बेटी, प्रकृति और उन्नति की कामना का भी पर्व है छठ | Chaita is also the festival of kinship for daughter, nature and progress.

बेटी, प्रकृति और उन्नति की कामना का भी पर्व है छठ

बेटी, प्रकृति और उन्नति की कामना का भी पर्व है छठ

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:13 PM IST, Published Date : October 24, 2017/10:35 am IST

 

मूल रूप से पूर्वांचल का लोकपर्व माने जाने वाला छठ अब देश भर में मनाया जाने लगा है। पहले छठ व्रत करने वाले परिवारों के सदस्य छठ पूजा पर अपने घर पहुंच जाया करते थे, लेकिन बाद में व्यस्तता, छुट्टी न मिलने या टिकट कंफर्म न होने जैसी परेशानियों के कारण वो जहां रहते हैं, वहीं ये व्रत करने लगे और इस तरह इस व्रत का प्रसार पूरे देश में और विदेशों तक में भी हो गया।

दिवाली के छठे दिन छठ की पूजा होती है और इस साल ये पर्व आज से शुरू हुई है। छठ मुख्यरूप से चार दिन की पूजा होती है, जिसके पहले दिन नहाय-खाय होता है। नहाय-खाय का अर्थ ये है कि छठ व्रत करने वाले पवित्र-स्वच्छ जल में स्नान करके इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करने का संकल्प लेते हैं।

इसके बाद से छठ पर्व के संपन्न होने तक उन्हें सात्विक भोजन करना होता है। दूसरे दिन, खरना का त्योहार होता है, जिसमें व्रती पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को रोटी और गुड़ में बनी खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं। तीसरे दिन डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन उदय होते सूर्य को अर्घ्य के साथ छठ व्रत संपन्न हो जाता है।

 

 

छठ एक ऐसा लोकपर्व है, जिसमें न सिर्फ प्राचीनता और परंपरा बल्कि आधुनिक सोच का भी अदभुत सम्मिश्रण देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए छठ एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें बेटियों के लिए भी मन्नत मानी जाती है। छठ के एक नहीं, बल्कि कई गीतों के बोल छठी मइया से बेटियों के लिए मन्नत मानने की पुष्टि करते हैं। जैसे..

 

‘रुनकी-झुनकी बेटी मांगी ला, पढ़ल पंडितवा दामाद हे छठी मइया..’।

यानी छठ व्रत करने वाली महिलाएं ये वरदान मांगती हैं कि वो एक चंचल, सुंदर सी बेटी दें, जिसके लिए बाद में पढ़ा-लिखा यानी विद्वान दामाद मिले।

 

इसी तरह… छोटी मुटी मालिन बिटिया के भुइयां लोटे हो केस, फुलवा ले अइह हो बिटिया अरघिया के बेर..’

इस गीत में अर्घ्य के वक्त पर बेटी की जरूरत का हवाला दिया गया है जिससे इस पर्व में बेटियों का होना कितना अनिवार्य है, इसका पता चलता है।

आम तौर पर उगते सूर्य को नमन किया जाता है, लेकिन छठ में सूर्योदय के साथ-साथ सूर्यास्त के महत्व को भी दिखाया गया है। अस्ताचल यानी डूबते सूरज को अर्घ्य देने की परंपरा किसी दूसरे पर्व में नहीं पाई जाती है। 

इतना ही नहीं, छठ पर्व पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति से जुड़े रहने का भी संदेश देता है। इस पर्व को पानी में खड़ा होकर मनाया जाता है और घाटों, नदियों, तालाबों की सफाई-स्वच्छता पर खासा जोर दिया जाता है।

इसमें बांस की टोकरी, डालियों, सूप आदि के बर्तनों का इस्तेमाल होता है। इसके प्रसाद में केला, नारियल, गन्ना, हल्दी, अदरख और अन्य फल होते हैं। आटे और गुड़ का बना ठेकुआ विशेष प्रसाद होता है और चना, अक्षत यानी चावल का इस्तेमाल होता है।

छठ सामाजिक सौहार्द्र का संदेश देने वाला व्रत है। छठ घाटों पर हर जाति और कुछ इलाकों में हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिम परिवार भी एक साथ छठ का त्योहार मनाते हैं और व्रत संपन्न होने के बाद प्रसाद का आदान-प्रदान करते हैं। एक परिवार का सदस्य दूसरे व्रतियों की मदद करने के लिए भी हमेशा आगे रहते हैं। इस तरह ये पूरा व्रत सामाजिक एकता, सदभाव और सौहार्द्र का भी प्रतीक है।

 

परमेंद्र मोहन, वेब डेस्क, IBC24

 

 
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