नरक चतुर्दशी से मिलती है सभी पाप बंधन से मुक्ति –
– नरक चतुर्दशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को कहा जाता है। ये दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है। नरक चतुर्दशी को ‘छोटी दीपावली’ भी कहते हैं।
– नरक चतुर्दशी (काली चौदस, रूप चौदस, छोटी दीवाली या नरक निवारण चतुर्दशी के रूप में भी जाना जाता है)
– यह दीपावली के पांच दिवसीय महोत्सव का दूसरा दिन है।
– असुर (राक्षस) नरकासुर का वध कृष्ण, सत्यभामा और काली द्वारा इस दिन पर हुआ था ।
– इस दिन शरीर पर सुगंधित द्रव्य, उबटन, अपामार्ग (अझीझाड़) से जल मार्जन व स्नान करने से नरक का भय नहीं रहता और बीमारियां फैलाने वाले कीटाणु स्वत: ही हमसे दूर हो जाते हैं।
– त्रयोदशी से 3 दिन तक दीप प्रज्ज्वलित करने से यमराज प्रसन्न होते हैं। अंतकाल में व्यक्ति को यम यातना का भय नहीं होता।
-कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को प्रातःकाल ‘अपामार्ग’ और ‘चकबक’ को स्नान के समय मस्तक पर घुमाना चाहिये। इससे नरक के भय का नाश होता है। उस समय निम्न प्रकार से प्रार्थना करे-
सितालोष्ठसमायुक्तं सकण्टकदलान्वितम्।
हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:।।
नहाने के बाद साफ कपड़े पहनकर, तिलक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके निम्न मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिए। यह यम-तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं-
– स्नानादि से निर्वित्त होकर यमराज का तर्पण कर तीन अंजलि जल अर्पित करने का विधान भी बताया गया है।
– संध्याकालीन समय में यमराज के लिए दीपदान करना चाहीए । तद्पश्चात एक थाली में एक चौमुखी दीपक और सोलह छोटे दीपक लेकर तेल बाती डालकर जलाना चाहिए।
– इस दिन सायं 4 बत्ती वाला मिट्टी का दीपक पूर्व दिशा में अपना मुख करके घर के मुख्य द्वार पर रखें और
‘दत्तो दीप: चतुर्दश्यो नरक प्रीतये मया। चतुर्वर्ति समायुक्त: सर्व पापा न्विमुक्तये।।’
– फिर रोली, धूप, अबीर, गुलाल, गुड, फूल आदि से पंचोपचार पूजन करें।
– पूजा के बाद चौमुखी दीपक को घर के मुख्य द्वार पर रख दें और बाकी दीपक घर के अलग अलग स्थानों पर रख दें।
– नरक चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान, यमतर्पण, आरती, ब्राह्मणभोज, वस्त्रदान, यम दीपदान, प्रदोषपूजा, शिवपूजा, दीप प्रज्वलन जैसी धार्मिक विधियां करने से कोई भी मनुष्य अपने सभी पाप बंधन से मुक्त हो कर हरीपद को प्राप्त कर्ता है |
– शास्त्रों में कुछ प्रमुख स्थान बताये गए हैं जहाँ दीपक अवश्य लगाना चाहिए।
1. रात के समय किसी निर्जर स्थान में जहाँ सदेव अन्धकार रहता हो दीपक अवश्य लगाना चाहिए।
2. मुख्य द्वार की चौखट के दोनों तरफ दीपक लगाना चाहिए
3. घर के आँगन में दीपक लगाना चाहिए
4. घर के पास वाले चौराहे पर दीपक लगाना ज़रूरी है क्यूंकि इस से ज़िन्दगी में आगे बढ़ने के रास्ते मिलते हैं।
5. पूजा स्थान में दीपक लगाना चाहिए और ध्यान देना चाहिए के यह दीपक बुझने न पाये।
6. बेल के पेड़ के नीचे दीपक लगाएं। बेल का पेड़ भगवान शिव के साथ साथ माँ लक्ष्मी को भी बहुत प्रिय है। ऐसा करने से आपको हर तरह की सुख समृद्धि प्राप्त होगी।
7. पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक लगाने से बहुत अच्छा लाभ मिलता है। ग्रहों से सम्बंधित बाधाएं दूर हो जाएँगी
8.घर के पास के मंदिर में दीपक लगाये। इस से सभी देवी देवता प्रसन्न हो जायेंगे
9. घर के अंदर के जल के स्रोत के पास दीपक लगाएं। जलाशय के पास दीपक लगाने से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
इस चतुर्दशी से जुड़ी पौराणिक कथाएँ इस प्रकार हैं-
प्रथम कथा-
