कौड़ियों के दाम मिली प्राइम लोकेशन की जमीन, केलो विहार समिति ने 25 साल से चुकाया प्रीमियम, बेखबर प्रशासन | Land of prime location has been given in the name of Kailo Vihar Committee, not received premium for 25 years

कौड़ियों के दाम मिली प्राइम लोकेशन की जमीन, केलो विहार समिति ने 25 साल से चुकाया प्रीमियम, बेखबर प्रशासन

कौड़ियों के दाम मिली प्राइम लोकेशन की जमीन, केलो विहार समिति ने 25 साल से चुकाया प्रीमियम, बेखबर प्रशासन

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:19 PM IST, Published Date : August 7, 2020/1:16 pm IST

रायगढ़: शहर में सरकारी कर्मचारियों को आवास के लिए किए गए भूखंड आबंटन में जमकर गड़बड़ी सामने आई है। केलो विहार समिति के नाम से आबंटित भूखंडों को पहले तो पानी के मोल दे दिया गया और अब 25 साल होने के बाद भी समिति से जमीन की प्रीमियम राशि और भूभाटक की वसूली शासन नहीं कर पाई है। आलम ये है कि कलेक्टोरेट के पीछे स्थित प्राइम लोकेशन पर 25 एकड़ जमीन पर कर्मचारियों के साथ ही साथ भूमाफियों के भी कब्जे हैं। इन पर कार्रवाई की बजाए प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है।

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दरअसल रायगढ़ जिले में सरकारी विभागों में पदस्थ कर्मचारियों के आवास के लिए साल 1991 में योजना बनाई गई थी। योजना के तहत कर्मचारियों को 1 रुपए वर्गफीट में भूखंड और 9 रुपए वर्गफीट की दर से प्रीमियम लेकर जमीन का आधिपत्य देना था। तकरीबन 25 एकड़ जमीन को 438 टुकड़ों में आबंटन होना था। नियमानुसार कालोनी में ग्रीन बेल्ट, सड़क, पानी, बिजली व सामुदायिक भवन की व्यवस्था करनी थी। केलो विहार समिति ने आबंटित जमीन पर कब्जा तो कर लिया, लेकिन प्रशासन को न तो भूभाटक जमा किया न ही प्रीमियम की राशि अदा की गई। और तो और 25 एकड़ जमीन में शासकीय कर्मचारियों के साथ साथ गैरशासकीय विभागों के लोग व भूमाफियाओं ने भी कब्जा शुरु कर दिया।

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आलम ये है कि 438 कर्मचारियों को आबंटन किए जाने वाले भूखंड का कोई हिसाब प्रशासन या समिति के पास नहीं है। समिति ने न तो प्रारंभ में प्लाट आबंटन पाऩे वाले हितग्राहियों की सूची प्रशासन को सौंपी है न ही जमीन का आधिपत्य लिया है। नजूल विभाग के पास भी 438 प्लाटों के मालिकों की कोई सूची नहीं है। बगैर आधिपत्य लिए पूरी की पूरी अवैध कालोनी बसी हुई है। कर्मचारियों के लिए आबंटित भूखंडों में गैर लोगों का कब्जा है। खास बात ये है कि जिला कलेक्टोरेट के पीछे ये जमीन प्राइम लोकेशन में है, जिसकी कीमत करोडों में है। बावजूद न जिला प्रशासन इस पर आंखे मूंदे बैठा है।

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केलो विहार निवासी राजेश त्रिपाठी ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि साल 1991—92 में तत्कालीन कलेक्टर की योजना थी कि ऐसे कर्मचारी जिनके पास आवास नहीं है आवास दिया जाएगा। लॉटरी के जरिए प्लाट बनाया गया था, जिसका चार्ज 1 रुपए वर्गफीट जमीन 9 रुपए डेवलपमेंट चार्ज था। स्कूल हास्पिटल खेल मैदान पार्क के लिए जमीन थी। अब न पार्क की जमीन है, न हास्पिटल की, न मैदान की। यहां ये भी देखा गया कि सभी को अधिकार पत्र दिया गया था, लेकिन जैसे ही कर्मचारियों का स्थानांतरण हुआ उसके बाद बहुत से ऐसे हितग्राही हैं, जिनके पास अधिकार पत्र नहीं हैं। लोग औने पौने दामों में जमीन खरीदकर कब्जा जमाए बैठे हैं। जमीन का रेट का निर्धारण 99 में हो चुका है, जिनके पास अधिकार पत्र नहीं है। उनकी जमीन की कीमत का निर्धारण होना चाहिए।

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इधर केलो विहार समिति अपने आपको पाक साफ बता रही है। समिति का कहना था कि उन्हें 25 एकड़ का आबंटन जरुर हुआ था, लेकिन जमीन के एक बड़े हिस्से में बेजा कब्जा था। समिति का ये भी कहना है कि वे प्रीमियम व भू भाटक जमा करने को तैयार है, लेकिन प्रशासन राशि का निर्धारण साल 2015 की दरों पर करे। समिति इस बात को भी स्वीकार कर रही है कि मालिकाना हक नहीं होने की वजह से जमीन की रजिस्ट्री या फिर नामांतरण व विक्रय में दिक्कतें आ रही हैं। इधर मामले में अधिकारी जांच की बात कह रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि ये मामला प्रशासन के संज्ञान में है और इस पर जांच की जा रही है। कालोनी में बेजा कब्जे की भी शिकायत है। सरकारी जमीन पर अगर कब्जे पाए जाते हैं, तो उन पर बेदखली की कार्रवाई भी की जाएगी।

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केलो विहार समिति के अध्यक्ष केदारनाथ प्रधान ने बताया कि साल 1992 की योजना के तहत कर्मचारियों को बसाया गया था। उसका प्रीमियम डिसाइड नहीं हो पाया जो तय किया था, उसे सोसायटी ने सही नहीं पाते हुए कोर्ट में दायर कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जिला प्रशासन व सोसायटी मिलकर तय करे। साल 2015 में ये गाइडलाइन तय किया गया। समिति इस गाइड लाइन को मानने के लिए तैयार है। जल्द निर्धारण किया जाएगा। ये एक प्रकार का बेजा कब्जा ही है, कभी भी लैप्स हो सकता है।

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वहीं, रायगढ़ डिप्टी कलेक्टर आशीष देवांगन ने कहा है कि दो साल पहले इसकी जांच की शुरुआत हुई थी, पूर्व में शासकीय कर्मचारियों के लिए जमीन थी। लेकिन ये देखा गया कि अन्य लोगों को बेच कर या फिर ज्यादा जमीन पर कब्जा किया गया है। शासकीय कर्मचारी कम रह रहे हैं। आवासीय का व्यवसायिक प्रयोजन हो रहा है। कलेक्टर ने जांच के निर्देश दिए हैं। जांच की जा रही है। अवैध पाए जाते हैं तो उन पर कार्रवाई की जाएगी।

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