ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी दल के घोषणापत्र को उसकी बजाए उसके विरोधी दल ने अपने प्रचार अभियान को धार प्रदान करने का जरिया बनाया है। ऐसा भी पहली बार है जब किसी दल के घोषणा पत्र में उसकी बजाए उसका विरोधी दल अपनी जीत की संभावना तलाश रहा हो। कांग्रेस के बहुप्रतीक्षित घोषणा पत्र के जारी होने के बाद सामने आई प्रतिक्रिया को देखते हुए फिलहाल तो कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है।
घोषणा पत्र जारी होने के पहले कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेताओं की मौजूदगी में राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने जब संबोधन दिया तो उनका फोकस मोदी सरकार की नाकामियों पर वार करके अपने वादों पर ऐतबार जताने का था। इसलिए उन्होंने गरीबों, बेरोजगारों और किसानों के लिए घोषणा पत्र में शामिल लुभावने वादों पर ही अपनी बात केंद्रित रखी। राहुल के भाषण के दौरान न्यूज चैनलों की स्क्रीन पर ‘गरीबी पर वार-72 हजार’, 22 लाख नौकरी का वादा, मनरेगा में अब 150 दिन मिलेगा काम, किसानों के लिए अलग बजट जैसी घोषणाएं सुर्खियां बनकर चमक रही थीं। लेकिन विमोचन की रस्म अदायगी के बाद जब ये घोषणा पत्र भाजपा के रणनीतिकारों एवं सोशल मीडिया के राष्ट्रवादी रणबांकुरों के हाथों तक पहुंचा तो विमर्श बदल चुका था। कुछ घंटे पहले तक कांग्रेस के लिए ‘गेमचेंजर’ बताया जाने वाला घोषणा पत्र उसका ‘गेमओवर’ करने वाला नजर आने लगा।
दरअसल, कांग्रेस भाजपा की कमजोर नस दबाने की बजाए उसकी मजबूत नस दबा बैठी। कांग्रेस के 52 विषयों पर किए गए 487 वादों पर उसका वादा नंबर 30 भारी पड़ गया। इसमें देशद्रोह की धारा 124(A) को पूरी तरह खत्म करने और सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम’ यानी AFSPA की समीक्षा किए जाने का जिक्र है। अग्रेजों के जमाने के देशद्रोह कानून के खात्मे के पीछे कांग्रेस ने इसके दुरुपयोग का हवाला दिया है। इस कदम से संदेश ये गया कि कांग्रेस ने टुकड़े-टुकड़े गैंग के ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे विघटनकारी मंसूबों को घोषणापत्रीय मान्यता दे दी है। वहीं सेना को विशेष अधिकार देने वाले सशस्त्र बल अधिनियम AFSPA का रिव्यू करने के साथ ही सेना को संदिग्ध लोगों को उठाने, यौन हिंसा और टार्चर जैसी छूट (इम्यूनिटी) को खत्म करने के वादे ने कांग्रेस की मंशा को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है। भाजपा ने सवाल पूछा है कि क्या ये माना जाए कि कांग्रेस ने कन्हैया कुमार और उनकी JNU की टोली द्वारा सेना के जवानों को रेपिस्ट बताए जाने वाले आरोपों को सही माना है ?
इसके अलावा कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र के जरिए कश्मीर समस्या के समाधान के लिए अलगाववादियों से बिना शर्त बातचीत करने, धारा 370 यथावत रखने, कश्मीर में सेना और अर्द्धसैनिक बलों की संख्या कम करने, नागरिक संशोधन विधेयक वापस लेने जैसे तमाम संवेदनशील मसलों पर बगैर लाग लपेट के अपनी मंशा साफ कर दी है। यहां तक कि कांग्रेस ने घोषणा पत्र में साफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलने की सांकेतिक औपचारिकता भी नहीं निभाई है। गंगा की बजाए सभी नदियों की सफाई का वादा है तो गाय की बजाए सभी जानवरों की भलाई की बात है। अयोध्या राम जन्म भूमि विवाद का तो जिक्र तक नहीं है। कुल मिलाकर कांग्रेस ने अपना रुख बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है। ये रुख इतना स्पष्ट है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तो इसे जेहादी और वामपंथियों द्वारा बनाया गया घोषणा पत्र तक करार दिया है।
तो अब जबकि कांग्रेस ने भाजपा की पिच पर खेलने का जोखिम उठाया है, इंतजार भाजपा के घोषणा पत्र का है। कांग्रेस ने अपनी घोषणाओं के जरिए अपने मतदाता वर्ग को जो संदेश देना था, दे दिया। बदले सियासी दौर में जबकि घोषणा पत्र जीत-हार में अपनी अहम भूमिका निभाने लगे हैं, अब सबकी दिलचस्पी भाजपा के वादों और इरादों को जानने की है।
सौरभ तिवारी
असिस्टेंट एडिटर, IBC24