जिन्ना को जिंदा रखने की जिद | Blog On Jinnah Controversy :

जिन्ना को जिंदा रखने की जिद

जिन्ना को जिंदा रखने की जिद

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 04:53 PM IST, Published Date : May 4, 2018/8:14 am IST

लोकमान्यता को कुतर्कों से खारिज किए जाने की बेशर्म कोशिशों की जिन्ना तस्वीर विवाद एक नई बानगी है। क्या इस मान्यता पर किसी को संदेह है कि मोहम्मद अली जिन्ना देशवासियों की नजर में खलनायक है। तो फिर इस सर्वमान्य मान्यता को कुतर्कों से खारिज करके अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जिन्ना की तस्वीर के औचित्य को सिद्ध करने की मूढ़ता क्यों? 

छात्रसंघ का मानद सदस्य होने से जिन्ना को पूज्यनीय हो जाने का अधिकार नहीं मिल जाता है। और ना आजादी के आंदोलन में योगदान को गिनाने से जिन्ना को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा मिल जाता है। गदर के तारा सिंह की भाषा में कहें तो अशरफअलियों को ये बात समझ लेनी चाहिए कि आम हिंदुस्तानी की नजर में जिन्ना मुर्दाबाद था, मुर्दाबाद है और मुर्दाबाद रहेगा। लेकिन इसके बावजूद अगर जिन्ना को जिंदाबाद बताने की कोशिश की जाए तो अंजाम क्या होता है ये भाजपा के भूतपूर्व लौहपुरुष लालकृष्ण आडवाणी से बेहतर और कौन बता सकता है? 

सवाल उठना लाजिमी है कि जिन्ना से नाता 1947 ही था तो फिर जिन्ना के जिन्न को जिंदा बनाए रखने की जिद आखिर क्यों? वरना बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी। अगर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जिन्ना जायज है तो फिर इस यूनिवर्सिटी को मिले अल्पसंख्यक दर्जा को नाजायज ठहराने की मांग भी जायज है। अगर किसी को जिन्ना को जायज ठहराने की दलील में दम नजर आ रहा है तो फिर ये ना भूलें कि गोडसे को जायज ठहराने की दलील उससे भी दमदार है। 

 

दरअसल ये ‘जिन्नापन’ ही राष्ट्रवादिता को संदिग्धता के साये से बाहर नहीं निकाल पाने की असली वजह है।  

 

सौरभ तिवारी

असिस्टेंट एडिटर, IBC24