ईको ग्रीन कंपनी और निगम प्रशासन की तनातनी में 'कचरा' हो गई सफाई व्यवस्था, जनता के पैसे हो रही बर्बादी | Cleanliness system has become 'garbage' in the tussle of Eco Green Company and Corporate Administration Public money getting wasted

ईको ग्रीन कंपनी और निगम प्रशासन की तनातनी में ‘कचरा’ हो गई सफाई व्यवस्था, जनता के पैसे हो रही बर्बादी

ईको ग्रीन कंपनी और निगम प्रशासन की तनातनी में 'कचरा' हो गई सफाई व्यवस्था, जनता के पैसे हो रही बर्बादी

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:43 PM IST, Published Date : August 11, 2020/9:16 am IST

ग्वालियर। मध्यप्रदेश के ग्वालियर चंबल संभाग में सफाई व्यवस्था का काम देखने वाली ईको ग्रीन कंपनी ओर नगर निगम प्रशासन के बीच नूराकुस्ती का खेल तेज हो गया है। निगम की ओर से शहर की जनता पर स्वच्छता शुल्क का भारी भरकम बोझ लादने के बाद भी हालात नहीं सुधरे हैं। न तो समय पर घरों से कचरा उठ रहा है और न गीला-सूखा कचरा अलग-अलग हो रहा है। कंपनी ने कचरे से खाद बनाना भी बंद कर दिया है। अनुबंध शर्तों के तहत काम न करने पर निगम प्रशासन ने कॉन्ट्रैक्ट खत्म करने को कंपनी को फिर नोटिस जारी कर दिया है। वैसे ये नोटिस कोई पहली बार नहीं दिया गया है, बल्कि कई बार दिए जा चुके है। जिसको लेकर कांग्रेस निगम की मंशा पर सवाल खड़े कर रही है।

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ग्वालियर शहर की जनता को बेहतर सुविधाएं देने के लिए सरकार ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल पर जून 2017 में चाइना की इको ग्रीन कंपनी से अनुबंध किया था। इसके तहत डोर टू डोर कचरा कलेक्शन, ट्रांसपोर्टेशन, प्रोसेसिंग व पावर जनरेशन करना था। यह सभी काम एक साल यानी जून 2018 तक करना थे। लेकिन कंपनी की ढिलाई से ऐसा नहीं हो सका। कंपनी निगम सीमा के सभी 66 वार्डों तक वाहन नहीं भेज सकी। जिसका मामला भोपाल तक जा पहुंचा चुका। अब नगरीय विकास एवं आवास विभाग के आला अफसर की इस मामले में कोई फैसला करेंगे।

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ईको ग्रीन कंपनी की इस प्रोजेक्ट की असफलता और जनता को पीड़ा देने में निगम प्रशासन तक कंपनी का गठजोड़ रहा है। निगम प्रशासन हमेशा कंपनी को दोष तो देता रहा…. लेकिन पेनाल्टी लगाकर खानापूर्ति का खेल जारी रखा। कंपनी को निगम ने अपने वाहन भी दे दिए, लेकिन उनके ड्राइवर व हेल्पर अपने पास रखे। कंपनी को बिजली की दरें तय करने में ही दो साल लगा दिए। इससे कंपनी को बचाव का मौका मिल गया। अभी हालांकि कंपनी को 100 फीसदी के बजाय केवल 40 फीसदी राशि का भुगतान किया जा रहा है। शेष 60 फीसदी राशि कचरे से बिजली का प्लांट लगाए जाने तक रोकी है। लेकिन कांग्रेस निगम की इस मंशा पर सवाल खड़ी कर रही है।