Movie Review : लूजर्स से चैंपियन बनने की कहानी 'छिछोरे'! फिल्म देखने पर कॉलेज के दिन आएंगे याद | 'Chhichhore' story of becoming champions with losers! Memories will come on college days after watching a film

Movie Review : लूजर्स से चैंपियन बनने की कहानी ‘छिछोरे’! फिल्म देखने पर कॉलेज के दिन आएंगे याद

Movie Review : लूजर्स से चैंपियन बनने की कहानी 'छिछोरे'! फिल्म देखने पर कॉलेज के दिन आएंगे याद

:   Modified Date:  December 4, 2022 / 06:09 AM IST, Published Date : December 4, 2022/6:09 am IST

Movie Review :  नितेश तिवारी की ‘दंगल’ देखने के बाद ‘छिछोरे’ का इंतजार था। हालांकि ट्रेलर देखने के बाद ज्यादा उम्मीद नहीं थी, फिल्म का ज्यादा प्रमोशन नहीं किया गया, ऐसे में बस यही था कि डायरेक्टर नितेश तिवारी की फिल्म है इसलिए देखनी है कुछ खास होता…और फिल्म उम्मीद से भी बेहतर निकली।

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फिल्म की कहानी मुंबई के इंजीनियरिंग कॉलेज में पड़ने वाले 7 दोस्तों की कहानी है…जो फ्लैशबैक में चलती है…जहां अन्नी (सुशांत सिंह राजपूत) और माया (श्रद्धा कपूर) का बेटा सुसाइड अटैंप करता है वो ICU में एडमिट है, अब अन्नी और माया अपने बेटे को बचाने के लिए उसे ये समझाते हैं कि लूजर्स से चैंपियन कैसे बनते हैं। जिसके लिए वो हॉस्पिटल में ही अपने इंजीनियरिंग कॉलेज की यादों का एल्बम खोलता है और उसे अपनी कहानी सुनाता है…यहां से फिल्म रफ्तार पकड़ती है।

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फिल्म में आगे अन्नी का इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन होता है, हॉस्टल में उसे सेक्सा (वरुण शर्मा) मिलता है उसके बाद एसिड, बेवड़ा, मम्मी क्रिस क्रॉस और माया इनकी दोस्ती होती है यहां शुरु होता है कॉलेज वाला प्यार, कैनटिग का मस्ती, हॉस्टल लाइफ का हंगामा और सीनियर्स रेकिंग के साथ लताड़…दोस्तों का प्यार, लड़ाई झगड़ा इमोशन से भरपूर ‘छिछोरे’ दोस्तों की कहानी है। अब अन्नी और उसके दोस्त कौन कौन से किस्से सुनाते हैं ये आपको फिल्म में पता चलेगा।

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बात एक्टिंग की जाए तो सभी कलाकारों ने अपना काम शानदार तरीके से किया है। सुशांत और वरुण धवन ने कॉलेज गोइंग स्टूडेंट और पिता के रोल में शानदार अभिनय किया, फिल्म का म्यूजिक भी ठीक ठाक है, फिल्म में कई बोल्ड गालियां हैं जो कि अक्सर कॉलेज दोस्तों के बीच आप सुनते होंगे…सीनियर के रोल में प्रतीक बब्बर हैं जो जूनियर्स परेशान करते हैं वहीं रेगिंग को इसमें हल्के-फुलके अंदाज में परोसा गया है। जिसे देखकर आपको अपने कॉलेज के दिन की याद आएंगे।

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ये फिल्म एक शानदार मैसेज भी देती है वो भी बिना ज्ञान की गंगा बहाए…हंसते-खेलते, वो ये कि सक्सेस के बाद का प्लान सबके पास है लेकिन फेल होने के बाद क्या करना है ये कोई नहीं बताता…और वो नितेश तिवारी ने इस फिल्म में बताया कि हमेशा आप जीते ही ये जरूरी नहीं है, जरुरी ये है कि आप नाकामी का राक्षस अपने पर हावी न होने दें…बस आगे बढ़ते रहें।

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अगर फिल्म में कमियों की बात करें तो ये फिल्म थ्री इडियट्स जितनी शानदार नहीं है स्टूडेंट के बीच सिर्फ गेम खेलने और हॉस्टल लाइफ पर ही फोकस किया गया है। थोड़ा बहुत एक्जाम वाला सीक्वेंस भी डालना चाहिए था। क्योंकि लूजर्स से चैंपियन बनने के लिए आपको परीक्षा भी पास करती होती है…उसके बाद गेम्स में भी नंबर आता है फिल्म के कुछ सीन्स ज्यादा लंबे हैं लेकिन ये आपको निराश नहीं करेंगे।

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