मां खल्लारी के दर्शन के लिए अब नहीं चढ़नी पड़ेगी 981 सीढ़ी, विधायक आज करेंगे रोप-वे का भूमिपूजन | No more will have to climb 981 ladder to see mother Khallari

मां खल्लारी के दर्शन के लिए अब नहीं चढ़नी पड़ेगी 981 सीढ़ी, विधायक आज करेंगे रोप-वे का भूमिपूजन

मां खल्लारी के दर्शन के लिए अब नहीं चढ़नी पड़ेगी 981 सीढ़ी, विधायक आज करेंगे रोप-वे का भूमिपूजन

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:00 PM IST, Published Date : March 9, 2021/9:36 am IST

महासमुंद। मां खल्लारी के दर्शन में अब श्रद्धालुओं को आसानी होगी। खल्लारी विधायक द्वारिकाधीश यादव आज रोप-वे निर्माण का भूमिपूजन करेंगे। बता दें मंदिर में 981 सीढ़ी चढ़कर श्रद्धालु मां के दर्शन करते थे। लेकिन अब रोप-वे के बन जान से लोगों को काफी आसानी और समय की बचत हो सकेगी। 

खल्लाली के बारे में जानें..

छत्तीसगढ़ में ऐसे बहुत से ऐतिहासिक व प्राचीन स्थल है, जिसका वर्णन रामायण व महाभारत ग्रन्थ में मिलता है, उन्हीं में से एक स्थल है, खल्लवाटिका जिसे अब खल्लारी के नाम से जाना जाता है। जिले से 25 किमी दक्षिण की ओर खल्लारी गांव की पहाड़ी के शीर्ष पर खल्लारी माता का मंदिर स्थित है। प्रतिवर्ष क्वांर एवं चैत्र नवरात्र के दौरान बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ इस दुर्गम पहाड़ी में दर्शन के लिए आती है। हर साल चैत्र मास की पूर्णिमा के अवसर पर वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत युग में पांडव अपनी यात्रा के दौरान इस पहाड़ी की चोटी पर आए थे, जिसका प्रमाण भीम के विशाल पदचिन्ह हैं जो इस पहाड़ी पर स्पष्ट नजर आते हैं।

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छत्तीसगढ़ में खल्लारी माता के दरबार में ऐसे-ऐसे अद्भूत नजारे हैं जो वास्तव में आंखों को प्यारे लगते हैं। यहां आने के बाद जिस तरह की शांति का अहसास होता है, उस शांति की तलाश आज की भागमभाग वाली जिंदगी में सभी को रहती है। 355 मीटर की ऊंचाई पर 981 सीढिय़ों को लांघने के बाद जब आप ऊपर पहुंचते हैं तो वहां की छटा देखकर सारी थकान गायब हो जाती है। ऊपर से जब नीचे का नजारा देखो तो देखते ही रह जाते हैं। पहाड़ के चारों तरफ प्रकृति के ऐसे नजारे हैं जिनको शब्दों में बयान करना आसान नहीं है। ऊपर से जिस दिशा में नजरें जाती थीं लगता था कि प्रकृति अपनी गोद में सारे जहान का सौंदर्य लिए हुए है। एक ऐसा सौंदर्य जिसको हर कोई कैमरे में कैद करना चाहेगा।

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यहां पर 14 वीं शताब्दी का दंतेश्वरी देवी का ऐतिहासिक मंदिर है। इसके अलावा वहां पर भीम पांव के साथ उनके चूल्हे और साथ ही डोंगा पत्थर के हैं। यहां पत्थरों में राम और लक्ष्मण को भी दिखाया गया है। दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर, भैरव गुफा, सिंह गुफा, शीत बाबा, राम जानकी निषाद राज, जंवारा खोल, शिव गंगा भागीरथी के भी दर्शन होते हैं। जहां पर भीम पांव हैं वहां की छठा निराली है। यहां पर पहाड़ों के चारों तरफ का सौंदर्य निराला है। ऊपर ने नीचे देखने पर सडक़ का भी अद्भूत नजारा नजर आता है। आस-पास जो तालाब हैं वे भी काफी सुंदर लगते हैं।

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बारिश के समय में यहां की छठा और ज्यादा निराली रहती हैं। जब आसमान में इन्द्रधनुष दिखता है तो पहाड़ के चारों तरफ का नजारा वास्तव में देखने योग्य होता है। तब यहां आने वाले लोग अपने को धन्य समझते हैं। खल्लारी माता के दरबार को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। आने वाले दर्शनार्थियों के लिए मंदिर के पहले एक गार्डन भी बनाया गया है। पानी आदि की समुचित व्यवस्था है। यहां पर साल में दो बार आने वाली नवरात्रि पर मेला लगता है जिसमें काफी दूर-दूर से लोग आते हैं माता के दरबार में। खल्लारी आने वालों को आस-पास में और भी कई दर्शनीय स्थालों पर जाने का मौका मिल सकता है।

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महाभारत के जुड़े पांडवों के छत्तीसगढ़ के कई स्थानों पर आने के अवशेष हैं। वैसे भी बताया जाता है कि सिरपुर में ही देश का प्रमुख चौराहा था और किसी को भी उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम जाने के लिए इस चौराहे से गुजरना ही पड़ता था। ऐसे में जबकि पांडवों को भी अपना अज्ञातवाश काटना था तो उनका छत्तीसगढ़ के जंगलों में आना हुआ। मप्र के पंचमढ़ी में भी पांडवों का स्थान है। बहरहाल हम बातें करें पांच पांडवों में से एक शक्तिशाली भीम की। भीम के बारे में ऐसा कहा जाता है कि विशालकाय शरीर के भीम जब चलते थे तो धरती पर जब उनके पैर पड़ते थे तो लगता था कि धरती हिल रही है। इस बात का प्रमाण वास्तव में भीम के पैर देखने के बाद होता है और इन पैरों को जब 355 मीटर ऊंची पहाड़ी पर देखने से मालूम होता है कि वास्तव में भीम कितने शक्तिशाली रहे होंगे।

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पहाड़ी में उनके पैरों के जो निशाने हैं वो एक तरह से पहाड़ के पत्थर में गड्ढ़ा है। जानकारों का ऐसा मानना कि जब भीम यहां आते होंगे तो उनके पैरों से पहाड़ों में भी गड्ढ़ा हो जाता था। जहां पर भीम के पैरों के निशाने हैं, वहीं पर एक और बहुत बड़ा गड्ढ़ा है जिसे उनका चूल्हा बताया जाता है। इस चूल्हें में ही वे खाना बनाते थे। खल्लारी मंदिर के पुजारी महेन्द्र पांडे बताते हैं कि खल्लारी के पास में ही उस लाक्ष्यागृह के अवशेष हैं जिसमें पांडवों को रखा गया था और बाद में इसमें आग लगा दी गई थी। लेकिन पांडव उस आग से बच गए थे क्योंकि विदुर ने उनको आग से बचने का उपाय कुछ इस तरह से बताया कि आग में ऐसा कौन सा जीव है जो बचने का रास्ता निकाल लेते हैं। इसका जवाब पांडवों ने दिया था कि चूहा। चूहा जिस तरह से सुरंग बनाकर अपनी जान बचा लेता है उसी तरह से पांडवों ने भी लाक्ष्यागृह के नीचे से सुरंग बनाकर अपनी जान बचाई थी।

 
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