धर्म। गणेशजी की महिमा अपंरपार है। भगवान गणेश भोले भाले हैं पर बड़ी ही बुद्धिमानी से हर कार्य करते हैं। एक प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार गणेश जी कुबेर के घर में छिपे थे। वे वहां से निरंतर बाहर निकलने केलिए प्रयास कर रहे थे परन्तु उनके बड़े पेट के कारण वह लड़खड़ा कर गिर गए।
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चंद्रमा यह सब देखकर रहा था और गणेशजी को इन परस्थितियों देखकर हंसने लगा। यह देख गणेश जी को क्रोध आ गया और उन्होंने चन्द्रमा को श्राप दिया कि अब तुम्हारा रंग काला हो जाएगा, जिससे कि तुम अंधेरी रात में अपनी रोशनी को नहीं देख पाओगे।
चन्द्रमा को अपनी गलती का प्रायश्चित हुआ और वे गणेशजी से माफ़ी मांगने लगे। तब गणेश जी ने कहा कि मैं तुम्हें तुम्हारी रोशनी वापस देता हूं, परन्तु तुम्हें हर 15 दिन में उतार चढ़ाव का सामना करना होगा। जिसे हम पूर्णिमा -अमावस्या के नाम से जानते हैं।
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गणेश जी की एक और कथा आपको बताते हैं, प्राचीनकाल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था, उसके कोप से स्वर्ग और धरती पर त्राहि-त्राहि मची हुई थी। ये दैत्य मुनि-ऋषियों और साधारण मनुष्यों को जिंदा निगल जाता था। इस दैत्य के अत्याचारों से त्रस्त होकर इंद्र सहित सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि ने महादेव से यह प्रार्थना की, वे अनलासुर के आतंक का खात्मा करें।
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तब महादेव ने कहा कि दैत्य अनलासुर का नाश केवल श्री गणेश ही कर सकते हैं। फिर सबकी प्रार्थना पर श्री गणेश ने अनलासुर को निगल लिया, तब उनके पेट में बहुत जलन होने लगी। कई प्रकार के उपाय करने के बाद कश्यप ऋषि ने 21 दूर्वा एकत्र कर समूह बनाकर श्री गणेश को खाने को दी, तब कहीं जाकर उनके पेट की जलन शांत हुई। श्री गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा तभी से आरंभ हुई।
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