भाई दूज एवं यम द्वितीया
– कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज एवं यम द्वितीया का त्यौहार मनाया जाता है।
– भाई दूज को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। यम की बहन यमुना है और विश्वास है कि आज के दिन जो भाई-बहन यमुना में स्नान करते हैं, यम उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु अटल है । प्रत्येक व्यक्ति इस सत्य को स्वीकार करता है परंतु असामयिक अर्थात अकाल मृत्यु किसी को भी स्वीकृत नहीं होती । असामयिक मृत्यु के निवारण हेतु यमदेव की पूजा की जाती है। एक मान्यता के अनुसार, इस दिन जो यमदेव की उपासना करता है उसे असमय मृत्यु का भय नहीं रहता है।
– स्कंद पुराण में लिखा हुआ है कि इस दिन यमराज को तृप्त और प्रसन्न करने से पूजन करने वालों को मनोवांछित फल मिलता है। धन-धान्य, यश एवं दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
पौराणिक कथा–
सूर्य की पत्नी संज्ञा की दो संताने थी। उनमें पुत्र का नाम यमराज और पुत्री का नाम यमुना था। संज्ञा अपने पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को सहन नहीं कर सकने के कारण उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगी। इसी से ताप्ती नदी तथा शनिश्चर का जन्म हुआ। इसी छाया से सदा युवा रहने वाले अश्विनी कुमारों का भी जन्म हुआ है, जो देवताओं के वैद्य माने जाते हैं। उत्तरी ध्रुव में बसने के बाद संज्ञा (छाया) का यम तथा यमुना के साथ व्यवहार में अंतर आ गया। इससे व्यथित होकर यम ने अपनी नगरी यमपुरी बसाई। यमुना अपने भाई यम को यमपुरी में पापियों के दंड देते देख दुखी होती, इसीलिए यह गोलोक में चली गई। समय व्यतीत होता रहा। तब काफी सालों के बाद अचानक एक दिन यम को अपनी बहन यमुना की याद आई। यम ने अपने दूतों को यमुना का पता लगाने के लिए भेजा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली। फिर यम स्वयं गोलोक गए, जहां यमुनाजी की उनसे भेंट हुई।
इतने दिनों बाद यमुना अपने भाई से मिलकर बहुत प्रसन्न हुई। यमुना ने भाई का स्वागत किया और स्वादिष्ट भोजन करवाया। इससे भाई यम ने प्रसन्न होकर बहन से वरदान मांगने के लिए कहा। तब यमुना ने वर मांगा कि हे भैया, मैं चाहती हूं कि जो भी मेरे जल में स्नान करें, वह यमपुरी नहीं जाए। यह सुनकर यम चिंतित हो उठे और मन-ही-मन विचार करने लगे कि ऐसे वरदान से तो यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। भाई को चिंतित देख, बहन बोली भैया आप चिंता न करें, मुझे यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन के यहां भोजन करें, वे यमपुरी नहीं जाएं। यमराज ने इसे स्वीकार कर वरदान दे दिया। बहन-भाई मिलन के इस पर्व को भाई-दूज के के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भाई का अपने घर भोजन न करके बहन के घर भोजन करने से उसे धन, यश, आयुष्य, धर्म, अर्थ एवं सुख की प्राप्ति होती है।
भाई दूज कैसे मनायें –
इस दिन यमुना नदी में स्नान हो पाए तो अति उत्तम अन्यथा घर में नहाते वक्त यमुना जी का ध्यान करते हुए स्नान करना चाहिए। दोपहर में शुभ मुहूर्त में बहन के घर सुविधानुसार या बहन की पसंद के अनुसार मिठाई, फल, उपहार, कपड़े आदि लेकर जाना चाहिए।
भाई दूज पर टीका
– बहन अपने भाई का प्रेम पूर्वक आदर सत्कार करे।
– टीका के लिए थाली सजाये जिसमे रोली, मौली, अक्षत ( साबुत चावल ) रखें।
– थाली में एक दीपक जला लें।
– साफ और शुद्ध छोटे लोटे में जल भरकर रखें।
– नारियल, मिठाई रखें।
– भाई को बैठाकर शुभ मुहूर्त में रोली से टीका करें।
– तिलक पर अक्षत ( साबुत चावल ) चिपकाएँ।
– अब दायें हाथ में लच्छा या मौली बांधें।
– भाई को अपने हाथ से मिठाई खिलाएँ।
– भाई के हाथ में नारियल दें।
– भाई की बलाइयां लें।
– थाली को तीन बार घुमाकर आरती उतारें और मन्त्र –
धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज।
पाहि मां किंकरैः सार्धं सूर्यपुत्र नमोऽस्तुते।। पढ़ें
– लोटे से दोनों तरफ थोड़ा थोड़ा जल डालें और विभिन्न प्रकार के व्यंजन अपने हाथ से बनाकर खिलाती हैं.
– अब भाई बहन के लिए साथ में लाये उपहार आदि भेंट करे।
– ऐसी मान्यता है कि इस दिन शादीशुदा बहन को उपहार , रूपये पैसे , मिठाई , फल आदि की खुशी देते है। उनको सुख समृद्धि स्वास्थ्य यश धन आयु की कमी नहीं रहती।