आगर-मालवा। बंदरों को इंसानों का पूर्वज माना जाता है। लेकिन इन्हीं बंदरों को देखकर लोग भाग जाते हैं, डर जाते हैं। आगर-मालवा में एक ऐसा शख्स है जो बंदरों से डरता नहीं बल्कि वो बंदरों का दोस्त है। उसे बंदरों के बीच रहना पसंद है, वो बंदरों को एक आवाज और इशारे से अपने पास बुला लेता है।
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इंसान के साथ खेलते बंदर,कभी गोद में बैठ जाते हैं, कभी कंधे पर तो कभी लोकेंद्र सिंह के हाथ में रखी क़िताब को देखने की ज़िद करते हैं। बंदरों से उनका 40 साल पुराना याराना है। झाबुआ के उत्कृष्ट स्कूल में पदस्थ लोकेंद्र सिंह प्रकृति प्रेमी हैं।बंदरों से इतना लगाव है, कि लोकेंद्र सिंह अब उनकी भाषा भी समझते हैं।
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इस इलाके के प्रसिद्ध बैजनाथ मंदिर के पुजारी मुकेश भी पिछले 5 सालों से लोकेंद्र सिंह को बंदरों के साथ देख रहे हैं, अब उन्हें भी बंदरों से डर नहीं लगता है। ख़ास बात ये है, कि लोकेंद्र रोज़ाना इन्हीं बंदरों के साथ नहीं बल्कि अलग-अलग गुट के बंदरों के साथ वक्त बिताते हैं। साल 2018 में राज्यपाल से उत्कृष्ट शिक्षक का सम्मान हासिल करने वाले लोकेंद्र कहते हैं, कि बंदरों को समझने और उनके संरक्षण की जरूरत है। लोकेंद्र सिंह से सीख लेने की ज़रूरत है, ताकि बेजुबान जानवरों को प्यार से अपना बनाया जा सके और उनका संरक्षण भी किया जा सके।
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