पर्यावरण संरक्षित रखने में समाज की सहभागिता आवश्यक, पर्यावरण और विकास दोनों को साधने वाली जमीनी योजना तैयार करें... | environment special

पर्यावरण संरक्षित रखने में समाज की सहभागिता आवश्यक, पर्यावरण और विकास दोनों को साधने वाली जमीनी योजना तैयार करें…

पर्यावरण संरक्षित रखने में समाज की सहभागिता आवश्यक, पर्यावरण और विकास दोनों को साधने वाली जमीनी योजना तैयार करें...

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 04:16 PM IST, Published Date : June 5, 2019/5:33 am IST

लेखक, सचिन शर्मा

हर साल पर्यावरण दिवस मनाया जाता है और पर्यावरण को बचाने के संकल्प होते हैं। इस दिशा में पहल भी की जाती है और उनका असर भी दिखता है लेकिन दुनिया में तेजी से हो रहे विकास के साथ ही पर्यावरण को संतुलित रख पाने की हमारी कोशिश पूरी तरह मुकम्मल नहीं हो पा रही। दुनिया के कुछ इलाकों में अब ऐसी स्थिति है कि पर्यावरण वेंटीलेटर में है। बीजिंग में कनाडा की कंपनियां शुद्ध हवा बेच रही है। दिल्ली में घने कोहरे के दिनों में अलर्ट जैसी स्थिति होती है। यह बहुत कठिन समय है और जिस तेजी से विकास हो रहा है पर्यावरण प्रदूषण का स्तर भी उसी तेजी बढ़ने की आशंका बनती है। ऐसे में जब तक पर्यावरण के संबंध में गहरी जमीनी सोच से काम नहीं होगा तब तक बेहतर नतीजों की संभावनाएं नहीं जन्म लेंगी।

ऐसे में छत्तीसगढ़ शासन ने नरूवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी के रूप में पर्यावरण और विकास दोनों को साधने वाला नारा गढ़ा है और जमीनी स्तर पर इस पर काम भी शुरू हो गया है। फर्टिलाइजर हमारी जमीन की ऊर्वरता को नष्ट कर रहे हैं। कुछ समय बाद हमारी जमीन वंध्या हो जाएगी। गरूवा के संरक्षण से और घुरूवा निर्माण से जमीन संरक्षित होगी, पशुधन का विकास होगा। घुरूवा के संवर्धन से जो गोबर खाद बनाया जाएगा, उससे वायुमण्डल में नाइट्रोजन चक्र नियंत्रित होगी, जो प्रदूषण को नियंत्रित करने में सहायक होगी। इससे ग्रामीण आजीविका मजबूत होगी। इससे शहरीकरण भी रूकेगा। कांक्रीट के बढ़ते जंगल थमेंगे तो गांव भी गुलजार होंगे और हम परंपरागत सुखद जीवन की ओर आधुनिक जीवनशैली के साथ संतुलन बनाते हुए कार्य कर सकेंगे। सोचिए कितना सुंदर एहसास होगा, अपनी बाड़ी में आम पेड़ के तले माइक्रोमैक्स मोबाइल में फोर जी नेटवर्क के साथ नेटफ्लिक्स पर एक अच्छी फिल्म का आनंद।

छत्तीसगढ़ सरकार का दूसरा सार्थक प्रयास नदियों के पुनरूद्धार अभियान को लेकर चल रहा है। हमारी प्राणदायिनी नदियां धीरे-धीरे प्रदूषण का शिकार होकर मृतप्राय हो रही हैं। रायपुर और दुर्ग शहर के पास बसी खारून और शिवनाथ जैसी नदियां गहन औद्योगिक प्रदूषण की भी शिकार हैं। तेजी से पनपते शहरीकरण से इनके किनारों की हरियाली भी घटी है। रिवर रिज्यूवनेशन कमिटी का गठन कर इन नदियों के संरक्षण का प्रयास किया जा रहा है। इनमें मिलने वाली नालों के पानी का सीवरेज ट्रीटमेंट एवं स्थानीय स्तर पर हरियाली को बढ़ावा देकर इन नदियों को पुनरूद्धार किया जा सकेगा। राज्य सरकार द्वारा अरपा, इन्द्रावती नदियों को बचाने के लिए विशेष प्रयास किये जा रहे हैं।

देश सहित छत्तीसगढ़ के वायु मण्डल में सबसे बड़ा खतरा बढ़ता कार्बन का प्रतिशत है। प्रो. शम्स परवेज के अनुसार इसका प्रमुख कारण लाखों टन लो ग्रेडेड कोयलों का प्रतिदिन दहन होना और खुले में कचरा जलाया जाना है। जिससे स्वाभाविक रूप से वायुमंडल में कार्बन का स्तर बढ़ रहा है। कार्बन मौसम चक्र मो बदल देता है और ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने लगती है। अच्छी बात यह है कि पर्यावरण संरक्षण मंडल द्वारा इसे रोकने के लिए पर्याप्त कदम उठाये गए हैं। कार्बन सहित अन्य प्रदूषित तत्वों पर रोक लगाने एवं चिमनी उत्सर्जन की निगरानी रखने 17 प्रकार के वायु प्रदूषकों को नियंत्रित रखने में 163 उद्योगों में आन लाइन इमीशन मानिटरिंग सिस्टम की स्थापना की गई है। सभी रोलिंग मिलों में भी आनलाइन इमीशन सिस्टम लगाया गया है। डाटा मानिटरिंग एवं डिस्प्ले हेतु चिप्स के माध्यम से डैशबोर्ड विकसित करने की कार्रवाई की जा रही है। वायु प्रदूषण में कमी लाने हेतु 102 आनलाइन कंटीन्यूअस एम्बियंट एयर क्वालिटी मानिटरिंग स्टेशन स्थापित किए गए हैं। रायपुर में सतत परिवेशीय वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए 2 अतिरिक्त स्टेशनों की स्थापना की जा रही है।

