सीएम भूपेश बघेल ने किया खुलासा, झीरमघाटी में तत्कालीन सरकार ने फेक न्यूज का लिया था सहारा | CM Bhupesh disclosed then government has resorted to Fake News in Jhiram Ghati

सीएम भूपेश बघेल ने किया खुलासा, झीरमघाटी में तत्कालीन सरकार ने फेक न्यूज का लिया था सहारा

सीएम भूपेश बघेल ने किया खुलासा, झीरमघाटी में तत्कालीन सरकार ने फेक न्यूज का लिया था सहारा

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:14 PM IST, Published Date : February 15, 2019/8:39 am IST

रायपुर। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने इस बात की ओर इशारा किया है कि बस्तर के झीरमघाटी में हुए सबसे बड़ी नक्सल वारदात में भी फेक न्यूज का सहारा लिया गया था। मुख्यमंत्री ने कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर के द्वारा ‘वर्तमान परिदृश्य में फेक न्यूज की चुनौतियां’विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बोलते हुए इस बात का इशारा किया। संगोष्ठी में मुख्यमंत्री ने कहा कि फेक न्यूज आज उद्योग बन गया है। न केवल चुनाव जीतने का माध्यम हो गया है, बल्कि हिंसा कराने का भी माध्यम हो गया है और आपके जेब काटने का भी माध्यम हो गया है। छत्तीसगढ़ में ही झीरम जैसी घटना होती है, जिसमें हमारे बड़े-बड़े नेता शहीद हो गए। मैं समझता हूं पूरी दुनिया में राजनेताओं का नरसंहार कहीं हुआ है तो झीरमघाटी में हुआ है। लेकिन समाचार क्या छपा? मीडिया में क्या आया। कि रूट बदल गया। हेडिंग तो यही था ना, रूट बदला गया और इस कारण से मौतें हुईं। अब चुनाव निपट गया, सत्ताधारी दल फिर से जीत गए। अब सच्चाई सामने आई तो पता चला कि रूट बदला ही नहीं गया। लेकिन इससे सरकार की वापसी हो गई।

उन्होंने कहा कि इसी तरह फेक न्यूज के कारण आपकी जेब भी कट जाती है। छत्तीसगढ़ में देख लीजिए, किस प्रकार से चिटफंड कंपनियों ने समाचार पत्रों में विज्ञापन दिया और अधिकारियों ने उसमें मेला लगाए, तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ने उसमें रोजगार के प्रमाण पत्र बांटे और आज छत्तीसगढ़ से 10 हजार करोड़ रुपए गया। ये कौन लोग हैं। आज तक इसमें केवल राजनीति हो रही है, लेकिन उन गरीबों को पैसे वापस करने की कोई चिंता किसी को नहीं है। जब मैं सरकार में आया और कहा कि केस लाओ तो पता चला की मंत्रालय में इस प्रकार की कोई फाइल ही नहीं है। हमने तो वादा किया है लोगों का पैसा वापस कराएंगे। मंत्रालय में फाइल नहीं है तब मैंने अपने पास के दस्तावेज दिये। कोई अपनी बेटी की शादी के लिए रखा था, कोई जमीन बेचकर रखा था। कोई रिटायरमेंट का पैसा रखा था। बर्बादी की कगार पर कितने परिवार पहुंच गए। इस फेक न्यूज के कारण।

उन्होंने कहा कि मैं मोबाइल उपयोग करता हूं, लेकिन जब तक अगली सुबह अखबार में न पढ़ लूं, न्यूज पर यकीन नहीं करता, लेकिन आज की युवा पीढ़ी अखबार ही नहीं पढ़ती। फेक न्यूज हमारे लिए बड़ी चुनौती है। आज पूरे नौजवान वर्ग इससे प्रभावित हैं और पीड़ित हैं। उसके कारण से वातावरण बन रहा है। फेक न्यूज के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। लड़ने की आवश्यकता है। आज स्थिति क्या है हम अपने विषय पर लड़ाई नहीं लड़ते। दूसरे की बातों पर लड़ते हैं। हमारा दिमाग कैप्चर करके रखा गया है। हम उससे बाहर ही नहीं निकल पा रहे हैं। इसलिए जागरूक रहने की जरूरत है।

