दिल्ली दंगा: घायल जुबैर ने सुनाई आपबीती, कहा- जिन्होंने मुझे पीटा वो भी इंसान थे, जान बचाने वाले भी इंसान ही थे | Delhi Chand Bagh Violence Story Updates Picture About Mohammad Zubair Delhi

दिल्ली दंगा: घायल जुबैर ने सुनाई आपबीती, कहा- जिन्होंने मुझे पीटा वो भी इंसान थे, जान बचाने वाले भी इंसान ही थे

दिल्ली दंगा: घायल जुबैर ने सुनाई आपबीती, कहा- जिन्होंने मुझे पीटा वो भी इंसान थे, जान बचाने वाले भी इंसान ही थे

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:18 PM IST, Published Date : February 27, 2020/2:42 pm IST

नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली पिछले 4 दिनों से हिंसक दंगों की दंश झेल रही है। हिंसक घटनाओं में अब तजक लगभग तीन दर्जन लोग घायल हो चुके है और 100 से अधिक घायल हो गए। घायलों का इलाज अभी भी अस्पताल में जारी है। इन दंगों की कई दिल दहला देने वाली तस्वीरें सामने आई है। इन तस्वीरों में एक मोहम्मद जुबैर की भी तस्वीर थी। दंगाइयों द्वारा जुबेर की पिटाई की तस्वीर सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुई थी। अब आप सोच रहे हैं कि 35 लोगों की मौत हुई, लेकिन हम जुबेर की ही बात क्यों कर रहे हैं।

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दरअसल मोहम्मद जुबैर की आज से पहले देश के किसी कोने में कोई पहचान नहीं थी। लेकिन दंगे के दौरान उसके साथ जो हुआ उसकी तस्वीर देश ही नहीं पूरी दुनिया ने देखी। जुबेर की तस्वीर दिल्ली हिंसा की उन दर्दनाक तस्वीरों में शामिल है, जो आपका दिल दहला देगा। वह तस्वीर, जिसमें लहूलुहान होकर जमीन पर गिरे एक व्यक्ति को चारों ओर से घेरकर दंगाई लाठी-डंडों से पीट रहे हैं। दिल्ली में हुई क्रूरता का प्रतीक बनी इस तस्वीर में जो लहूलुहान होकर अधमरा पड़ा है, वे हैं 37 साल के मोहम्मद जुबैर।

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बताया गया कि मोहम्मद जुबैर बीते 19 साल से चांदबाग इलाके में कूलर की दुकान चलाते हैं। जुबैर एक आम इंसान की तरह रोजाना अपनी दुकान जाता है और अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी की व्यवस्था करता है। वह न तो कभी सियासी मसलों में पड़ और न ही नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शनों में कभी हिस्सा लिया। सोमवार की सुबह वे खुश थे, क्योंकि उन्हें इज्तिमा में शामिल होने जाना था। सुबह नए कपड़े पहन दुआ के लिए कसाबपुरा की ईदगाह के लिए निकल गए। इसके बाद आगे की कहानी खुद जुबैर की जुबानी सुनिए….

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जुबैर ने बताया कि करीब साढ़े 12 बजे ईदगाह में दुआ खत्म हुई। इसके बाद मैंने ईदगाह के बाहर लगी दुकान से बच्चों के लिए हलवा पराठा, दही बड़े और दो किलो संतरे खरीदे। बच्चों को सालभर इस दिन का इंतेजार रहता है कि इज्तिमा से लौटकर आने वाला उनके लिए हलवा और खाने-पीने की अन्य चीजें लेकर आएगा। इसके बाद मैंने चांदबाग के लिए बस पकड़ी, लेकिन जैसे ही बस में बैठा मुझे पता चला कि मेरे घर वाले इलाके में दंगा भड़क गया है। हालात को समझते हुए मैंने पांचवें पुश्ते में ही उतरना ठीक समझा।

