36 बरस बाद भी गैस त्रासदी का दंश झेल रहे लोग, पीड़ित संगठनों ने मानव श्रृंखला बनाकर जताया विरोध, रखी ये मांग | People suffering from gas tragedy even after 36 years

36 बरस बाद भी गैस त्रासदी का दंश झेल रहे लोग, पीड़ित संगठनों ने मानव श्रृंखला बनाकर जताया विरोध, रखी ये मांग

36 बरस बाद भी गैस त्रासदी का दंश झेल रहे लोग, पीड़ित संगठनों ने मानव श्रृंखला बनाकर जताया विरोध, रखी ये मांग

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:59 PM IST, Published Date : December 3, 2020/10:50 am IST

भोपाल, मध्यप्रदेश। भोपाल गैस त्रासदी की 36वीं बरसी पर गुरुवार को गैस पीड़ित संगठनों ने मानव श्रृंखला बनाकर अपना विरोध जताया। यूनियन कार्बाइड के सामने मानव श्रृंखला बनाकर गैस त्रासदी के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन का पुतला दहन किया गया। संगठन के लोगों ने अपना विरोध जताकर सही मुआवजे, सही सफाई और सही इलाज के साथ उचित पेंशन, पुनर्वास और आरोपियों की सजा की मांग की। पीड़ित लोगों ने प्रदर्शन के दौरान नारेबाजी भी की।

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मध्य प्रदेश के भोपाल में 2-3 दिसम्बर 1984 यानी आज से 36 साल पहले दर्दनाक हादसा हुआ था। इतिहास में जिसे भोपाल गैस कांड, भोपाल गैस त्रासदी का नाम दिया गया है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक जहरीली गैस का रिसाव हुआ, जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगो की जान गई और कई लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए, जो आज भी त्रासदी की मार झेल रहे हैं। 

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कड़ाके की सर्द रात थी, लोग चैन की नींद सो रहे थे। 2 दिसंबर, 1984 को भोपाल की छोला रोड स्थित यूनियन कार्बाइड कारखाने में भी रोज की तरह अधिकारी, कर्मचारी और मजदूर प्लांट एरिया में अपना काम संभाले हुए थे। लेकिन किसी को क्या पता था कि आज की रात हजारों लोग मौत की नींद सो जाएंगे। 2 दिसंबर, 1984 की रात प्लांट से गैस का रिसाव हुआ और त्रासदी की दास्तां बन गई। 

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भोपाल गैस कांड में मिथाइल आइसो साइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था।  मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 लोगों के मरने की पुष्टि की थी, जबकि अन्य अनुमान बताते हैं कि 8000 से ज्यादा लोगों की मौत तो दो सप्ताह के अंदर ही हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग रिसी हुई गैस से फैली बीमारियों के कारण मारे गये थे। उस भयावह घटनाक्रम को फिर से याद करने पर भुक्तभोगियों की आंखें आज भी डबडबा जाती हैं।