो हाँथ खड़े कर दिए है। ये बात अलग है कि मंगल ग्रह में प्लॉट का सपना तो आप हक़ीक़त में बदलते देख सकते है,लेकिन कोविड-19 जैसी महामारी से बचाव की वैक्सीन तो छोड़िए माकूल ईलाज क्या है इस पर भी द्वन्द है ।

इन सब झंझावातों से गुजरता आम आदमी सवाल किस से पूछे कि N-95 मास्क अब क्यों काम का नही रहा, कभी हायड्राक्सी क्लोरोक्विन बड़ी कारगर दवा मानी गई अब रेमडिसिविर है.? कभी बांग्लादेश के चिकित्सकों के प्रयोग से आशा जगाई गई कि इलाज महँगा नही काफ़ी सस्ता है ! कभी ये कहा गया कि सिर्फ़ विटामिन सी, ज़िंक और केवल पैरासीटामॉल से मरीज़ ठीक हो रहे है,कभी गर्म पानी, भाँप कारगर मानी गई ! फिर रामदेव की कोरोंनिल आ गई, इन सबके बीच भरी गर्मी में काढ़े, गिलोय, तुलसी के नियमित प्रयोग भी चलन में रहा ।

दवा की दुकानो में सैनीटाईज़र का सेन्सेक्स की तरह ऊपर नीचे होते मूल्य से क्या आम आदमी कम परेशान था,जो ये कहा जाने लगा कि सैनीटाईज़र के ज़्यादा इस्तेमाल से त्वचा सम्बन्धी बीमारियों का ख़तरा है,साबुन से से हाँथ धोना सबसे कारगर माना गया लेकिन हर जगह तो लोटा-बाल्टी और पानी रख पाना तो संभव नही होता ना ।
नित नए प्रयोग पुराने क्रम को ख़ारिज कर देते है। वैश्विक महामारी ने बीमारी से तो हज़ारों जान ली लेकिन इसने स्थापित संस्थाओ- सरकारों पर भरोसे को भी तोड़ कर रख दिया है ।पढ़ा लिखा इंसान भी दावे के साथ कुछ नही कह पा रहा है, ट्रायल एंड एरर के साथ विज्ञान के युग में जीना बड़ा अवैज्ञानिक बना दिया है।
कई देशों में कोविड-19 की वैक्सीन पर काम हो रहा है। WHO कहता है कि 2021 के उत्तरार्ध में या अंत में ही वैक्सीन उपलब्ध होगी इसके पहले संभव नही। रुस दूसरे चरण के ट्रायल के बाद वैक्सीन रूसी बाज़ार में ले आएगा, कई लोगों को तो ये कहते भी सुना गया कि हो सकता है 15 अगस्त के दिन लाल क़िले की प्राचीर से प्रधानमंत्री वैक्सीन की घोषणा ना कर दें। सूचना और समाचारों के सभी माध्यम, या तो चीन को डरा रहे है या पाकिस्तान को राफ़ेल दिखा कर चिढ़ा रहे है शेष समय कोरोना के बढ़ते मामले से डराने के अलावा ।

बढ़ती बीमारी से अर्थव्यवस्था में गिरावट  होने लगी, लाभ के गणित से प्रकृति के सवाल हल करती दुनिया में मानवता को सबसे ज़्यादा नुक़सान पहुँचाया है, और शायद यही बड़ा कारण है कि मानवता अब सीमाओं में सिकुड़ने लगी जिस देश के पास संसाधन ज़्यादा उसकी दादागिरी चलेगी और वही डिक्टेट करेगा कि सही क्या है और ग़लत क्या । और मानवसेवा- राष्ट्रसेवा के नाम पर तमाम कारगुज़ारियाँ अपनी स्वीकृति  पर मुहर लगा लेंगी, तभी तो WHO ने कड़े शब्दों में चीन से ये कभी नही कहा कि आपने कोविड-19 के ख़तरनाक प्रकोप को समय रहते शेष विश्व को क्यों नहीं बताया, दूसरी बड़ी आबादी के हिंदुस्तान में कौन सरकार को कठघरे में खड़ा कर सकता है कि समय रहते आपने अंतरराष्ट्रीय विमानो/ विदेशी प्रवासियों पर लगाम क्यों नहीं कसी, क्यों मज़दूरों को उनके खाने- कमाने वाली जगह में शांति और चैन से रखा नही क्यों लाखों मज़दूर सड़कों में पैदल अपने गाँव निकल पड़े, और कोविड-19 के ख़तरे से अछूते रहे इन गाँव, शहर, प्रदेश में अब मरीज़ सम्भाले नही संभल रहे है ।

इन सब के बीच राम के धुन के साथ आम आदमी सिर्फ़ रामभरोसे ही नज़र आता है ।टेस्ट ज़्यादा हो रहे हैं तो मरीज़ ज़्यादा निकल रहे मरीज़ ज़्यादा तो अस्पताल कम पड़ने लगे, सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं के डर से प्राइवेट अस्पताल में खर्चे के डर से आम आदमी की साँसे उखड़ने लगी है। इधर बाज़ार में भीड़ इस कोरोना को उकसाने वाली है और व्यवस्था से उठता भरोसा डराने वाला ।

 

मनोज त्रिवेदी 

(आप नवभारत प्रेस के CEO एवं दैनिक भास्कर, नईदुनिया के GM रह चुके है) 

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