अक्सर देखा गया है कि सरकार और प्रसाशनिक अधिकारियों के बीच तालमेल न बैठे तो चौंकाने वाले इस्तीफे होते हैं। एक लंबी फेहरिस्त है बड़े पदों पर बैठे अधिकारियों के इस्तीफों की, वजह कभी सरकार से नोक-झोंक तो कभी निजी कारण, तो कभी आपसी तालमेल और एक-दूसरे के निर्णयों से असंतुष्टी।
ताजा मामला RBI को लेकर है, RBI के डिप्टी गवर्नर विरल आर्चाय ने तय कार्यकाल से पहले ही पद छोड़ दिया है। RBI में पीछले 7 महीनों में ये दूसरा बड़ा इस्तीफा है। आचार्य से पहले RBI के गवर्नर पद से उर्जित पटेल ने केंद्र सरकार से सुर-ताल न मिलने पर आरबीआई से किनारा किया था। पिछले तीन दशक में यह पहला मौका था जब वित्त मंत्रालय के साथ तनाव के बीच किसी गवर्नर ने त्यागपत्र दिया है। उर्जीत पटेल के इस्तीफे के बाद शक्तिकांत दास को बतौर RBI का गवर्नरनियुक्त किया गया।
खबरें ये भी है कि विरल आर्चाय शक्तिकांत दास के कुछ फैसलों से असंतुष्ट थे, जिसकी वजह से उन्होंने इस्तीफा देने का निर्णय लिया। शक्तिकांत दास के गवर्नर बनने के बाद आरबीआई इस साल रेपो रेट में 3 बार कटौती कर चुका है। इनमें से 2 बार आचार्य रेट कट के पक्ष में नहीं थे। हालांकि इस मामले पर विरल आर्चाय ने कुछ नहीं कहा है।
न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी में प्रफेसर रहे आचार्य आरबीआई के सबसे युवा डेप्युटी गवर्नर बने थे। फाइनैंशल मार्केट्स और मॉनेटरी पॉलिसी के मामले में वह कंजर्वेटिव नजरिए के हिमायती रहे हैं। मार्केट्स को लग रहा है कि अब मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी के काम का तौर-तरीका बदल सकता है।
खुद को गरीबों का ‘रघुराम राजन’ बताने वाले विरल आचार्य ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि जो सरकार केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता से समझौता करती है, उसे बाजार की नाराजगी झेलनी पड़ती है। ये बातें आचार्य 2018 में एक भाषण के दौरान कहीं थी, इस बयान के बाद सरकार और RBI के बीच की तल्खी खुलकर सामने आई थी।
7 महीने पहले जब RBI गवर्नर पद से उर्जित पटेल ने इस्तीफा दिया था, उसी दौरान अटकलें लगाई जा रही थीं कि आर्चाय भी इस्तीफा दे सकते हैं, उस दौरान ऐसा नहीं हुआ लेकिन, 6 महीने बाद आचार्य ने आखिर इस्तीफा दे ही दिया। बताया जा रहा है कि आर्चाय उर्जित के इस्तीफे से खुश नहीं थे।
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