मुख्यमंत्री भूपेश ने कहा कि वर्तमान समय में फेक न्यूज से केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं है, बल्कि पूरा देश और पूरी दुनिया भी प्रभावित, पीड़ित और चिंतित है। पहले के समय में केवल होली के दिनों में होली खबरे छपती थी, जो गलतफहमियां और भ्रम पैदा करती थी, लेकिन आज फेक न्यूज एक उद्योग बन गया है। यह जेब काटने, हिंसा फैलाने और चुनाव जीतने का माध्यम बन चुका है, लेकिन अब लोग भी समझने लगे हैं कि किस न्यूज को कहां तक सही माना जाए। 

उन्होंने बताया वे स्वयं भी कई बार ऐसे भ्रामक खबरों में से उन्हीं समाचारों को सही मानते हैं, जब दूसरे दिन उसे समाचार पत्रों में पढ़ लेते हैं। उन्होंने फेक न्यूज के विरूद्ध लड़ाई लड़ रहे प्रतिष्ठित मीडिया समूहों की तारीफ की और इस जनजागरण के लिए अपनी शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा नागरिकों और युवाओं से कहा कि विषय की गहराई तक जाएं। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह भ्रामक विज्ञापनों का ही असर था, जिसके कारण छत्तीसगढ़ में चिटफंड कम्पनियां ने राज्य का नागरिकों की बेशकीमती दस हजार करोड़ रूपए की राशि लूट कर ले गए। उन्होंने कहा हमें ऐसे भ्रामक विज्ञापनों से बचने की जरूरत है। मुख्यमंत्री ने कहा सोशल मीडिया के नियमों की कमी से राज्य को मिलने वाले टैक्स का पैसा नहीं मिल पा रहा है। इसी तरह कानून और व्यवस्था बनाए रखने में साइबर संबंधी नियमों का बेहतर उपयोग कैसे किया जा सकता है। इस विषय पर वे केंद्र सरकार से चर्चा करेंगे। 

संगोष्ठी में प्रमुख वक्ता के रूप में फेकल्टी ऑफ मास कम्युनिकेशन, एसजीटी युनिवर्सिटी गुड़गांव के डीन प्रो. (डॉ.) मुकेश कुमार ने चिन्ता जताते हुए कहा कि कहीं हम चुनाव के दरम्यान होने वाले पेड न्यूज की तरह आने वाले समय में फेक न्यूज को भी तो नहीं भूलने लगेंगे। उन्होंने कहा ‘पोस्ट ट्रूथ’ शब्द का तात्पर्य ऐसे समय में होता है जब तथ्यों का नहीं, बल्कि भावनाओं का जोर होता है। दुनिया भर में इमोशन या भावनाओं के माध्यम से हिंसा, उन्माद और एक-दूसरे के प्रति नस्ल, जाति, रंग और धर्म आदि के नाम पर नफरत फैलाने का वातावरण बनाया जाता है। ऐसा समय फेक न्यूज के लिए उर्वर होता है। उन्होंने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि मीडिया भी अब प्रोपेगेंडा मॉडल बनाकर शासक और बाजार के लिए सहमति बनाने का कार्य करने लगा है, जबकि उसका असली कार्य समाज को आगे लाने और जनजागरूकता बढ़ाने का है। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जरूरत है कि मीडिया लिटरेसी बढायी जाए जिससे मीडिया का बेहतर उपयोग हो सके। 

कार्यक्रम के अन्य प्रमुख वक्ता साइबर लॉ एक्सपर्ट नई दिल्ली विराग गुप्ता ने कहा कि जिस तरह दूध बेचने की इकोनॉमी को कोल्डड्रिंक की इकोनॉमी प्रभावित करती है और खोटे सिक्के अच्छे सिक्के को चलन से बाहर कर देते हैं। उसी तरह सही खबरों को फेक न्यूज की इकोनॉमी भी प्रभावित करती हैं। उन्होंने पूछा कि डिजिटल माहौल में फेक न्यूज को रोकने के लिए वर्तमान में राज्यों के पास अधिकार नहीं है यह अधिकार राज्यों के पास क्यों नहीं होने चाहिए। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया में लगभग 30 प्रतिशत यूजर फेक है। ट्विटर, फेसबुक चलाने वालों में अनेक गुमनाम चेहरे हैं। व्हाट्सएप द्वारा कमाए गए हजारों करोड़ रूपए की राशि विदेश चली जाती है। इसकी टैक्स की राशि देश और राज्य को मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह पूछा जाता है कि व्हाट्सएप, ट्विटर, फेसबुक आदि निःशुल्क है, अगर वे वास्तव में निःशुल्क हैं तो इतनी बड़ी राशि कैसे कमाते हैं। उन्होंने ऐसी कंपनियां हमारे डाटा बेचते हैं। पब्लिक रिकार्ड एक्ट के अनुसार सरकारी दस्तावेज देश के बाहर नहीं जा सकते, लेकिन इमेल आदि के माध्यम से महत्वपूर्ण जानकारी देश से बाहर चली जाती हैं। इसीलिए शासकीय कार्यों में एनआईसी के ई-मेल उपयोग को बढ़ावा देने की जरूरत है। 

