युवा सेना के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस की आज 121वीं जयंती हैं। आज के दिन देश के हर कोने में सुभाष चंद्र की याद में कुछ न कुछ कार्यक्रम किये जाते हैं खास कर युवा वर्ग आज के कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेता है। सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में हुआ था. वह बचपन से ही पढ़ने में तेज थे और चाहते थे कि देश की आजादी के लिए कुछ किया जाए.
The valour of Netaji Subhas Chandra Bose makes every Indian proud. We bow to this great personality on his Jayanti. pic.twitter.com/Qrao1dnmQZ
— Narendra Modi (@narendramodi) January 23, 2018
महज 24 साल की उम्र में वे इंडियन नेशनल कांग्रेस के सदस्य बन गए थे। कुछ वर्ष तक कांग्रेस में रहने के बाद उन्हें लगने लगा कि कुछ युवाओं को संगठित किया जाये इसी के तहत उन्होंने महात्मा गांधी से अलग हट कर एक नया दल बना लिया जिसका नाम रखा आज़ाद हिन्द सेना। उनके बारे में कहा जाता है कि वे जिस जगह खड़े हो जाते उस जगह युवाओं का जमावड़ा लग जाता था अपनी लाइफस्टाइल और जीने के तरीके की वजह से वे हमेशा युवाओं के बीच आकर्षण का केंद्र रहे। सुभाष चंद्र बोस के बारे में कुछ ऐसी बातें है जो सदा हमें प्रेरणा देंगी। आज उनकी जयंती के अवसर पर हम उनकी कुछ खास बातों पर गौर करेंगे।
वर्दी से खास लगाव —युवाओं में जोश और ताकत लाने के लिए वे हमेशा अपनी वर्दी में ही रहते थे। कहा जाता है कि जिस वक्त उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापन की उसके बाद से ही वर्दी पहनने लगे थे. उन्हें अपनी वर्दी से सबसे ज्यादा प्यार था. आज भी उनकी वर्दी के चर्चे देश विदेश में प्रसिद्ध हैं।
On his jayanti, we remember Netaji Subhash Chandra Bose, a patriot, who inspires each of us even today. This verse, from the immortal INA marching song is as relevant today as it was then:
क़दम क़दम बढ़ाये जा
ख़ुशी के गीत गाये जा
ये ज़िंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाये जा pic.twitter.com/VWNcfX4C91— Office of RG (@OfficeOfRG) January 23, 2018
गांधी को बनाया राष्ट्रपिता- वैसे तो सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के बीच हमेशा वैचारिक मतभेद रहे बावजूद इसके सुभाष पहले व्यक्ति थे जिन्होंने गाँधी को राष्ट्रपिता बोलना शुरू किया था। यह बहुत कम लोगों को ही पता है कि उन्होंने महात्मा गांधी से कुछ मुलाकात के बाद ही उन्हें यह उपाधि दी. इसके बाद अन्य लोग भी गांधी जी को राष्ट्रपिता बोलने लगे. बोस ने रंगून के रेडियो चैनल से महात्मा गांधी को संबोधित करते हुए पहली बार राष्ट्रपिता कहा था. सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के विचारों से हमेशा ही असहमत रहने वालों में से थे. उनका मानना था कि ब्रिटिश सरकार को भारत से बाहर करने के लिए गांधी की अहिंसा की नीति किसी काम की नहीं है और इससे उन्हें आजादी हासिल नहीं होगी.
एमिली की ख़ूबसूरती के कायल —सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई शरत चंद्र बोस के पोते सुगत बोस ने सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर ‘हिज़ मैजेस्टी अपोनेंट- सुभाष चंद्र बोस एंड इंडियाज स्ट्रगल अगेंस्ट एंपायर’ किताब लिखी है. इसमें उन्होंने लिखा है कि एमिली से मुलाकात के बाद सुभाष के जीवन में नाटकीय परिवर्तन आया.सुगत बोस के मुताबिक इससे पहले सुभाष चंद्र बोस को प्रेम और शादी के कई ऑफ़र मिले थे, लेकिन उन्होंने किसी में दिलचस्पी नहीं ली थी. लेकिन एमिली की ख़ूबसूरती ने सुभाष पर मानो जादू सा कर दिया.उन्होंने ये भी लिखा है की ये प्यार की पहल सुभाष के तरफ से हुई थी। कैथोलिक परिवार की एमिली को अपने पिता को समझाने में बेहद मेहनत करनी पड़ी थी। हालाकि दोनों का साथ महज तीन साल का रहा।
उदासी में भगवत गीता थी सहारा —यह बहुत कम लोगों को पता है कि सुभाष चंद्र बोस को ब्रिटिश सरकार लोहा लेने और उन्हें देश से बाहर करने की प्रेरणा भगवत गीता से मिलती थी. वह जब भी उदास या अकेले होते थे तो भगवत गीता का पाठ जरूर करते थे. वह स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व और उनकी बातों से भी खासे प्रभावित थे.
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा
आज हिंद फौज की स्थापना करने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने युवाओं को अपनी सेना में शामिल करने की योजना बनाई. इसके लिए उन्हें देश के युवाओं से अनुरोध किया कि वह उनकी फौज में शामिल होकर उनका साथ दें. इसी समय उन्होंने तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा दिया था. बोस चाहते थे कि वह अपनी फौज की मदद से भारत को ब्रिटिश सरकार से आजाद कराएं.
मौत बनी रहस्य–सुभाष चंद्र बोस की मौत आज तक एक रहस्य की तरह ही है. भारत सरकार ने उनसे जुड़ी जानकारी जुटाने के लिए कई बार अलग-अलग देश की सरकार से संपर्क किया लेकिन उनके बारे कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई. सुभाष चंद्र बोस की मौत को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलित है लेकिन उनकी मौत को लेकर अभी तक कोई साक्ष्य किसी के पास नहीं हैं.
वेब टीम IBC24
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