मुख्य आयकर आयुक्त की अफसरों को नसीहत, कहा- चाटुकार अफसर सत्ता बदलते ही कचरा हो जाते हैं | Chief Commissioner of IT said, - Spaniel officers become garbage as govt change

मुख्य आयकर आयुक्त की अफसरों को नसीहत, कहा- चाटुकार अफसर सत्ता बदलते ही कचरा हो जाते हैं

मुख्य आयकर आयुक्त की अफसरों को नसीहत, कहा- चाटुकार अफसर सत्ता बदलते ही कचरा हो जाते हैं

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:02 PM IST, Published Date : January 28, 2019/6:52 am IST

भोपाल। मध्यप्रदेश के मुख्य आयकर आयुक्त आरके पालीवाल ने जांच एजेंसियों के अफसरों को नसीहत दी है। उन्होंने सरकार के इशारे पर काम करने वाले अफसरों को देते हुए फेसबुक पोस्ट के जरिए पढ़ाया नियम कायदों का पाठ पढ़ाया है। मुख्य आयकर आयुक्त ने कहा, यह एक दुखद सच है कि कुछ जनसेवक नियम-कायदों को ताक पर रखकर अपने गॉडफादर आकाओं के हिसाब से काम करने लगते हैं।

फेसबुक पर गणतंत्र दिवस के मौके पर उन्होंने लिखा है कि जनसेवकों से संविधान नीति और नियमों के अनुसार जनसेवी कार्य करने की अपेक्षा करता है। यह एक दुखद सच है कि कुछ जनसेवक नियम कायदों को ताक पर रखकर अपने गॉडफादर आकाओं के हिसाब से काम करने लगते हैं। सत्ता में बैठे गॉडफादर के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले अफसर अक्सर भूल जाते हैं कि गॉडफादर की कुर्सी आनी जानी है। सत्ता बदलनेजांच एजेंसियों की पहली गाज ऐसे अफसरों पर ही गिरती है। ज्यादा खामियाजा उन्हें ही भुगतना पड़ता है क्योंकि दस्तावेजों पर उन्हीं के नाम की चिड़िया बैठती है।

उन्होंने आगे कहा है कि हमेशा यस सर, यस सर कहने वालों को कभी कभी ‘नो सर’ भी कहना सीखना चाहिए, जैसे उनके पूर्वज कहते थे। संविधान के अनुसार जन सेवकों के लिए जन (और देश) की सेवा ही सबसे महत्वपूर्ण है। दुर्भाग्य से काफी अफसर अपने सत्ताधारी गॉडफादर के लिए इतने समर्पित हो जाते हैं कि नियम-कायदे खूंटी पर टांग देते हैं। वे भूल जाते हैं कि सत्ता बदलने पर जांच एजेंसियों की नजर सबसे पहले उस खूंटी पर ही पड़ती है जिस पर चाटुकार अफसर ने नियम-कायदे लटकाए थे। वे यह भी भूल जाते हैं कि गॉडफादर की गॉडफ़ादरी स्थाई नही है जबकि अफसरों की नौकरी और जवाबदेही स्थाई है।

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पालीवाल ने आगे लिखा, आदर्श संवैधानिक स्थिति तो यह है कि स्थाई ब्यूरोक्रेसी को अस्थाई सत्ता को नियम-कायदे बताने चाहिए न कि सत्ता के अनुसार नियम कानूनों की धज्जियां उड़ाकर सत्ता के मनचाहे कार्यों को आगे बढ़ाना। इतिहास बहती नदी की तरह है जो समय के साथ खुद को साफ कर लेता है और कचरे को किनारे लगा देता है। चाटुकार अफसर भी देर सवेर कचरे की अवस्था को ही प्राप्त होते हैं।

 
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