मदकू द्वीप जहां ऋषि ने की मंडूकोपनिषद की रचना | Madku Dweep Chhattisgarh:

मदकू द्वीप जहां ऋषि ने की मंडूकोपनिषद की रचना

मदकू द्वीप जहां ऋषि ने की मंडूकोपनिषद की रचना

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 02:26 AM IST, Published Date : October 23, 2018/1:04 pm IST

मदकू द्वीप छत्तीसगढ़ के इतिहास और पर्यटन स्थल पर अगर नज़र डालेंगे तो मदकू द्वीप का नाम हर जगह दिखाई देगा। नदी के किनारे बसे इस मनोरम स्थल की गिनती पुरातत्व को सहेजने में भी गिनी जाती है। अगर आपको इस द्वीप की यात्रा करनी है तो सबसे पहले आपको जाना होगा बिलासपुर जिले के बैतलपुर से चार किलोमीटर पहले सरगांव के पास इस नदी ने उत्तर एवं उत्तर पूर्व दिशा में दो धाराओं में बंटकर एक द्वीप का निर्माण किया है, जो मदकू द्वीप के नाम से प्रसिद्ध है। यहां पहुंचने का कोई पैदल मार्ग नहीं है और केवल नौका आदि से ही जाया जा सकता है।

शिवनाथ नदी के पानी से घिरा मुंगेली जिले में स्थित मदकू द्वीप आम तौर पर जंगल जैसा ही है। शिवनाथ नदी के बहाव ने मदकू द्वीप को दो हिस्सों में बांट दिया है। एक हिस्सा लगभग 35 एकड़ में है, जो अलग-थलग हो गया है। दूसरा करीब 50 एकड़ का है, जहां 2011 में उत्खनन से पुरावशेष मिले हैं। जिसे मदकू द्वीप कहते हैं।यहाँ मुख्य द्वार से अंदर पहुंचते ही दायीं तरफ पहले धूमेश्वर महादेव मंदिर और फिर श्रीराम केवट मंदिर आता है। थोड़ी दूर पर ही श्री राधा कृष्ण, श्री गणेश और श्री हनुमान के प्राचीन मंदिर भी हैं।ऐसी मान्यता है कि मंडूक ऋषि ने यहीं पर मंडूकोपनिषद की रचना की थी. उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम मंडूक पड़ा. यहां खुदाई में कुछ ऐसे अवशेष मिले हैं, जो 11वीं शताब्दी के कल्चुरी कालीन मंदिरों की श्रृंखला से मिलते-जुलते  

1985 में  जब खुदाई हुई तो वहां 19 मंदिरों के भग्नावशेष और कई प्रतिमाएं बाहर आईं। इसमें 6 शिव मंदिर, 11 स्पार्तलिंग और एक-एक मंदिर क्रमश: उमा-महेश्वर और गरुड़ारूढ़ लक्ष्मी-नारायण मंदिर मिले हैं। खुदाई के बाद वहां बिखरे पत्थरों को मिलाकर मंदिरों का रूप दिया गया।

 

 यहां प्राप्त शिलालेखों के अनुसार 11वीं शताब्दी में यहां के मंदिर उच्चतम स्थिति में थे। पुरातत्वविदों के मतानुसार इस द्वीप का निर्माण प्रागैतिहासिक काल में हुआ था। द्वीप पर कच्छप (कछुए) आकार की पीठ में आधा दर्जन से अधिक मंदिर हैं।मदकू द्वीप को अति पवित्र स्थल माना जाता है क्योंकि इस स्थान पर आकर शिवनाथ नदी उत्तर पूर्व वाहिनी हो जाती है। दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी में रतनपुर के कलचुरी शासक यहां यज्ञानुष्ठान आदि संपन्न किया करते थे। पुरातत्वविदों तथा इतिहासकारों का मत है कि विष्णु पुराण में जिस मंडूक द्वीप का उल्लेख है, वह यही स्थल है। यहां हर साल 6 फरवरी से 12 फरवरी को मसीही मेला लगता है जो पर्यटकों के किये आकर्षण का केंद्र है। 

वेब डेस्क IBC24