महुआ और जड़ी-बूटियों से वनवासी महिलाओं ने तैयार किया सैनेटाइजर, 8 माह में कमाए 8 लाख | Forest dwellers prepared sanitizer from Mahua and herbs, earned 8 lakh in 8 months

महुआ और जड़ी-बूटियों से वनवासी महिलाओं ने तैयार किया सैनेटाइजर, 8 माह में कमाए 8 लाख

महुआ और जड़ी-बूटियों से वनवासी महिलाओं ने तैयार किया सैनेटाइजर, 8 माह में कमाए 8 लाख

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:56 PM IST, Published Date : February 17, 2021/7:33 am IST

रायपुर। महुआ, सौंप, धनिया, जीरा और ऐसी ही लगभग आधा-दर्जन जड़ी-बूटियों से तैयार खास तरह के सैनेटाइजर ‘मधुकम’ ने जशपुर की वादियों में उम्मीदों की खुशबू बिखेर दी है। महुआ के गुणों से पीढियों से परिचित वनवासी महिलाओं ने अपने पारंपरिक ज्ञान के साथ यह व्यावसायिक नवाचार किया है, जो बेहद सफल रहा। ‘मधुकम’ तैयार करने वाली महिलाओं के समूह के इस उत्पाद को बाजार ने जमकर सराहा है। आठ माह में यह समूह सैनेटाइजर बेचकर 8 लाख रुपये से ज्यादा आमदनी अर्जित कर चुका है।

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कोरोना संकट के दौर में आवश्यकता और मांग के अनुरूप महुआ फूल से ‘मधुकम‘ का निर्माण सीनगी समूह की महिलाओं की जिन्दगी में अहम बदलाव लेकर आया है। यह महिला स्व-सहायता समूह जशपुर जिले के वन धन विकास केन्द्र पनचक्की में कार्यरत है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्वयं समूह की गतिविधियों का अवलोकन कर इसकी सराहना कर चुके हैं।

वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री मोहम्मद अकबर के मार्गदर्शन में वन विभाग द्वारा राज्य में वनवासियों को वनोपजों के संग्रहण से लेकर प्रसंस्करण आदि के जरिए अधिक से अधिक लाभ दिलाने के लिए निरंतर कार्य किया जा रहा है। वन धन विकास केन्द्र के अंतर्गत सीनगी समूह की महिलाएं भी महुआ फूल के प्रसंस्कण में पारंगत हैं। इनके द्वारा महुआ फूल से निर्मित सैनेटाइजर महामारी के नियंत्रण के लिए निर्धारित मापदण्ड के अनुरुप पाया गया है। समूह द्वारा अब तक 7000 लीटर ‘मधुकम‘ का निर्माण किया जा चुका है। वनमंडलाधिकारी जशपुर जाधव कृष्ण ने बताया कि सैनेटाइजर के निर्माण की शुरूआत विगत 22 मई से की गई थी।

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सैनेटाइजर निर्माण के लिए सर्वप्रथम महुआ फूल की साफ-सफाई की जाती है। इसके बाद महुआ को पानी में भिगोया जाता है। इसमें देशी गुड, एक जंगली वृक्ष का छाल का पावडर ‘धुपी’ मिलाया जाता है। इसके बाद अरवा चावल एवं कई जड़ी-बूटियों से तैयार औषधि ‘रानू’ मिलाई जाती है। सुगंध के लिए सौंप, धनिया, जीरा, लेमनग्रास, पुदीना, जंगली धनिया आदि मिलाकर लगभग सात दिनों तक किण्वन की रासायनिक क्रिया पूर्ण की जाती है। इसके बाद मिट्टी एवं एल्यूमिनियम के पात्र में इसे चूल्हे पर रखकर पारंपरिक पद्धति से सैनेटाइजर का निर्माण किया जाता है। बाहरी रसायनों का उपयोग नहीं किये जाने के कारण इस सैनेटाइजर को स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित माना जाता है।

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महुआ फूल से सेनिटाईजर निर्माण के इस प्रक्रिया में सिनगी स्व सहायता समूह की 10 आदिवासी महिलाएं कार्यरत हैं, जो कोरोना महामारी के नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं हैं। सेनिटाईजर निर्माण के लिए नियंत्रक खाद्य एवं औषधि प्रशासन छत्तीसगढ़ द्वारा लाइसेंस भी जारी कर दिया गया है। माह जनवरी के अंत तक वन धन विकास केंद्र के समूह द्वारा 7000 लीटर मधुकम सैनेटाइजर का निर्माण कर 6019 लीटर का विक्रय स्थानीय शासकीय संस्थाओं एवं लघु वनोपज संघ के मार्ट को किया गया है। अब तक 31.19 लाख रूपए का उत्पाद तैयार किया जा चुका है, जिसमें से 26.82 लाख रूपए के सैनेटाइजर की बिक्री हो चुकी है। इससे समूह को पारिश्रमिक एवं लाभांश मिलाकर कुल 8.29 लाख रूपए प्राप्त हुए हैं।

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