पौष पूर्णिमा के स्नान से मिलेगी मोक्ष प्राप्ति,छत्तीसगढ़ में छेरछेरा का आरंभ | paush purnima 2019 :

पौष पूर्णिमा के स्नान से मिलेगी मोक्ष प्राप्ति,छत्तीसगढ़ में छेरछेरा का आरंभ

पौष पूर्णिमा के स्नान से मिलेगी मोक्ष प्राप्ति,छत्तीसगढ़ में छेरछेरा का आरंभ

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:17 PM IST, Published Date : January 21, 2019/4:33 am IST

रायपुर। हिन्दू धर्म ग्रन्थों में पौष पूर्णिमा के दिन दान, स्नान और सूर्य देव को अर्घ्य देने का विशेष महत्व बतलाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि पौष मास के समय में किए जाने वाले धार्मिक कर्मकांड की पूर्णता पूर्णिमा पर स्नान करने से सार्थक होती है। पौष पूर्णिमा के दिन काशी, प्रयागराज और हरिद्वार में गंगा स्नान का बड़ा महत्व होता है। पौष सूर्य देव का माह कहलाता है। इस मास में सूर्य देव की आराधना से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए पौष पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान और सूर्य देव को अर्घ्य देने की परंपरा है।

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चूंकि पौष का महीना सूर्य देव का माह है और पूर्णिमा चंद्रमा की तिथि है। अतः सूर्य और चंद्रमा का यह अद्भूत संगम पौष पूर्णिमा की तिथि को ही होता है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों के पूजन से मनोकामनाएं पूर्ण होती है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती है।

पौष पूर्णिमा व्रत और पूजा विधि

पौष पूर्णिमा पर स्नान, दान, जप और व्रत करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और मोक्ष मिलता है। इस दिन सूर्य देव की आराधना का विशेष महत्व है। पौष पूर्णिमा की व्रत और पूजा विधि इस प्रकार है –
1. पौष पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल स्नान से पहले व्रत का संकल्प लें।
2. पवित्र नदी या कुंड में स्नान करें और स्नान से पूर्व वरुण देव को प्रणाम करें।
3. स्नान के पश्चात सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए।
4. स्नान से निवृत्त होकर भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए और उन्हें नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।
5. किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा देनी चाहिए।
6. दान में तिल, गुड़, कंबल और ऊनी वस्त्र विशेष रूप से देने चाहिए।

शाकंभरी जयन्ती
जैन धर्मावलंवियों द्वारा इस दिन को शाकंभरी जयंती के रूप में मनाया जाता है। भक्तों के आह्वान पर देवी दुर्गा ने इस दिन शाकम्बरी का रुप धारण कर लोगों को परेशानी से निजात दिलायी थी। इस दिन मां भवानी की भी पूजा करने का विशेष विधान है।

छेरछेरा
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में रहने वाली जनजातियाँ पौष माह के पूर्णिमा के दिन छेरता पर्व बड़े धूमधाम से मनाती हैं। सभी के घरों में नये चावल का चिवड़ा गुड़ तथा तिली के व्यंजन बनाकर खाया जाता है। गांव के बच्चों की टोलियाँ घर-घर जाकर परम्परानुसार प्रचलित बोल छेर छेरता काठी के धान हेर लरिका बोलते हैं और मुट्ठी भर अनाज मांगते हैं। रात्रि में ग्रामीण बालाएं टोली बनाकर घर में जाकर लोकड़ी नामक गीत गाती हैं।

 
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