अरुण जेटली के साथ मेरी आख़िरी मुलाक़ात : डॉक्टर जवाहर सुरिसेट्टी | Dr Jawahar Surisetti Blog On Last meeting with Arun Jaitley

अरुण जेटली के साथ मेरी आख़िरी मुलाक़ात : डॉक्टर जवाहर सुरिसेट्टी

अरुण जेटली के साथ मेरी आख़िरी मुलाक़ात : डॉक्टर जवाहर सुरिसेट्टी

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 05:23 AM IST, Published Date : August 26, 2019/6:20 am IST

हालाँकि, अरुण जेटली के साथ मेरी कई बार मुलाक़ात हुई है, यह एक मुठभेड़ यह दिखाने के लिए काफ़ी है कि वह कितने सज्जन थे । यह आम आदमी को लग सकता है कि जब किसी का स्वर्गवास हो जाता है और जब उनका पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाता है , तब व्यक्ति बारे में बोले जाने वाले वक्तव्य को नज़रंदाज़ किया जा सकता है को बेहतर नजरअंदाज किया जा सकता है क्योंकि हर कोई मृतक के बारे में महान बातें ही बोलता है। लेकिन अरुण जेटली विषय में, इनमें से बहुत सारे वक्तव्य वास्तव में सही हैं।

उस दिन, एक खचाखच भरे सभागृह में अरुण जेटली वित्त मंत्री के रूप में कुछ सवालों के जवाब दे रहे थे। मैं सामने की पंक्ति में मुश्किल से 5 फीट दूरी पर बैठा था और

सवाल पूछने की बारी मेरी थी। मैं उठा और बोलने लगा की अचानक ही कैमरामैन का झुंड घुसआया और सामने वाली पंक्ति और मंत्री के बीच अवरोध पैदा करते हुए मंच के सामने तस्वीरें क्लिक करने लगे और मुझे पीछे हटना पड़ा । स्थानीय आयोजकों ने सोचा कि मंत्री के साथ उनकी तस्वीरें अधिक महत्वपूर्ण थीं और प्रश्नोत्तरी तस्वीर खिंचवाने का आनंद उठाने लगे ।

थोड़ी देर बाद सदन की व्यवस्था ठीक हो गया जब फोटोग्राफर्स अपना काम कर वहाँ से निकल गए ।सूत्रधार ने बीते कार्यक्रम को भुलाकर पुनः प्रश्न पूछने के लिए घर आग्रह किया । अचानक अरुण जेटली ने सूत्रधार को टोका और मुझसे कहा, “डॉ साब, कृपया आप अपना प्रश्न पूछें? “

यह एक छोटी सी घटना है, लेकिन उस व्यक्ति के ध्यान और विचार प्रक्रिया की निरंतरता को दर्शाता है जो आयोजकों की ओर से गायब था । मैंने सवाल पूछा और उन्होंने उसका जवाब दिया और बड़े सुकून से दिया । उनकी निष्पक्षता पर मुझे कोई संदेह नहीं था ना ही उनके ज्ञानी होने पर ।वो एक बेहतरीन वक्ता थे जिनमें मुश्किल कानूनी मुद्दों को सरल बनाने की क्षमता थी । लेकिन उनके जीवन की सफलता उनकी काम के प्रति एकाग्रता और सम्बंध बनाने की क्षमता पर केंद्रित थी जिसकी वजह से वो यारों के यार हाई नहीं वरण दुश्मनों के दोस्त भी कहलाते थे ।

 
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