मंडल द्वारा प्रदेश में स्थापित उद्योगों के रियल टाइम आनलाइन एमिशन मानिटरिंग डाटा प्राप्त कर उद्योगों के प्रदूषण पर निगरानी की जा रही है। उल्लंघन करने वाले उद्योगों पर तत्काल कार्रवाई की जा रही है। तत्काल कार्यवाही के लिए सेंट्रल सर्वर की स्थापना की जा रही है। पटाखों के माध्यम से भी प्रदूषण फैलता है इसलिए 1 दिसंबर से 31 जनवरी की अवधि में पटाखों के जलाने पर रायपुर, भिलाई, दुर्ग, बिलासपुर, कोरबा तथा रायगढ़ में प्रतिबंध लगाया गया, जिसके प्रभावी परिणाम देखने को मिले।

प्लास्टिक वेस्ट डिस्पोजल बड़ी समस्या है। कहते हैं कि प्लास्टिक को स्वतः नष्ट होने में सैकड़ों बरस का समय लग जाता है। इसलिए पूरे राज्य में प्लास्टिक कैरी बैग्स, शार्ट लाइफ पीवीसी, क्लोरिनेटेड प्लास्टिक आइटम यथा बैनर, फ्लैक्स, होर्डिंग्स, फोम बोर्ड कैटरिंग हेतु प्रयुक्त पीवीसी प्लास्टिक आइटम के उपयोग पर 27 सितंबर 2017 से प्रतिबंध लगा दिया गया है। अक्सर निर्माण कार्य वाले स्थलों में भारी मात्रा में डस्ट उत्पन्न होती है। ऐसे स्थलों को घेरने, जाली से कवर करने, जल छिड़काव करने एवं निर्माण सामग्रियों को ढंके हुए वाहनों में परिवहन कराया जाना सुनिश्चित किया जा रहा है। फ्लाइ एश बड़ी समस्या थी लेकिन अब इसका संसाधन के रूप में उपयोग हो रहा है। 2 जून 2017 को रायपुर डिक्लेरेशन हुआ जिसमें इसके सार्थक उपयोग पर चर्चा की गई।

बीच में अखबारों में और टेलीविजन में सैटेलाइट तस्वीरें प्रकाशित-प्रसारित की गई थीं जिसमें हरियाणा और पंजाब में फसल अपशिष्ट जलाने से वायुमंडल में आए प्रभाव को दिखाया गया था। इसके कुप्रभावों को देखते हुए छत्तीसगढ़ में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया है और इसका सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित किया जा रहा है। प्रदेश में नगरीय ठोस अपशिष्ट खुले में जलाना प्रतिबंधित है। रायपुर, भिलाई एवं कोरबा में वायु गुणवत्ता के सुधार हेतु राज्य स्तरीय मानिटरिंग कमिटी का गठन किया गया है।

बच्चों में पर्यावरण के संबंध में जागरूकता बेहद अहम है। छत्तीसगढ़ में इसे लेकर बड़ा काम हो रहा है। पर्यावरण संरक्षण मण्डल की पहल पर 6750 स्कूलों में इको क्लब का गठन किया गया है और लगभग छह लाख बच्चे पर्यावरण संरक्षण अभियान से जुड़े हुए हैं। इसका नतीजा मिल रहा है। 22 से 28 अप्रैल को इस साल और पिछले वर्ष के वायु गुणवत्ता सूचकांक के आंकड़ों की तुलना की गई। भिलाई में 0.06 प्रतिशत, बिलासपुर में 36.89 प्रतिशत, कोरबा में 51.44 प्रतिशत, तथा रायपुर में 0.36 प्रतिशत की गिरावट आई। इसी प्रकार 15 अप्रैल से 21 अप्रैल तक पिछले वर्ष की तुलना में इस बार बिलासपुर में 24.58 प्रतिशत, कोरबा में 20.12 प्रतिशत, रायपुर में 0.21 प्रतिशत और भिलाई में 1.30 प्रतिशत की गिरावट आई।

अपने परिवेश को बेहतर करने की जिम्मेदारी केवल शासन की नहीं है। नागरिक के रूप में हम सबकी हिस्सेदारी के बगैर यह संभव नहीं है। अनावश्यक बिजली का खर्च न करें। सबसे जरूरी काम पौधे लगाएं। हमें सामाजिक वानिकी और कृषि वानिकी के साथ-साथ अर्बन फारेस्ट विकसित करने की आवश्यकता है। हमको ईश्वर ने प्रकृति की सुंदर संपदा दी है। हमारा भी कर्तव्य है कि प्रकृति को इसका कुछ अंश वापस करें। आपके द्वारा लगाया गया और पोषित किया गया एक-एक पौधा प्रकृति के लिए संजीवनी का कार्य करेगा।

 

सचिन शर्मा

सहायक जनसंपर्क अधिकारी