एक कथा के अनुसार रन्तिदेव नामक एक राजा हुए थे। वह बहुत ही पुण्यात्मा और धर्मात्मा पुरुष थे। सदैव धर्म, कर्म के कार्यों में लगे रहते थे। जब उनका अंतिम समय आया तो यमराज के दूत उन्हें लेने के लिए आये। वे दूत राजा को नरक में ले जाने के लिए आगे बढ़े। यमदूतों को देख कर राजा आश्चर्य चकित हो गये और उन्होंने पूछा- “मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया है तो फिर आप लोग मुझे नर्क में क्यों भेज रहे हैं। कृपा कर मुझे मेरा अपराध बताइये, कि किस कारण मुझे नरक का भागी होना पड़ रहा ह।”. राजा की करुणा भरी वाणी सुनकर यमदूतों ने कहा- “हे राजन एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा ही लौट गया था, जिस कारण तुम्हें नरक जाना पड़ रहा है।
राजा ने यमदूतों से विनती करते हुए कहा कि वह उसे एक वर्ष का और समय देने की कृपा करें। राजा का कथन सुनकर यमदूत विचार करने लगे और राजा को एक वर्ष की आयु प्रदान कर वे चले गये। यमदूतों के जाने के बाद राजा इस समस्या के निदान के लिए ऋषियों के पास गया और उन्हें समस्त वृत्तांत बताया। ऋषि राजा से कहते हैं कि यदि राजन कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करे और ब्राह्मणों को भोजन कराये और उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करे तो वह पाप से मुक्त हो सकता है। ऋषियों के कथन के अनुसार राजा कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी का व्रत करता है। इस प्रकार वह पाप से मुक्त होकर भगवान विष्णु के वैकुण्ठ धाम को पाता है।
द्वितीय कथा-
एक अन्य प्रसंगानुसार भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह में कृष्ण चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध करके देवताओं व ऋषियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलवाई थी। इसके साथ ही कृष्ण भगवान ने सोलह हज़ार कन्याओं को नरकासुर के बंदीगृह से मुक्त करवाया। इसी उपलक्ष्य में नगरवासियों ने नगर को दीपों से प्रकाशित किया और उत्सव मनाया। तभी से नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाने लगा।
तृतीय कथा-
जब भगवान वामन ने त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि के बीच दैत्यराज बलि के राज्य को तीन कदम में नाप दिया तो राजा बलि जो की परम दानी थे, उन्होंने अपना पूरा राज्य भगवान विष्णु के अवतार भगवान वामन को दान कर दिया। इस पर भगवान वामन ने प्रसन्न होकर बलि से वर मांगने को कहा। बलि ने भगवान से कहा कि, “हे प्रभु ! मैंने जो कुछ आपको दिया है, उसे तो मैं मांगूंगा नहीं और न ही अपने लिए कुछ और मांगूंगा, लेकिन संसार के लोगों के कल्याण के लिए मैं एक वर मांगता हूँ। आपकी शक्ति है, तो दे दीजिये।” भगवान वामन ने कहा, “क्या वर मांगना चाहते हो राजन?”
दैत्यराज बलि बोले- “प्रभु ! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली। इन तीन दिनों में प्रतिवर्ष मेरा राज्य रहना चाहिए और इन तीन दिन की अवधि में जो व्यक्ति मेरे राज्य में दीपावली मनाये उसके घर में लक्ष्मी का स्थायी निवास हो तथा जो व्यक्ति चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपों का दान करेंगे, उनके सभी पितर कभी नरक में ना रहें, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए।
” राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- “राजन ! मेरा वरदान है की जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान करेंगे, उनके सभी पितर लोग कभी भी नरक में नहीं रहेंगे और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव मनाएंगे, उन्हें छोड़कर मेरी प्रिय लक्ष्मी कहीं भी नहीं जायेंगी। जो इन तीन दिनों में बलि के राज में दीपावली नहीं करेंगे, उनके घर में दीपक कैसे जलेंगे? तीन दिन बलि के राज में जो मनुष्य उत्साह नहीं करते, उनके घर में सदा शोक रहे।” भगवान वामन द्वारा बलि को दिये इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरम्भ हुआ, जो आज तक चला आ रहा है।
नरक चतुर्दशी के दिन सुर्योदय से पहले स्नान करके यमराज की पूजा करने से और सायं काल दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय नही रहता ।