छत्तीसगढ़ में बापू की स्मृतियों का अनमोल खजाना, आज भी शान से फहराया जाता है महात्मा गांधी का दिया तिरंगा | Priceless treasure of Bapu's memories in Chhattisgarh Even today, Mahatma Gandhi's tricolor is hoisted with pride

छत्तीसगढ़ में बापू की स्मृतियों का अनमोल खजाना, आज भी शान से फहराया जाता है महात्मा गांधी का दिया तिरंगा

छत्तीसगढ़ में बापू की स्मृतियों का अनमोल खजाना, आज भी शान से फहराया जाता है महात्मा गांधी का दिया तिरंगा

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:46 PM IST, Published Date : October 2, 2019/1:42 am IST

भानुप्रतापपुर । महात्मा गांधी से जुड़ी स्मृतियों में एक स्मृति कांकेर के एक छोटे से गांव में एक परिवार ने भी सहेजकर रखी है। वो स्मृति है सुराजी तिरंगा। जिसे खुद बापू ने आज से 96वें साल पहले स्वतंत्रता सेनानी इंदरू केवट को दिया था। तब से हर खास मौके पर इस तिरंगे को भी गांव में फहराया जाता है।

ये भी पढ़ें- विदेश मंत्री की दो टूक, रूस से क्या खरीदना है क्या नहीं ये हमारा अं…

महात्मा गांधी भारतीय जनमानस की सोच और धरोहर के रूप आज भी प्रासंगिक हैं। उनसे जुड़ी चीजें भी इतिहास का हिस्सा बन चुकी हैं। ऐसी ही एक बेशकीमती धरोहर है कांकेर जिले के दुर्गुकोंदल ब्लॉक के सुरंगदह गांव में, गांव के तुलसी निषाद के पास 96 साल पुराना वो सुराजी तिरंगा अनमोल धरोहर के तौर पर सुरक्षित रखा है। जिसे खुद गांधी जी ने उनके दादा और स्वतंत्रता सेनानी इंदरू केवट को अपने हाथों से दिया था। बात 1923 की है, इंदरू केवट अपने एक साथी के साथ गांधी जी से मिलने पैदल ही धमतरी पहुंचे थे। इंदरू की लगन देखकर गांधी ने तब उन्हें सुराजी तिरंगा थमाया था।

ये भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, SC/ST एक्ट मामले में शिकायत के बाद तुर…

1923 से 1965 तक लगातार 45 सालों तक इंदरू केवट अपने गांव में सुराजी तिरंगा फहराते रहे। उनके निधन के बाद उनके बेटे हीरालाल ने 17 साल तक इस परंपरा का निर्वहन किया और अब हर साल स्वतंत्रता दिवस पर सेनानी इंदरू केवट की चौथी पीढ़ी के तुलसी निषाद झंडा चौक में इस तिरंगे को फहराते हैं। निषाद परिवार ने 96 साल से इस बापू की इस धरोहर को अपने बड़े जतन से संभाल कर रखा है। अहम मौकों पर गांधी जी की ये अनमोल स्मृति जब फहराई जाती है तो बरबस ही बापू के सिद्धांतों से वातावरण महक उठता है…ये सुराजी तिरंगा महज एक परिवार या गांव का नहीं बल्की पूरे छत्तीसगढ़ का गौरव है…

ये भी पढ़ें- फारूक अब्दुल्ला को सुप्रीम कोर्ट से झटका, हिरासत के खिलाफ याचिका खा…

