बीजापुर में मिले पत्रकारों को जान से मारने की धमकी भरे नक्सली पर्चे | Naxalite prescription threatens to kill journalists in Bijapur

बीजापुर में मिले पत्रकारों को जान से मारने की धमकी भरे नक्सली पर्चे

बीजापुर में मिले पत्रकारों को जान से मारने की धमकी भरे नक्सली पर्चे

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:59 PM IST, Published Date : November 19, 2017/10:55 am IST

बीजापुर जिले के आवापल्ली उसूर इलाके में पत्रकारों को जान से मारने की धमकी भरे पर्चे से सनसनी फैल गई है, कुछ समय पहले पत्रकार साई रेड्डी की भी हत्या इसी जिले में की गई थी और माओवादियों ने इसे कबूल भी किया था। इसके बाद पुलिस अधिकारी का एक ऑडियो भी इसी इलाके में वायरल हुआ था, जिसमें पुलिस की तरफ से पत्रकारों को मारने की धमकी दी गई थी, मौजूदा मिले पत्र माओवादियों के अंदाज में लिखे गए हैं, मांगे भी माओवादियों द्वारा बताई गई हैं, बावजूद इसके पत्र की रूपरेखा पर कई प्रकार का संदेश भी जाहिर होता है, इस पत्र में छ.ग.वनमंत्री महेश गागड़ा, तहसीलदार और पटवारी को भी मारने की धमकी दी गई है।

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मुठभेड़ को फर्जी तरीके से दिखाने वाले गलत रिपोर्टिंग करने वाले न्यूज और टीवी के पत्रकारों को साईं रेड्डी की तर्ज पर मार दिया जाएगा यह धमकी बेहद संजीदा है। बीजापुर जिले में पत्रकार संाई रेड्डी की 6 दिसम्बर 2013 को निर्मम हत्या कर दी गई थी, हत्या भी माओवादियों ने ही की थी। हालांकि बाद में इस पर माफीनामा भी भेजा था। फिर आखिर माओवादियों ने इस तरह का पत्र दोबारा क्यों जारी किया। बीजापुर जिले में पत्रकार निशाने पर क्यों है, बार-बार बीजापुर में ही पत्रकारों को मारने की धमकी क्यों आ रही है। बाहर ऐसे कई सवाल पूरी व्यवस्था पर सवाल उठाते हैं, नक्सल और मुश्किल इलाके में पत्रकारों का इस्तेमाल करने वाले पुलिस प्रशासन और माओवादियों के निशाने पर आखिर पत्रकार क्यों हैं, जिनके पास ना तो हथियार है और जो नहीं किसी पक्ष में खड़े हैं।

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बीजापुर ही नहीं बल्कि दरभा इलाके में भी 13 फरवरी 2013 नेमीचंद जैन नामक पत्रकार की माओवादियों ने निर्मम हत्या की थी, नेमी चंद वर्षों से दरभा इलाके में पत्रकारिता कर रहे थे, सिर्फ माओवादी ही नहीं सरकार की तरफ से भी बस्तर के पत्रकार निशाने पर हैं, बस्तर के पत्रकारों की गिरफ्तारी की आवाज राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मीडिया पर छाई ही रही है, दूसरी ओर फर्जी मामलों के अलावा हाल में ऑडियो टेप भी वायरल हुआ था, जिसमें पुलिस अधिकारी जंगल में दिखते ही पत्रकारों को गोली मारने की बात कहते नजर आ रहे हैं, बार-बार इस तरह के पत्र कई तरह के सवाल फिर से खड़े करते हैं। नक्सल इलाकों में माओवादी समर्थकों से निपटने सरकार ने जन सुरक्षा कानून तो बनाया, पर पत्रकारों को सुरक्षा देने पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने को लेकर सरकार संजीदा नहीं है, जाहिर है न तो माओवादियों को और ना ही सरकार को पत्रकारों की जरूरत है, यह सब जरूरत तो इस इलाके में जनता को है जो दोनों के बीच पिस रही है।

 

वेब डेस्क, IBC24