खजुराहो में भक्तों का लगा मेला, हर मंदिर के पीछे छिपा है इतिहास | khajuraho chaturbhuj mandir

खजुराहो में भक्तों का लगा मेला, हर मंदिर के पीछे छिपा है इतिहास

खजुराहो में भक्तों का लगा मेला, हर मंदिर के पीछे छिपा है इतिहास

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 03:37 AM IST, Published Date : March 3, 2019/10:39 am IST

खजुराहों। खजुराहो जो हजारों साल पुराने चंदेलकालीन मंदिरों के कारण आज विश्व विख्यात वर्ल्ड हेरिटेज यूनेस्को साईट के रूप में जाना जाता है। और इतिहास में यहाँ 85 मंदिरों के मौजूद होने के प्रमाण हैं जिनमे से आज करीब 25 मंदिर ही मौजूद दिखाई दी हैं। कहा जाता है कि चन्देल कालीन राजाओं के इन मंदिरों में सिर्फ एक मतंगेश्वर मंदिर का निर्माण पूजा-पाठ के उद्देश्य से किया गया था और जहां आज भी धार्मिक रीती रिवाज से पूजा-अर्चना की जाती है मंदिर के पुजारी ने बताया कि यह मंदिर चंदेल कालीन मंदिरों में सबसे ज्यादा पुराना है जिसका निर्माण पूजा पाठ करने के उद्देश्य से बनाया गया था जहाँ आज भी रीति रिवाज से पूजा पाठ होती आ रही है।
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खजुराहो के अन्य मंदिरों की तरह इस मंदिर का भी अपना अलग इतिहास और कथाएँ प्रचलित है। जिनमे से मर्कतेश्वर नाम होने की भी अपनी मिथक है .और अपनी-अपनी भ्रांतियां है। जहां लेखों के अनुसार शिवलिंग में मरकत मणि होने का कारण राजा चंद्रदेव द्वारा राज्य की सुरक्षा के लिए दबाया होना बताया वहीँ पौराणिकता को देखें तो इस शिवलिंग में युधिस्ठिर के पास इस मरकत मणि होने के बाद उन्होंने इस शिवलिंग में इस मणि को दबा दिया था। जिसके कारण यह शिवलिंग ठंडा रहता है और शिवलिंग को गले लगाया जाताहै। गले लगाते समय लोगों के हांथों में सुन्न का अहसास शिवलिंग में मरकत मणि होने के प्रमाण माने जाते है।
बताया जाता है कि युधिस्ठिर के पास एक मूर्ति थी जिसमे मरकत मणि थी जिसे युधिस्ठिर ने इस शिवलिंग में दबा दिया था जिसका अहसास शिवलिंग को स्पर्श करने पर होता है।शिवरात्रि के अवसर पर मतंगेश्वर महादेव मंदिर की महत्त्वता और भी अधिक बढ़ जाती है। महाशिवरात्रि के दिन भक्तों का तांता मंदिर में लगा रहता है। आधी रात से ही भक्त चंदेल कालीन पबित्र शिवसागर तालाब में स्नान कर जल अर्पित करते हैं। वहीं शिवरात्रि के दिन विशेष पूजा अर्चना का आयोजन भी किया जाता है। वहीं बुंदेलखंड के सबसे पुराने मेले महाशिवरात्रि मेले का भी आयोजन शिवरात्रि के दिन से किया जाता है।

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शिव के दुसरे दुर्लभ रूप जिसे त्रिभंग रूप कहा जाता है के भी दर्शन होते है। जो सिर्फ खजुराहो के चतुर्भुज मंदिर में ही देखने को मिलता है। .हालांकि इस मंदिर में आज पूजा अर्चना नहीं की जातीहै। लेकिन वर्ल्ड यूनेस्को साईट में शामिल है जो वर्ल्ड यूनेस्को साइट्स से लगभग 2 किलोमीटर दूर जटकरा गांव से दक्षिण दिशा में और लावण्या घाटी के मध्य स्थित है। जिसका निर्माण भी चंदेलकालीन समय में 1100 ई. में किया गया था जो भगवान शिव को समर्पित मंदिर है। भगवान शिव की प्रतिमा से सुशोभित मंदिर जिसमे स्थापित विशाल प्रतिमा जिसकी ऊंचाई लगभग 2.75 मीटर (लगभग 9 फुट) बताई जाती है ! खजुराहो पश्चिमी मंदिर समूह की बात की जाए तो इन मंदिरों में सिर्फ दो मंदिर हैं जो पश्चिमी मुखी है।जिनमे से चतुर्भुज मंदिर एक है।

 

जिसमे भगवान् शिव की 2.75 मीटर की विशाल प्रतिमा स्थापित है। चतुर्भुज मंदिर की मुख्य मूर्ति को देखा जाए तो यह अपने आप में अनोखी और विशेष मूर्ति है जो भगवान् शिव को समर्पित है। मूर्ति के पास 6 स्टेप्स बनाये गए है जिनका उपयोग प्राचीन समय में शिव की विशाल प्रतिमा का जलाभिषेक किया जाता था। प्रतिमा के मुकुट को अगर देखा जाए तो उसे मणियों से सुसज्जित किया गया है और मुकुट के एक तरफ से गंगा और एक तरफ से यमुना को निकलते हुए देखा जा सकता है। वहीँ श्रृंगार के रूप में हार,हाथ में कमंडल और जनेऊ धारण किये हुए देखा जा सकता है और प्रतिमा की वक्ष को देखा जये तो कौस्तुभ मणि को भी देखा जा सकता है। पैरों के पास अगर देखें तो दो अप्सरों को भी देखा जा सकता है…और शिव की चतुर्भुजी प्रतिमा के स्वरुप को इस मंदिर में देखा जा सकता है… भगवान शिव की त्रिभंग स्वरुप की एकमात्र अनोखी प्रतिमा सिर्फ इसी मंदिर में ही देखी जा सकती है।