साल में एक बार अर्धरात्रि को इन मंदिर से निकलती है ‘खप्पर यात्रा’, जानिए क्या है इसके पीछे मान्यता | Once in a year, this temple opens from midnight to 'Khappar Yatra'

साल में एक बार अर्धरात्रि को इन मंदिर से निकलती है ‘खप्पर यात्रा’, जानिए क्या है इसके पीछे मान्यता

साल में एक बार अर्धरात्रि को इन मंदिर से निकलती है ‘खप्पर यात्रा’, जानिए क्या है इसके पीछे मान्यता

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:45 PM IST, Published Date : April 13, 2019/10:59 am IST

कवर्धा – नवरात्रि में कवर्धा के मां दंतेश्वरी मंदिर व चंडी मंदिर से अष्टमी तिथि की अर्धरात्रि को खप्पर निकालने की परंपरा सौ साल से भी ज्यादा पुरानी है, यह परंपरा कब से शुरू हुई इसकी आज तक कोई लिखित इतिहास तो नहीं है लेकिन कवर्धा रिसायत के राजा महिपाल द्वारा स्थापित मां दंतेश्वरी की महिमा आज भी देखने को मिल रही है। आज भी खप्पर की परांपरा मंदिर में कायम है। दंतेश्वरी मंदिर, मां चंडी मंदिर से जहां खप्पर की परंपरा सौ साल से भी ज्यादा पुरानी है वहीं शहर के ही मां चंडी मंदिर से तथा 20 साल पहले मां परमेश्वरि मंदिर से निकलना शुरू हुआ है जो आज भी कायम है।
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खप्पर मां काल रात्रि का रूप माना जाता है जो एक हाथ में तलवार और दूसरे में जलता हुआ खप्पर लेकर मध्य रात्रि को शहर भ्रमण करती है, आज भी अष्टमी की रात 12 बजे मां चंडी व परमेश्वरि दोनों मंदिर से खप्पर निकाला जायेगा।दंतेश्वरी मंदिर में साल में केवल एक बार नवरात्रि में ही खप्पर निकलता है। चैत्र नवरात्रि में नहीं। खप्पर को लेकर ऐसी मान्यता है कि खप्पर के नगर भ्रमण से किसी भी प्रकार की कोई भी आपदा, बीमारी नगर प्रवेश नहीं कर पाती वहीं शहर में सुख, शांति समृद्धि बनी रहती है।
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हर वर्ष शारदीय एवं चैत नवरात्रि में यहां खप्पर निकलता है, जिसे देखने के लिए अब दूर दूर से लोग पहुंचते है। हर वर्श 50 हजार से अधिक की संख्या में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में मनोकामना ज्योति प्रज्जवलित किये जाते है। शहर के मारुति वार्ड में स्थित मां चंडी मंदिर में भी वर्षो से मनोकामना ज्योत प्रज्जवलित किये जाते है। यूं तो कवर्धा के मां दंतेश्वरी मंदिर व मां चंडी मंदिर से ही शुरू से खप्पर निकाली जाती रही है। जिसका आज तक कोई लिखित इतिहास नहीं है। मंदिर में जहां साल में एक बार क्वांर नवरात्रि में खप्पर निकाला जाता है जिसे कालरात्रि का रूप माना जाता है। वहीं मां चंडी मंदिर से प्रति वर्ष चैत व क्वांर दोनों नवरात्रि में खप्पर निकाला जाता है। इस वर्ष भी मां चंडी मंदिर से पंडा खप्पर लेकर नगर भ्रमण करेंगे जिसके दर्शन के लिए प्रतिवर्ष 50 हजार से अधिक की संख्या में श्रद्धालु दूर दूर से आते है। चंडी मंदिर को लेकर मान्यता रही है कि देवी की यह प्रतिमा पहले इतिवारी पंडा की कुल देवी थी, जो झोपडी में थी, बाद में समिति बनाकर मोहल्ले वासियों ने इसे वर्तमान स्थान पर स्थापित किया। जहां शुरू से ही इतवारी पंडा व चंडी मंदिर से खप्पर लेकर निकलते थे। जो आज भी यह परंपरा कायम है। अष्टमी की मध्य रात्रि को मंदिर से दो पंडा सामने अगुवान रहता है जो खप्पर के रास्ते का बाधा खाली करते है व मुख्य पंडा, जो कि एक हाथ में तलवार और दूसरी में जलते हुए खप्पर लेकर नगर भ्रमण को निकलते है।