कार्तिक पूर्णिमा के दिन रावी नदी के किनारे तलवंडी गांव में मेहता कालू जी के यहां जन्में बालक को देखकर शायद ही किसी ने सोचा हो की यह बालक आगे जाकर एक ऐसे धर्म की स्थापना करेगा जो दुनिया को एक परमात्मा की राह दिखाएगा। बालक नानक बचपन से ही प्रखर बुद्धि के धनी रहे और सांसारिकता के पाश उन्हे कभी अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर पाए। कहा जाता है कि गुरू नानक देव जब 7 या 8 साल के थे तब उनके अध्यापक उनके प्रशनों से हारकर उन्हें ससम्मान वापस घर छोड़ने आए थे। वैसे नानक देव का बचपन ऐसी कई चमत्करी घटनाओं का गवाह रहा जिनके कारण लोग ने उन्हें बचपन में ही दिव्य पुरूष की संज्ञा दे दी थी। 16 वर्ष की उम्र में परिवार के दबाव में शादी करने वाले गुरू नानक देव ने ठीक 16 साल मतबल 32 साल की उम्र में घर त्याग कर अपने 4 साथियों के साथ तीर्थ यात्रा पर निकल पडे।
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उन्होंने घूम-घूम कर उपदेश देना शुरू किया और 1521 तक तीन यात्राचक्र पूरे किए, उन्होंने इन यात्राओं में भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब तक की यात्रा की। गुरू की इन्ही यात्राओं को पंजाबी में उदासियां कहा जाता है। मूर्तिपूजा, कुसंस्कारों और रूढ़िवादियों के कडे विरोधी नानक देव के एक ईश्वर की उपासना का असर तत्कालिक हिन्दू और मुसलमान दोनों मतों पर पढ़ा जिससे खफा होकर इब्राहीम लोदी ने उन्हें कई दिनों तक कैद रखा। जीवन के अंतिम पडाव में उनकी ख्याति बहुत तेजी से फैली और उनके विचारों ने दूर-दूर तक लोगों को आकर्षित किया। अपने अंतिम समय में उन्होंने करतारपुर नामक नगर बसाया जो इस समय पाकिस्तान में है और यही से उन्होंने अपने लिए परलोक जाने का रास्ता तैयार किया है। गुरू नानक देव के देवलोक गमन के बाद उनके शिष्य लहना ने उनके विचारों को लोगों तक पहंुचाया जिन्हें बाद में गुरू अंगद देव के नाम से जाना गया। इसलिए उनके श्रद्धालु उनकी जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में मनाते हैं
वेब डेस्क, IBC24
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