पोला का त्यौहार : किसानों ने की बैलों की पूजा, फसल ने गर्भ धारण किया | Festivals of Pola: Farmers worshiped the oxen, harvested the dam's womb

पोला का त्यौहार : किसानों ने की बैलों की पूजा, फसल ने गर्भ धारण किया

पोला का त्यौहार : किसानों ने की बैलों की पूजा, फसल ने गर्भ धारण किया

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:08 PM IST, Published Date : August 21, 2017/3:08 pm IST

 

धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के किसानों के सबसे प्रमुख त्यौहारों में से एक है पोला का त्यौहार। इस पर्व के दिन किसान ना सिर्फ अपने खेती किसानी के साथी बैलों को सजाधजाकर पूजा अर्चना करते है। बल्कि आज के दिन किसान अपने खेती किसानी के सारे काम बंद रखते है। वहीँ आज के दिन घर-घर में छत्तीसगढ़ी पकवान बनाए जाते है। बरसों से चले आ रहे इस पर्व को किसानों का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। 

पोला,,,,एक ऐसा त्यौहार जिस दिन किसान अपने साथी याने की बैलों की पूजा अर्चना कर उसके प्रति अपने अथाह प्रेम को प्रकट करता है। हर वर्ष के भादो माह की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह पर्व छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्वों में से एक है। इस दिन किसान सुबह से ही अपने बैलों को नहला धुलाकर पहले उनकी पूजा अर्चना करते है। फिर उन्हें घर में आज के दिन बने प्रमुख छत्तीसगढ़ी पाकवानों में जिनमे ठेठरी, खुर्मी, गाठियाँ, और पापड़ी का भोग लगाया जाता है। 

जानकारों के मुताबिक ऐसी मान्यता है की आज के दिन से ही किसानों के बोये धान के फसल गर्भ धारण करते है। याने की उनके फसल में बीज पड़ता है। जिसकी वजह से किसान आज के दिन अपने खेत भी नही जाते है। वहीं ग्रामीण इलाकों में आज के दिन बैल दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है। जहां एक ओर किसान बैलों की पूजा अर्चना करते है। वहीँ घर की महिलाएं सुबह से ही इस ख़ास मौके पर बनाए जाने वाले ख़ास तरह के पकवानों की तैयारियों में व्यस्त रहती है।

आज के दिन ठेठरी, खुर्मी, गुजिया और देहरौरी जैसे प्रमुख छत्तीसगढ़ी पकवानों का निर्माण किया जाता है और फिर इसी का बैलों को भोग लगाकर फिर परिवार में बांटने की परम्परा है। वहीँ इस दिन कुम्हारों के द्वारा बनाए गए मिट्टी के नदियाँ बैल और चुक्की पोर की भी पूजा की जाती है। फिर बच्चे मिट्टी के बने बैलों को फांदकर उसे खेलते है। खेती किसानी के बदलते दौर में जहां बैलों की जगह आधुनिक तकनीकि ने ले ली है। बावजूद उसके आज भी बैलों की महत्ता कम नही हुई है। ऐसे में परंपरा के जरिये ही सही लेकिन किसान और बैल के ये बरसों पुराने रिश्ते आज भी जीवित नजर आते है