बिलासपुर। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के प्रमुख अजीत जोगी के जाति प्रकरण में आज उच्च न्यायालय का आदेश आया है। जिसमें कोर्ट ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और दो अन्य की हस्तक्षेप आवेदन पर कहा कि तीनों ‘आवश्यक पक्षकार’ की श्रेणी में नहीं आते हैं। तीनों हस्तक्षेपकर्ताओं की भूमिका केवल न्यायिक स्थिति को स्पष्ट करने तक ही सीमित रहेगी। इस मामले में 6 नवम्बर 2019 को अगली सुनवाई होगी। जस्टिस आरसी सामंत की कोर्ट से मामले में फैसला आया है।
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बता दें कि जोगी की जाति को लेकर लंबे अरसे से विवाद चला आ रहा है। जोगी को बीजेपी के शासनकाल में आदिमजाति कल्याण विभाग की उच्चस्तरीय छानबीन समिति ने आदिवासी नहीं माना था। इसके खिलाफ जोगी ने हाई कोर्ट बिलासपुर में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने हाईपावर कमिटी अधिसूचित न होने की वजह से इसे विधि अनुरूप नहीं माना था। हाईकोर्ट के निर्देश पर राज्य शासन ने 21 फरवरी, 2018 को फिर से हाईपावर कमिटी का गठित की थी।
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छानबीन समिति ने 23 अगस्त को अपनी रिपोर्ट में अजीत जोगी को आदिवासी मानने से इनकार कर दिया और उनके सभी जाति प्रमाण पत्रों को निरस्त कर दिया। कमिटी ने तय किया है कि जोगी को अनुसूचित जनजाति के लाभ की पात्रता नहीं होगी। बिलासपुर हाईकोर्ट के निर्देश पर अजीत जोगी ने 21 अगस्त को हाईपावर छानबीन समिति के समक्ष अपने बयान दर्ज कराए थे। उसके बाद ही समिति का फैसला आया है। समिति ने अपने फैसले पर अमल करने के जिलाधिकारी बिलासपुर को कार्रवाई के निर्देश दिए थे। उसी के आधार पर कलेक्टर कार्यालय के तहसीलदार टीआर भारद्वाज ने सिविल लाइन थाने में शिकायत दर्ज कराई थी।
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