जान से कीमती एंबुलेंस का शीशा, तोड़ने दिया जाता तो बच जाती बच्ची की जान, FIR | CG News:

जान से कीमती एंबुलेंस का शीशा, तोड़ने दिया जाता तो बच जाती बच्ची की जान, FIR

जान से कीमती एंबुलेंस का शीशा, तोड़ने दिया जाता तो बच जाती बच्ची की जान, FIR

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:56 PM IST, Published Date : July 18, 2018/3:28 am IST

रायपुर। रायपुर में एंबुलेंस की लापरवाही से एक बच्ची की मौत के मामले में संजीवनी एक्सप्रेस के सीईओ विक्रम सिंह के खिलाफ FIR दर्ज की गई है। रायपुर के मौदहापारा थाने में CMHO केएस शांडिल्य की रिपोर्ट पर ये FIR दर्ज की गई है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से मुख्य चिकित्सा अधिकारी केएस शांडिल्य ने संजीवनी एक्सप्रेस के सीईओ विक्रम सिंह के खिलाफ कल शाम को लिखित शिकायत दर्ज कराई।

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जिसमें CMHO ने कहा है कि संजीवनी एक्सप्रेस का आपातकालीन सेवा के लिए है, इसलिए वाहन का रखरखाव सही ढंग से होना चाहिए। मंगलवार को जिस संजीवनी वाहन में बच्ची को गंभीर हालत में लाया गया था, उसका पिछला दरवाजा नहीं खुला। जैसे-तैसे दरवाजा खोला गया, लेकिन तब तक बच्ची की मौत हो गई थी। संजीवनी एक्सप्रेस प्रबंधन की घोर लापरवाही मानते हुए इसके संचालक विक्रम सिंह को दोषी माना गया है। पुलिस का कहना है कि फिलहाल विक्रम सिंह के खिलाफ FIR दर्ज की गई है और जांच के बाद मामले में और भी धाराएं बढ़ सकती हैं। 

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मंगलवार दोपहर 2 माह के बच्चे की मौत हो गई। बच्चे के परिजन उसके इलाज के लिए बिहार से लेकर आए थे। संजीवनी एम्बुलेंस से बच्चे को आंबेडकर अस्पताल लाया गया लेकिन 2 घंटे तक एम्बुलेंस का दरवाजा ही नहीं खुला, नतीजतन ऑक्सीजन न मिलने की वजह से बच्चे की मौत हो गई। जब परिजनों ने एम्बुलेंस का शीशा तोड़कर बच्चे को बाहर निकालना चाहा तो चालक ने उन्हें सरकारी संपत्ति को नुकसान न पहुंचाने का हवाला देते हुए रोक दिया।

बताया जा रहा है कि बिहार के गया निवासी अंबिका सिंह की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और उनके दो माह के बच्चे के दिल में छेद था। वे बच्चे को लेकर दिल्ली एम्स गई थीं, लेकिन वहां इलाज का खर्च ज्यादा बताया गया। उन्हें किसी ने सलाह दी कि वे छत्तीसगढ़ जाएं, वहां सरकारी योजना के तहत नया रायपुर स्थित सत्य साईं अस्पताल में मुफ्त में इलाज होता है।

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वे बच्चे को लेकर ट्रेन से रायपुर पहुंचीं और 108 संजीवनी एम्बुलेंस से सत्य साईं अस्पताल जा रही थीं, इसी दौरान बच्चे की तबियत ज्यादा खराब हो गई। इस पर परिजनों ने एम्बुलेंस चालक से किसी नजदीकी सरकार अस्पताल चलने के लिए कहा तो चालक उन्हें आंबेडकर अस्पताल ले आया। यहां आने पर जब एम्बुलेंस से उतरने की कोशिश कि तो एम्बुलेंस का दरवाजा ही नहीं खुला। दरवाजा खोलने में 2 घंटे लग गए लेकिन तब तक बच्चे की मौत हो चुकी थी। 

 

वेब डेस्क, IBC24

 
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