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खजूरी में दंगे हो रहे थे तो मैंने भजनपुरा मार्केट की तरफ से वापस लौटने की सोची। वहां पहुंचा तो दोनों ओर से तेज पत्थरबाजी हो रही थी। मुझे सड़क के दूसरी तरफ अपने घर जाना था तो मैं वहां बने अंडर-पास की तरफ जाने लगा। तभी कुछ लोगों ने मुझे रोका और दूसरी तरफ से जाने को कहा। ये लोग पत्थरबाजी में शामिल नहीं थे, इसलिए उनकी बात पर भरोसा कर लिया। मुझे लगा कि वे मेरी सुरक्षा के लिए दूसरी ओर से जाने को बोल रहे हैं। नहीं पता था कि मुझे दंगाइयों की तरफ भेज रहे हैं। मैं जैसे ही दूसरी तरफ पहुंचा, कई लोगों ने मुझे घेर लिया और मारो-मारो कहने लगे। इज्तिमा से लौट रहा था लिहाज़ा मजहबी लिबास में था। उन्होंने दूर से मुझे पहचान लिया। शुरुआत में मैंने उनसे कहा भी कि भाई मेरा कसूर तो बता दो, लेकिन वहां कोई सुनने को तैयार नहीं था। उन्हीं में से किसी ने पहले मेरे सिर पर लोहे की रॉड मारी और उसके बाद तो पता नहीं कितने ही लोग लाठी-डंडों और सरियों से मुझे मारने लगे। भीड़ में एक आदमी बाकियों को रोक भी रहा था और मुझे वहां से जाने देने की बात कह रहा था। लेकिन वो भी शायद अकेला था।

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दंगाइयों ने मुझे इस कदर मरा था कि अब मेरी हालत अधमरी सी हो चुकी थी। मेरे सिर से खून बहने लगा था। मुझमे नाम मात्र की जान बची थी। मुझे लगा कुछ ही देर में मेरी जान निकल जाएगी। मैने कलमा पढ़ना शुरू कर दिया। जिस जगह मुझ पर हमला हुआ वहां पुलिस का कोई भी जवान नहीं था। हां, वहां से कुछ दूरी पर पुलिस गश्त जरूर कर रही थी। सड़क पर ही बेहोश हो जाने के बाद मुझे बस धुंधला-धुंधला ही याद है कि क्या हुआ। धुंधली यादों के सहारे जुबैर ने आगे बताया कि इसके बाद कुछ लोग मुझे उठाकर ले गए और एक एंबुलेंस में डालकर अस्पताल पहुंचाए। तब तक मैं बेहोश हो चुका था।

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मुझे शाम करीब 6 बजे होश आया, तब मैं जीटीबी अस्पताल के एक स्ट्रेचर पर पड़ा था।। देखा तो मेरे सिर पर टांके लगे हुए थे। मुझे ये नहीं पता था कि कौन मुझे अस्पताल लेकर आया। वे लोग तब तक अस्पताल से जा चुके थे। कोई लगातार मुझसे पूछ रहा था कि मेरे साथ कौन आया है, पर मेरे पास जवाब नहीं था। लेकिन मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं उन्हें कुछ बता पाता। मैंने बैठने की कोशिश की तो बैठ न सका। मैंने स्ट्रेचर पर लेटे-लेटे दो बार उल्टी कर दी थी।

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शाम करीब सात बजे मैं भाई को फोन करने की स्थिति में आ पाया। पर वह चांदबाग में था, जहां दंगे जारी थे। वो घर से निकलने की स्थिति में नहीं था। फिर बहन-बहनोई को फोन किया, जो कहीं ओर रहते हैं। वो लोग अस्पताल पहुंचे। मेरा बचना करिश्मे जैसा है। ओखला में दुकान चलाने वाले ज़ुबैर के 24 वर्षीय भतीजे रेहान बताते हैं- ‘सोमवार शाम तक चाचू की तस्वीर वायरल हो चुकी थी। हमें भी इंटरनेट पर उनकी तस्वीर देखकर ही इस बारे में मालूम हुआ। तब हमने रिश्तेदारों को फोन लगाए और हम उनके पास पहुंचे।

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