कोरोना महामारी, इंसान से उसकी सांसें छीन रही है, हालांकि उसने जिंदगी की विकल्प खुला छोड़ा है, मर्जी है आपकी, आखिर जीवन है आपका, वैसे ये बातें आज के युवाओं को ज्यादा प्रभावित करती हैं। हर घर में युवा बच्चे ये कहते हुए मिल जाते हैं कि ये उनकी निजी जिंदगी है, मां -बाप इसमें दखल ना दें…तकरीबन हर घर की दीवारों से बाहर आती इन तैश की आवाजों से मन में ये विचार कौंधता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जिन्होंने पिता के वचनों को पूरा करने के लिए हठ पूर्वक वनवास का वरण किया उस देश के बच्चे ऐसा कैसे कह सकते हैं, वो ऐसा कह सकते हैं क्योंकि वो ऐसा ही देख रहे हैं।
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दरअसल बीते समय में एक फिल्म आई थी ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’, रितिक रोशन, अभय देयोल, फरहान अख्तर और कैटरीना कैफ अभिनीत इस मूवी में युवाओं को बिंदास रहने- जीने के बारे में बताया गया, इस बात को बेहद ही दिलचस्प अंदाज में कहा गया कि जिंदगी ना मिलेगी दोबारा..। फिल्म में बड़ी स्टार कास्ट थी, भव्य लोकेशन पर फिल्मांकन हुआ, मूवी हिट हो गई । प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, संगीतकार और कहानीकार को भी प्रशंसा मिली। हालांकि इस फिल्म के पटकथा लेखक, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर शायद उस गीत के बोल के मर्म को समझ नहीं पाए जो एक फूल दो माली फिल्म में बलराज साहनी पर फिल्माया गया..जिसमें कहा गया-तुझे सूरज कहूं या चंदा..तुझे दीप कहूं या तारा..मेरा नाम करेगा रोशन जग मेरा राज दुलारा, वैसे तो पूरा गीत ही अपनी अधूरी ख्वाहिशों को फिर से जिंदा करने को बयां करता है। गीतकार प्रेम धवन के लिखे इस अंतरा पर गौर करिए “तेरे रुप में मिल जाएगा.. मुझको जीवन दोबारा.. मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राजदुलारा.. तो ये ना कहिए कि जिंदगी ना मिलेगी दोबारा..जिंदगी तो लौटती बस देखने का नजरिया बदलना पड़ता है।
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जिंदगी ना मिलेगी दोबारा इसी फिल्म के एक सीन में रितिक रोशन अपने बचपन में सुनी उस धुन का मजाक उड़ाते हुए दिखते है..जिसे देखकर-सुनकर एक पूरी पीढ़ी की हसरतें जवान हुईं हैं, वो धुन है दूरदर्शन की सिग्नेचर ट्यून…..टेंटेंटें…..टेंटेंटेंटेंटेंटे….दूरदर्शन के आरंभ से लेकर अब तक आकाशवाणी और दूरदर्शन ने अपनी मुख्य सिग्नेचर ट्यून नहीं बदली है, दरअसल वही उसकी पहचान है। लॉकडाउन की स्थिति में जब हॉटस्टार, नेटफ्लिक्स, ऑन डिमांड मूवी, एकदम आधुनिकता में रचे बसे हजारों चैनल मौजूद हैं, ऐसे में दूरदर्शन में उन सीरियल को हाईएस्ट टीआरपी मिल रही है, जिसमें एक पूरी जनरनेशन का गैप है । ये टीआरपी हमें सोचने के लिए मजबूर करती है कि हमारे डीएनए की सतह पर धूल जरुर जम गई है पर असल चरित्र ज्यों का त्यों है । इस विषय पर गंभीरता से चर्चा करने की जरुरत है, क्योंकि धारावाहिक के रुप में कई बार रामायण को दोहराया गया है। भव्य सैटअप, ग्राफिक्स का शानदार मिश्रण, गठीले शरीर और चॉकेलेटी चेहरे वाले एनएसडी से प्रशिक्षण प्राप्त अभिनेताओं ने विभिन्न चरित्रों का किरदार निभाया पर वो पहचान बनाने में कामयाब नहीं हो पाए, हां इस बीच देवों के देव महादेव एक ऐसा धारावाहिक रहा जिसने पर्याप्त ख्याति भी हासिल की और दर्शकों में रोमांच बनाने में भी कामयाब रहा। हालांकि इसमें ये भी एक तथ्य है कि भगवान शंकर की लीलाओं और उनके विषय में बहुत ज्यादा गहराई से जानकारी किसी के पास नहीं थी, ये धारावाहिक कौतुहलवश भी ज्यादा देखा गया ।
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इन सब बातों को करनी की जरुरत इसलिए पड़ी क्योंकि हम जानते हैं पर मानते नहीं हैं कि हम विशुद्ध आर्यावर्त के प्राणी हैं, कोई दौ सौ साल हमारे ऊपर राज करके अपनी चाय की आदत तो लगा सकता है, पर हमसे हमारा मख्खन और छाछ नहीं छीन सकता । हम कतनी भी ऊंची इमारतों में रहने लगें, पर सुबह या शाम एक बार धरती ना सही फ्लोर के पैर तो छूते ही हैं। अभिनय हो या वास्तविकता हम प्राकृतिक रुपों का ही वरण करते हैं।
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