गांधी जयंती: संस्कारधानी में "बापू" ने स्वीकारी थी पराजय, विश्व प्रसिध्द पर्यटन स्थल को देखकर हुए थे मुग्ध | Gandhi Jayanti: "Bapu" admitted defeat in the sanskaaradhaanee Was fascinated by seeing world famous tourist place

गांधी जयंती: संस्कारधानी में “बापू” ने स्वीकारी थी पराजय, विश्व प्रसिध्द पर्यटन स्थल को देखकर हुए थे मुग्ध

गांधी जयंती: संस्कारधानी में "बापू" ने स्वीकारी थी पराजय, विश्व प्रसिध्द पर्यटन स्थल को देखकर हुए थे मुग्ध

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:42 PM IST, Published Date : October 2, 2019/1:12 am IST

जबलपुर। सारा हिंदुस्तान बापू की 150वीं जयंती मना रहा है…यूं तो मध्यप्रदेश समेत जबलपुर भी बापू का कई दफा आना या गुज़रना हुआ…उससे जुड़े कई दिलचस्प किस्से हैं…चलिए इतिहास के पन्नों में पलटते हैं और 3-4 दफा जबलपुर आए महात्मा गांधी से कुछ किस्से ताजा करते हैं।

हाथों में लाठी,शरीर पर चंद कपड़े और अहिंसा का पाठ लिए बापू के पीछे सारा हिंदुस्तान चल पड़ा..जीवन की कई यात्राओँ के दौरान महात्मा गांधी का चार बार जबलपुर आना हुआ..बात उस दौर की है जब असहयोग आंदोलन और राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति मध्य भारत मे जागृति लाने के लिए बापू देशभ्रमण कर रहे थे। बापू का पहला जबलपुर आगमन 20 मार्च 1921 को हुआ था। शहर आए बापू उन दिनों खजांची चौक में स्थित श्याम सुंदर भार्गव की कोठी में रुके थे,यहीं से गांधी जी ने जबलपुर में राष्ट्रीय आंदोलन की अलख जगाने नवीन ऊर्जा का संचार किया। महात्मा गांधी को देखने सुनने जबलपुर से लगे हुए करीब डेढ़ सौ से ज्यादा गांवों के हजारों लोग आज के गोल बाजार इलाके में हुई विशाल आमसभा में पहुचे ।

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3 दिसंबर 1933 को गांधीजी हरिजन और छुआछूत आंदोलन लेकर फिर जबलपुर आए, उनके साथ महादेव भाई देसाई और कनु गांधी भी मौजूद थे। इस दौरान वे सांठिया कुआं स्थित ब्यौहार राजेंद्र सिंह के घर पर ठहरे थे, राजेंद्र जी का परिवार आज भी उन पलों को भूला नहीं है। उस दौरान बापू जबलपुर में 7 दिनों तक ब्यौहार पैलेस में रहे। उस समय गांधी जी ने कई महत्वपूर्ण बैठकें जबलपुर में कि जिनमें शामिल होने जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल जैसे दिग्गज भी संस्कारधानी आए ।
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वैसे संस्कारधानी की तारफी करने वाले बापू को अपने जीवन की सबसे करारी हार भी यहीं मिली। त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में तत्कालीन अध्यक्ष नेता जी सुभाष चंद्र बोस जहां दूसरी बार अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ रहे थे,तो वहीं महात्मा गांधी ने अपने सबसे चहेते पट्टा बी सीतारमैया को चुनाव लड़ाने का ऐलान किया जो कि नेता जी सुभाष चंद्र बोस से हार गए। उनकी इस हार की जिम्मेवारी महात्मा गांधी ने ली।

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27 फरवरी 1941 और 27 अप्रैल 1942 को गांधीजी का जबलपुर प्रवास हुआ था, कांग्रेस मीटिंग में इलाहाबाद जाने के दौरान यहां कुछ समय के लिए रुके गांधी जी भेड़ाघाट भी घूमने गए…गांधी जी को देखने-सुनने बलदेव बाग स्थित कोठी में लोगों का तांता लगने लगा…महात्मा गांधी जब-जब जबलपुर आए उन्होंने संस्कारधानी जबलपुर की जमकर तारीफ की। महाकौशल ने भी गांधी के आह्वान पर आजादी की लड़ाई में अपनी अहम भूमिका निभाई।

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