कार्यक्रम के प्रमुख वक्ता के रूप में डिजिटल बीबीसी हिन्दी नई दिल्ली के संपादक राजेश प्रियदर्शी ने कहा कि फेक न्यूज महामारी की तरह एक गंभीर समस्या बन गई है, जो देश और लोकतंत्र के लिए घातक है। यह एक राष्ट्रीय समस्या है और इसका समाधान हम सभी को ढूंढना है। हमें निश्चय करना होगा कि भ्रामक, झूठे और फेक न्यूज को फारवर्ड नहीं करेंगे और इसके विरूद्ध रिपोर्ट करेंगे। कहा जाता है कि झूठ के पांव नहीं होते, लेकिन सौफेशिकेटेड सोशल मीडिया जिसमें पीछे कई बार प्रबुद्धजन भी होते हैं, के झूठ अब पंख निकलकर उड़ने लगते हैं। एक रिसर्च के अनुसार फेक न्यूज सामान्य खबरों की तुलना में 20 से 30 गुना ज्यादा तेजी से फैलती हैं, क्योंकि वे भावनात्मक रूप से हमारे दिल और दिमाग को प्रभावित करती हैं। उन्होंने बताया कि फेक न्यूज के विरूद्ध बीबीसी और प्रतिष्ठित मीडिया समूहों के द्वारा बीयॉण्ड फेक न्यूज अभियान प्रारंभ किया गया। इसी तरह फैक्ट चेक करने के लिए एकता न्यूज के माध्यम से डेस्क भी बनाया गया है। 

प्रियदर्शी ने कहा फेक न्यूज इसलिए फैलती है, क्योंकि लोग समाचार के स्रोत को नहीं देखते तथा आसपास के या परिचित लोग के सोशल मीडिया से प्राप्त होने वाले भ्रामक जानकारी को सही मान लेते हैं। उन्होंने कहा अगर भावनाओं से हिंसा फैलती है, तो केवल हथियार चलाने वाले के हाथ खून से नहीं रंगते, बल्कि सोशल मीडिया के माध्यम से ऐसी खबरों को फैलाने वाले के उंगलियों पर भी खून के धब्बे लगते हैं। उन्होंने फेक न्यूज की सत्यता जानने के लिए 8 उपायों की जानकारी देते हुए बताया कि जब भी फेक न्यूज के संबंध में शंका लगे तो उस संबंध में गूगल का उपयोग कर तथ्यों की जानकारी लें, कब, कहां, कौन, कैसे जैसी शंकाओं का समाधान करें, समाचार की यूआरएल और स्त्रोत की पहचान करें, समाचार पोस्ट की तारीख, फर्जी एकांउट की पड़ताल करें, सोशल मीडिया के एकाउंट के माध्यम से देखे कि उसे कौन चला रहे हैं। इसी तरह समाचार की मकसद, भाषा और फोटो क्वालिटी के आधार पर भी फेक न्यूज की पहचान की जा सकती है। 

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) एम.एस. परमार ने संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहा कि प्रौद्योगिकी और शब्द ऐसे हैं जिससे विकास भी हो सकता है और विनाश भी हो सकता है। देश के संविधान ने हमें बोलने की स्वतंत्रता दी है, स्वच्छंदता नहीं दी। अगर वर्तमान संचार का युग देश में हिंसा, साम्प्रदायिकता और अराजकता बढ़ाता है तो उस पर रोक लगनी चाहिए। 

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कार्यक्रम में रायपुर पश्चिम के विधायक विकास उपाध्याय, मुख्यमंत्री के सलाहकार विनोद वर्मा, मीडिया सलाहकार रूचिर गर्ग, आयुक्त एवं संचालक जनसम्पर्क तारन प्रकाश सिन्हा सहित मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकारगण, संपादकगण, प्रबुद्ध नागरिकगण और पत्रकारिता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।  

 
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