जेल में 6 सालों से बेगुनाही की सजा काट रही खुशी को मिला इंटरनेशनल स्कूल में दाखिला | khushi admitted in International School

जेल में 6 सालों से बेगुनाही की सजा काट रही खुशी को मिला इंटरनेशनल स्कूल में दाखिला

जेल में 6 सालों से बेगुनाही की सजा काट रही खुशी को मिला इंटरनेशनल स्कूल में दाखिला

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:24 PM IST, Published Date : June 24, 2019/3:44 pm IST

रायपुर। जब एक पिता अपनी बेटी को विदा करता है तब दोनों तरफ से खुशी के साथ-साथ आंखो से आंसू भी बहते हैं। ऐसा ही नजारा सोमवार को बिलासपुर केंद्रीय जेल में देखने को मिला, जब जेल में बंद एक सजायफ्ता कैदी अपनी 6 साल की बेटी खुशी (बदला हुआ नाम) से लिपटकर खूब रोया। इसकी वजह भी बेहद खास थी। आज से उसकी बेटी जेल की सलाखों के बजाय बड़े स्कूल के हॉस्टल में रहने जा रही थी।

करीब एक माह पहले जेल निरीक्षण के दौरान जिला के कलेक्टर डॉ संजय अलंग की नजर महिला कैदियों के साथ बैठी खुशी पर गयी थी। तभी उन्होंने खुशी से बातचीत के दौरान उसकी इच्छा के अनुरूप वादा किया था, कि उसका दाखिला किसी बड़े स्कूल में कराएंगे। वायदे के अनुरूप आज कलेक्टर कलेक्टर डॉ संजय अलंग खुशी को अपनी कार में बैठाकर केंद्रीय जेल से स्कूल तक छोड़ने खुद गये। कार से उतरकर खुशी एकटक अपने स्कूल को देखती रही। खुशी कलेक्टर की उंगली पकड़कर स्कूल के अंदर तक गयी। एक हाथ में बिस्किट और दूसरे में चॉकलेट लिये वह स्कूल जाने के लिये वह सुबह से ही तैयार हो गई थी।

आमतौर पर स्कूल जाने के पहले दिन बच्चे रोते हैं। लेकिन खुशी आज बेहद खुश भी थी। क्योंकि जेल की सलाखों में बेगुनाही की सजा काट रही खुशी आज आजाद हो रही थी। कलेक्टर की पहल पर शहर के जैन इंटरनेशनल स्कूल ने उसे स्कूल में एडमिशन दिया। वह स्कूल के हॉस्टल में ही रहेगी। खुशी के लिये विशेष केयर टेकर का भी इंतजाम किया गया है। स्कूल संचालक अशोक अग्रवाल ने कहा है कि खुशी की पढ़ाई और हॉस्टल का खर्चा स्कूल प्रबंधन ही उठायेगा। 

खुशी के पिता केंद्रीय जेल बिलासपुर में एक अपराध में सजायफ्ता कैदी हैं। पांच साल की सजा काट ली है, और उन्हें पांच साल और जेल में रहना है। खुशी जब पंद्रह दिन की थी तभी उसकी मां की मौत पीलिया से हो गयी थी। पालन पोषण के लिये घर में कोई नहीं था। इसलिये उसे जेल में ही पिता के पास रहना पड़ रहा था। जब वह बड़ी होने लगी तो उसकी परवरिश का जिम्मा महिला कैदियों को दे दिया गया। वह जेल के अंदर संचालित प्ले स्कूल में पढ़ रही थी। लेकिन नन्हीं खुशी जेल की आवोहवा से आजाद होना चाहती थी।

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संयोग से एक दिन कलेक्टर जेल का निरीक्षण करने पहुंचे। उन्होंने महिला बैरक में देखा कि महिला कैदियों के साथ एक छोटी सी बच्ची बैठी हुई है। बच्ची से पूछने पर उसने बताया कि जेल से बाहर आना चाहती है। किसी बड़े स्कूल में पढ़ने का उसका मन है। बच्ची की बात कलेक्टर को भावुक कर गयी। उन्होंने तुरंत शहर के स्कूल संचालकों से बात की और यहां के नामी स्कूल के संचालक खुशी को सहर्ष एडमिशन देने को तैयार हो गये। इसी तरह कलेक्टर की पहल पर जेल में रह रहे 17 अन्य बच्चों को भी जेल से बाहर स्कूलों में एडमिशन की प्रक्रिया शुरु कर दी गयी है।

 
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