रामनामी मेला का आयोजन, अनोखा समाज जिसने अंग-अंग में गोदाया रामनाम | Organizing Ramanami Mela

रामनामी मेला का आयोजन, अनोखा समाज जिसने अंग-अंग में गोदाया रामनाम

रामनामी मेला का आयोजन, अनोखा समाज जिसने अंग-अंग में गोदाया रामनाम

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:16 PM IST, Published Date : February 4, 2019/6:32 am IST

जांजगीर। जांजगीर-चाम्पा के डभरा क्षेत्र के कुसमुल गांव में रामनामी मेला का आयोजन किया जा रहा है। रामनानी पंथ के लोग अपने शरीर में ‘राम-राम’ लिखवाए रहते हैं और यहां रामनामी मेले की परंपरा दशकों से चली आ रही है। पूरे छग से रामनामी पंथ के लोग इस रामनामी मेले में शामिल होते हैं।

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यहां रामनामी मेले में सतनामी समाज के धर्मगुरु खुशवंत साहेब और चंद्रपुर विधायक रामकुमार यादव शामिल हुए और रामनामी पंथ के लोगों के साथ पूजा कर, जैतखम्भ में झंडा चढ़ाया।  सतनामी समाज के धर्मगुरु खुशवंत साहेब ने कहा कि रामनामी पंथ के लोग सादा जीवन, उच्च विचार को आगे बढ़ा रहे हैं। वे पूरे शरीर मे ‘राम-राम’ लिखकर पूरे समाज को बरसों से संदेश देते आ रहे हैं। वहीं चंद्रपुर विधायक रामकुमार यादव ने कहा कि रामनामी मेले के माध्यम से रामनामी पंथ के लोग हर साल जुटते हैं और सभी समाज को अपने सादे जीवन से संदेश देते हैं, क्योंकि रामनामी पंथ की सादगी बड़ी है और सबके लिए आदर्श रुप प्रस्तुत करते हैं।

जानें रामनामी पंथ के बारे में-

छत्तीसगढ़ राज्य में कई धर्म, जाति और समाज के लोग निवास करते हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे समाज के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने अपने तन-मन में रामनाम का चोला ओढ़ा हुआ है। हनुमान जी को भगवान राम का परम भक्त माना जाता है जिन्होंने अपना सीना चीर कर ये साबित कर दिया था कि उनके रोम-रोम में सिर्फ और सिर्फ श्रीराम बसते हैं। लेकिन ये त्रेतायुग की बात थी.

हम बात कर रहे हैं कलयुग की और छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा के एक छोटे से गांव चारपारा की जो जातिव्यवस्था का दंश पिछले कई पीढ़ियों से झेलता आ रहा है। हम रुबरू करा रहे हैं उस समाज से जिसका पूरी तरह सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया था

ये लोग अपने पूरे शरीर में राम का नाम गुदवाते हैं, ये कपड़े भी राम लिखे हुए पहनते हैं। दलितों से भेदभाव, मंदिरों में प्रवेश पर रोक के चलते इस समाज के लोगों ने अपने पूरे शरीर पर राम नाम गोदवा लिए थे। रामनामी के घर की दीवारों पर राम लिखा होता है, आपस में भी यह एक दूसरे को राम के नाम से बुलाते हैं। नीचे तस्वीरों में आप साफ-साफ देख सकते हैं कि इस शख्स ने अपने पूरे शरीर में ही रामनाम गोदाया हुआ है. अपने आप अलग इस समाज को छत्तीसगढ़ में रामनामी समाज के नाम से जाना जाने लगा है. इन लोगों की माने तो शरीर पर रामनाम गोदाने की ये प्रथा कई पीढ़ियों से चली आ रही है।

अब इसके पीछे की धारणा आपको बताते हैं, लेकिन हम इस धारणा की पुष्टि नहीं करते. कहा जाता है कि 19वीं सदी के आखिर में हिंदू सुधार आंदोलन के दौरान इन लोगों ने ब्राह्मणों के रीति-रिवाज अपना लिए। इससे ब्राह्मणों का गुस्सा भड़क उठा। उनके गुस्से से त्रस्त रामनामियों ने सचमुच राम नाम की शरण ली। वे उन दीवारों के पीछे जा छिपे, जिन पर राम नाम अंकित था। जब ये दीवारें भी ब्राह्मणों की प्रताड़ना से उन्हें नहीं बचा पाईं तो उन्होंने शरीर पर राम नाम गोदाने को आखिरी हथियार के तौर पर अपनाया कि शायद यह कोई चमत्कार दिखाए।

छत्तीसगढ़ के रामनामी “रामनामी समाज” संप्रदाय के लिए राम का नाम उनकी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। एक ऐसी संस्कृति, जिसमें राम नाम को कण-कण में बसाने की परम्परा है। ये और बात है कि इस संप्रदाय की आस्था न तो अयोध्या के राम में है और ना ही मंदिरों में रखी जाने वाली राम की मूर्तियों में।

इस समाज में पैदा होने वाले बच्चे के पूरे शरीर पर ‘राम’ लिखा जाता है. लेकिन ऐसा नहीं करने पर दो साल के होने तक बच्चे की छाती पर राम का नाम लिखना अनिवार्य है। मान्यता के अनुसार रामनामी शराब, सिगरेट-बीड़ी का सेवन नहीं करते, इसी के साथ राम का जाप रोजाना करना होता है। वहीं जाति, धर्म से दूर हर व्यक्ति से समान व्यवहार करना होता है। मान्यता के अनुसार प्रत्येक रामनामी को घर में रामायण रखनी होती है। इनका मानना है कि भगवान के जीवन पर आधारित यह किताब इन्हें जीवन जीने की पद्धति सिखाती है. इनमें से ज्यादातर लोगों ने अपने घरों की दीवार पर काली स्याही से दीवार के बाहरी और अंदरुनी हिस्से में ‘राम राम’ लिखा हुआ है