मध्य प्रदेश में कुपोषण एक ऐसा कलंक है. जो करोड़ों रूपए खर्च कर देने के बाद भी नहीं धुला है. एक दशक पहले कुपोषण की भयावह स्थिति सुर्खियां बनी थीं। विपक्षी दलों ने इसे राज्य सरकार की लापरवाही, भ्रष्टाचार और असफलता बताकर घेरा था. लेकिन अब फिर से कुपोषण के हालात शिवराज सरकार की नींद उड़ा रहे हैं. क्योंकि जो आंकड़े ग्वालियर चंबल संभाग से आए हैं. वो चिंता बढ़ाने वाले हैं. यहां हजारों नहीं बल्कि डेढ़ लाख से ज्यादा बच्चे कुपोषित पाए गए हैं।
जी हां, ग्वालियर जिले में शून्य से 6 साल के कुपोषित और अति कुपोषित 28,228 बच्चों की खुराक पर हर दिन करीब 1 लाख 12 हजार रुपए खर्च हो रहे हैं.. फिर भी हालात बुरे हैं.. इन्यूनिटी पॉवर लगातार घटने के कारण लगभग हर तीसरा बच्चा किसी न किसी बीमारी से ग्रसित है। सरकारी आंकड़ों में सब ठीक बताया जा रहा है, लेकिन जमीनी धरातल पर कुपोषण में 20 फीसदी सुधार भी नहीं हुआ है।
मासूमों की मौत के आंकड़ों पर गौर करें तो ग्वालियर जिले में जन्म से 28 दिन के भीतर 32 बच्चे, 1 साल की उम्र से पहले 48 और पांच साल की उम्र पूरा करने से पहले 63 बच्चे दम तोड़ देते हैं. वहीं पूरे संभाग की बात करें. तो लाख 23 हजार 899 बच्चे मध्य कुपोषित, 11639 बच्चे अति कुपोषित हैं. इनमें से ग्वालियर जिले में 1589 बच्चे अति कुपोषित और शिवपुरी जिले में 4579 बच्चे अति कुपोषित हैं. जबकि अगस्त महीने में कुपोषण को खत्म करने के लिए संभाग में 109 करोड़ रूपए खर्च किए गए
कुपोषण के चलते मध्यप्रदेश में हर साल करीब 30 हजार बच्चे अपना पहला जन्मदिन तक नहीं मना पाते और काल के गाल में समा जाते हैं.. इसी कलंक के चलते मध्यप्रदेश देश के उन पिछड़े राज्यों में शुमार है, जहां शिशु मृत्युदर सबसे ज्यादा है।
ग्वालियर चंबल संभाग में कुपोषण के मामले में आदिवासी बाहुल्य गांवों में हालात ज्यादा खराब हैं. पोषण आहार की रकम में डाका डालने की खबरें भी गाहे-बगाहे सामने आती रहती हैं. वहीं, योजनाओं के फायदे जरूरतमंद तक नहीं पहुंचने के पीछे सरकारी कर्मियों की टालमटोल भी है। इधर केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट में पेश की गई रिपोर्ट में कुपोषण पर राज्य सरकार को घेरा है।
ग्वालियर के बरई, भितरवार, डबरा और मुरार ब्लॉक के आदिवासी बाहुल्य गांवों में कुपोषण की स्थिति लगातार पैर पसार रही है. रूट लेवल पर काम करने वाले महिला बाल विकास विभाग के कार्यकर्ता, पर्यवेक्षक, सीडीपीओ. बच्चे के जन्म से लेकर पांच साल तक टालमटोल में निकाल रहे हैं।
इसके बाद भी बच्चा सरवाइव कर जाए तो आयु सीमा से बाहर होने का बहाना बनाकर बच निकलते हैं। कुपोषित के अलावा केन्द्रों पर 1 लाख 4 हजार 640 बच्चे भी पंजीकृत हैं. जिनके नाम पर आने वाले पोषण आहार में से 70 फीसदी आहार की रकम समूह और अधिकारियों की मिलीभगत से हड़पे जाने का आरोप लगा. जिस पर सरकार के नुमाइंदे कुछ अलग ही तर्क दे रहे हैं।
इधर, केंद्र सरकार ने कुपोषण से हो रही मौतों को लेकर ग्वालियर हाईकोर्ट में अपनी रिपोर्ट पेश की है। जिसमें कहा गया है कि साल 2014 से 2017 तक कुपोषण के नाम पर मध्यप्रदेश के कई जिलों में करोड़ों रुपए की राशि आवंटन किया गया है। बावजूद इसके राज्य सरकार ने राशि का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया है।
पहले भी कुपोषण को लेकर शिवराज सरकार को पूर्व केन्द्रीय मंत्री और गुना-शिवपुरी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया कटघरे में खड़ा कर चुके हैं. साथ ही केन्द्रीय महिला बाल विकास मंत्री मेनका गांधी को पत्र लिख चुके हैं। इसके बाद भी प्रदेश के ग्वालियर संभाग में कुपोषण को लेकर हालात बदतर हैं।