भोपाल। कहते हैं तानसेन का यह सुरीला गला ग्वालियर में इमली के पत्ते की देन था। जिसके नीचे बैठकर वे रियाज करते थे। कई दशक पहले कुंदनलाल सहगल भी इस इमली की पत्तियां खाने ग्वालियर आए थे। पुराना पेड़ टूटा, नया अपने आप लग गया।
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जिसकी पत्तियों के दीवाने आज भी है। वो इमली का पेड़ ग्वालियर किले से थोड़ी दूर एक मैदान में लगा था। तानसेन इसी पेड़ के नीचे बैठकर संगीत का रियाज करते थे और ध्रुपद के राग सुनाते थे। कहते हैं कि तानसेन इसी इमली के पत्ते खाकर अपनी आवाज को सुरीला करते थे। बाद में कई गायकों ने इसी इमली के पत्ते खाए और संगीत की दुनिया में नाम कमाया। यहां तक कि केएल सहगल और पंडित जसराज भी इसे खाने के लिए आ चुके हैं।
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