रायपुर। छत्तीसगढ़ में शिक्षाकर्मियों की वर्षों से मुख्य मांग रही संविलियन मिलने के बाद भी सहायक शिक्षक पंचायत का एक धड़ा असंतुष्ट नजर आ रहा है। वहीं दूसरा धड़ा संविलयन के बाद सकारात्मक तरीके से अन्य समस्याओं के समाधान की बात कह रहा है।
खबरों की मानें तो शिक्षाकर्मी वर्ग 3 के इस असंतोष का फायदा कुछ लोग उठाते दिख रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक कुछ ऐसे चेहरे अब वर्ग 3 के हितैषी बनकर आ रहे हैं जिन्होंने संविलियन के लिए किए गए आंदोलन से खुद दूरी बनाकर रखी थे या फिर सरकार के साथ खड़े थे। चूंकि शिक्षाकर्मी वर्ग 3 की संख्या ज्यादा है इसलिए वर्ग 3 को अपने पाले में लाने के लिए कुछ संगठन और लोग अपने–अपने तरीके से रिझाने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं दूसरे से खुद को ज्यादा हितैषी दिखाने की होड़ मची है, जिसके चलते वे एक–दूसरे को नीचा दिखाने से भी परहेज नही कर रहे हैं।
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सहायक शिक्षक कल्याण संघ के प्रांताध्यक्ष बनाफर ने जब फेडरेशन से एक दिवसीय धरने की जगह अनिश्चितकालीन प्रदर्शन करने की बात कही तो फेडरेशन के एक नेता इदरीश खान ने उसे पागल और नकारा जैसे सम्बोधन से सम्बोधित करते हुए उसे समूह से हटाने की बात कह दी। ज्ञात हो कि सहायक कल्याण संघ हमेशा 69% शिक्षाकर्मी वर्ग 3 के साथ होने का दावा करते आया है और फेडरेशन बनाने के लिए संस्थापक की भूमिका निभाई थी। कुल मिलाकर किसी बड़े नेतृत्व के अभाव में फेडरेशन बिखरते नजर आ रहा है क्योंकि इसके नेतृत्वकर्ता एक–दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कसर नही छोड़ रहे हैं।
वैसे भी वेतन विसंगति की बात कहकर लगातार अलग–अलग संगठन अलग–अलग तारीख पर अपना धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। विकास राजपूत और चन्द्रदेवराय 9 अगस्त को शिक्षामंत्री के घेराव की बात कह रहे हैं, वही महासंघ छुट्टी के दिन धरने में बैठकर खुद को हितैषी दिखाने की कोशिश कर रहा है। शिक्षाकर्मी वर्ग 3 यह कहते दिख रहे है कि छुट्टी के दिन धरने से कोई फर्क नही पड़ने वाला। फेडरेशन अपना अलग धरना प्रदर्शन कर रहा है। जानकारों का कहना है कि अलग अलग आंदोलन करने से असफलता ही हाथ लगेगी, बल्कि नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
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आने वाले दिनों में इन शिक्षाकर्मी वर्ग 3 का खुद को हितैषी बताने की होड़ कहीं उनके नेतृत्वकर्ताओं में सिर फुटौव्वल की स्थिति पैदा न कर दे क्योंकि इन प्रदर्शन करने वालों में कोई भी बड़ा नेता अभी तक आगे नही आया है, ना ही संगठनात्मक अनुशासन इनके बीच दिखाई दे रहा है।
दबी जुबान से अधिकांश शिक्षाकर्मी यह मानते हैं कि नौसिखिया नेताओ के पीछे चलने से फायदे के बजाय नुकसान हो सकता है। वहीं वे यह भी मानते हैं कि इस विषय पर जब तक प्रदेश के पूरे शिक्षाकर्मी फिर से एकजुट नही होंगे अपेक्षित परिणाम मुश्किल है।
वेब डेस्क, IBC24
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