31 जुलाई 1880 को बनारस के पास एक छोटे से गाँव लमही में जन्मे बालक धनपत राई श्रीवास्तव, आगे चल कर मुंशी प्रेमचंद के नाम से दुनिया में मशहूर हुए।
प्रेमचंद बचपन से ही कहानियों की दुनिया में खो जाना पसंद करता था। छोटी उम्र में ही अपने माता पिता, दोनांे को खो देने वाले प्रेमचंद अपने चाचा के साथ गोरखपुर में रहने लगे, प्रेमचंद यूं तो पढ़ाई में ज्यादा अच्छे नहीं थे, पर अपनी मेहनत और अपनी कहानियों के बल पर अध्यापक बन गये। बड़े लोगों के बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाने लगे।
‘उपन्यास सम्राट’ मुंशी प्रेमचंद
1903 में प्रेमचंद ने अपना पहला लघु उपन्यास लिखा, जिसका नाम “देवस्थान रहस्या” था यह उपन्यास मंदिरों के पंडितों में भ्रष्टाचार का खुलासा था। यह उपन्यास बनारस के साप्ताहिक उर्दू अखबार, आवाज-ए-खल्क में अक्टूबर 1903 से लेकर फरवरी 1905 तक कई भागों में छपा। कानपुर में रहते समय वह दया नारेन निगम से मिले जो जमाना पत्रिका के संपादक थे। जिसके फलस्वरूप 1905 से 1909 तक उनके बहुत लेख जमाना पत्रिका में भी छपे 1907 में जमाना में उनकी पहली लघु कहानी सोज-ए-वतन भी छपी 1909 में यह कहानी अंग्रेज सरकार की आँखों में चूभने लगी और अंग्रेजी सरकार ने उनके घर में घुस कर सोज-ए-वतन की पांच सौ कापियां जला दीं 1914 में प्रेमचंद जी ने हिन्दी लेखन की ओर रुख किया। इस समय तक वे एक स्थापित उर्दू लेखक बन चुके थ 1919 तक प्रेमचंद जी के चार लघु उपन्यास लिखे।
1921 में प्रेमचंद जी ने गांधी जी द्वारा चलाई गयी असहयोग आन्दोलन की शुरूआत के लिए गोरखपुर में रखी गयी मीटिंग में भाग लिया इस मीटिंग में गांधी जी ने अंग्रेजी सरकार के यहां नौकरी कर रहे सभी भारतीयों से इस्तीफा देने का आग्रह किया। प्रेमचंद पर उनके दो बच्चों तथा उनकी गर्भवती पत्नी का आर्थिक उत्तरदायित्व था, फिर भी उन्हांेने सोच विचार के बाद अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और बनारस लौट गये।
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नौकरी छोड़ने के बाद प्रेमचंद को बहुत आर्थिक कठिनाइयों से गुजरना पड़ा, जिसका समाधान करने के लिए वे 1934 में चले गए। बम्बई आने के बाद उन्होने पटकथा लेखन का काम शुरू किया। इस दौरान उन्होंने मजदूर फिल्म की कहानी भी लिखी।
प्रेमचंद के उपन्यासों में उस समय के समाज की रौद्र सच्चाई दिखाई देती थी। वे अमीरों के हाथ गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों का धर्म के नाम पर शोषण जैसी सामाजिक कुरीतियों के बारे में लिखते थे। वे अपनी लेखन से समाज में जागरूकता का पाठ फैलाना चाहते थे। प्रेमचंद अपनी कहानियों से भ्रष्टाचार, बल-विधवा, वेश्यावृत्ति, सामंती व्यवस्था, गरीबी, उपनिवेशवाद और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन पर लोगों को जागरूक करने में विश्वास करते थे।
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अपने अंतिम दिनों में उन्होने ग्रामीण जीवन की व्यस्तताओं पे ध्यान देते हुए अपनी कहानियों को वैसा ही रूप दिया। इसका एक उदाहरण उनके प्रसिद्ध उपन्यास गोदान में देखने को मिलता है। प्रेमचंद साहित्य की दुनिया के बहुत बड़े नाम हैं, उन्होने हिन्दी साहित्य में अपनी छाप इस तरह छोड़ी है की एक मजबूत पाठक आधार उनके काम से बहुत पहले से ही जुड़ गयी थी। आज भी इन पाठकों के लिए प्रेमचंद जी के लेख ही जीवन का प्रतिबिंब हैं।
प्रेमचन्द ने अपना पूरा जीवन लेखन के प्रति समर्पित किया था प्रेमचन्द ने अपने जीवन में करीब तीन सौ से अधिक कहानियां, लगभग 15 उपन्यास, 3 नाटक, 7 से अधिक बाल पुस्तके और अनेक पत्र पत्रिकाओं का सम्पादन किया जो की सभी रचनाये अपने आप में अद्भुत और जनमानस पर अमिट छाप छोडती है।
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