महात्मा गांधी का छत्तीसगढ़ से गहरा नाता रहा। बापू जब छत्तीसगढ़ के दौरे पर थे तो दुर्ग भी पहुंचे थे। दुर्ग में उनके द्वारा उपयोग की गई कई निशानियां आज भी महफूज है जिनमें से एक लकड़ी की कुर्सी भी है जो स्व. घनश्याम सिंह गुप्ता के दुर्ग स्थित निवास पर आज भी मौजूद है।  नवम्बर 1933 में गांधीजी ने हरिजनों के उद्धार के लिए भारत भ्रमण की घोषणा की। ये छत्तीसगढ़ के लिए गर्व की बात है कि देशव्यापी अभियान की शुरुआत उन्होंने छत्तीसगढ़ से की। उनकी यात्रा दुर्ग नगर से प्रारंभ हुई थी। 22 नवम्बर को गांधीजी दुर्ग पहुंचे और घनश्याम सिंह गुप्ता के चंडी मंदिर मार्ग स्थित निवास पर ठहरे थे। गुप्तजी आर्य समाजी थे, वे कांग्रेस के प्रभावशाली नेता थे। 31 जुलाई 1937 से 19 फरवरी 1952 तक वे सीपी-बरार विधानसभा के स्पीकर भी रहे। वे 1933 में दुर्ग नगर पालिका के अध्यक्ष बने। घनश्याम सिंह गुप्ता के नाती डॉ राघवेन्द्र सिंह गुप्ता गांधी जी से जुड़ी यादें साझा करते हुए कहते हैं कि गांधी जी जब यहां आये थे तो जिस कुर्सी पर बैठकर वे चर्चा किया करते थे वो लकड़ी की कुर्सी आज भी संभालकर रखी गई है।

ये भी पढ़ें- पहले फेसबुक पर की छात्रा से दोस्ती, फिर अकेले में बुलाया मिलने, फिर…

अपने दुर्ग दौरे के दौरान गांधी जी हरिजन मोहल्ला भी पहुंचे। जिसे आज सिद्धार्थ नगर के नाम से जाना जाता है। लोगों का कहना है कि यहां उन्होंने स्वच्छता का पाठ तो पढ़ाया ही साथ ही छूत-अछूत का भेदभाव मिटाने गांधी जी ने कई घरों में हरिजनों को अपने साथ ले जाकर प्रवेश कराया। गांधी जी के साथ हरिजन मोहल्ले के जानी लाल बंछोर पदयात्रा करते हुए दुर्ग के शिवनाथ नदी तक गए उसके बाद गांधी चौक, बैथड स्कुल जिसे आज सरदार वल्लभ भाई पटेल स्कुल के नाम से जाना जाता है वहां भी गए।

ये भी पढ़ें- इमरान खान ने फिर उगला जहर कहा- अल्लाह को खुश करने कश्मीर में जिहादि…

दुर्ग में गांधी जी के आगमन का जब भी जिक्र होता है तो हरिजन मोहल्ले से लगा उस समय का बैथड स्कुल जिसे आज मोहनलाल बाकलीवाल स्कुल,सरदार वल्लभ भाई पटेल स्कुल के नाम से जाना जाता है यहा उन्होंने कुछ देर स्कूली बच्चो से चर्चा की थी पढ़ाई के हालचाल को जाना था। दुर्ग का सबसे व्यस्तम सदर बाजार, यहां का मुख्य चौक है गांधी चौक जिसका नाम कभी पांच कंडील हुआ करता था। इसी स्थान पर आन्दोलनकारी इकठ्ठा होकर ध्वजारोहण करने के पश्चात पदयात्रा प्रारंभ करते थे इस स्थान पर भी गांधी जी ने सभा को संबोधित किया था। दुर्ग से गांधी जी की बहुत सी यादें जुड़ी है जिनमें दुर्ग लोकसभा के प्रथम सांसद मोहन लाल बाकलीवाल का नाम भी शामिल है लेकिन समय के साथ यादें सिर्फ यादों में ही सिमटकर रह गई है तस्वीरे भी जो थी वो खराब हो गई है। आज भी दुर्ग के इन स्थानों पर गांधी जी के आने का अहसास होता है।

<iframe width=”560″ height=”315″ src=”https://www.youtube.com/embed/bx0gMFHviPg” frameborder=”0″ allow=”accelerometer; autoplay; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture” allowfullscreen></iframe>

 
Flowers