क्या वजह है महिलाओं में स्लीपिंग डिसॉर्डर की | Sleeping disorders in women

क्या वजह है महिलाओं में स्लीपिंग डिसॉर्डर की

क्या वजह है महिलाओं में स्लीपिंग डिसॉर्डर की

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 05:12 PM IST, Published Date : February 10, 2018/2:00 pm IST

क्या किसी खास मौसम में आपको स्लीपिंग डिसॉर्डर की समस्या घेरती है? कार्यक्षमता घट जाती है? आप अकारण चिड़चिड़े और उदास रहते हैं? एक्सपट्र्स का मानना है कि यह सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर (सैड) की स्थिति है, जो मूड डिसॉर्डर का एक रूप है। साल के किसी खास महीने में यह अवसाद यादा घेरता है। आमतौर पर सर्दियों के कोहरे व धुंध भरे दिनों में इसका प्रभाव ज्यादा देखने को मिलता है। दरअसल यह शरीर की बदलते मौसम के प्रति प्रतिक्रिया है। इसी के कारण गर्मियों में कई बार गुस्सा आता है और सर्दी में सुस्ती बढ़ जाती है।

 

 

यह मौसम का प्रभाव है, जो लोगों के मूड पर नजर आता है। वैसे इस स्थिति का सही-सही कारण नहीं बताया जा सकता क्योंकि इस किस्म का मूड डिसॉर्डर आनुवंशिक, जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारणों से भी हो सकता है। ब्रेन में सेरोटोनिन यानी न्यूरोट्रांस्मीटर के रेगुलेशन में किसी भी असंतुलन से मूड डिसॉर्डर जैसी समस्या हो सकती है।

सर्दियों में ही क्यों

यह महज एक संयोग है कि सर्दियों में ऐसे मामले ज्यादा देखने को मिलते हैं। इसकी वजह है, कोहरा और कई दिन तक धूप न मिलना। वैसे आधुनिक जीवनशैली में व्यक्ति खुद पर कम ध्यान दे पाता है। परिवार सीमित हो गए हैं, साथ ही टेक्नोलॉजी पर निर्भरता से भी समाज में अकेलापन बढ़ रहा है। लोग अपनी समस्याएं प्रियजनों के बजाय वर्चुअल दुनिया से शेयर कर रहे हैं। महानगरों में सपोर्ट सिस्टम की कमी है।ये सारे कारक मिल कर मूड को प्रभावित करते हैं और इनमें बदलता मौसम भी एक कारण बन जाता है। हालांकि मौसम का डिप्रेशन से कोई सीधा संबंध नहीं है। सर्दियों में दिन छोटे होते हैं तो काम पूरे नहीं होते। इससे दिनचर्या अव्यवस्थित होती है और इनका असर मानसिक सेहत पर पड़ता है।

पहचानें समस्या को 

ऊर्जाहीन या सुस्ती महसूस करना, स्लीपिंग डिसॉर्डर, खानपान की आदतों में एकाएक बदलाव, लोगों से न मिलना-जुलना, मौज-मस्ती भरी गतिविधियों में हिस्सा न लेना, नॉजिया, ध्यान केंद्रित न कर पाना, निराशा….ये सभी लक्षण सैड के हैं। ऐसे लक्षण किसी खास मौसम में पनपते हैं और मौसम बदलते ही खत्म हो जाते हैं। बरसात या जाड़ों में ये इसलिए ज्यादा दिखते हैं क्योंकि इस मौसम में धूप कम मिलती है, जिससे बॉडी क्लॉक गड़बड़ हो जाती है। ऐसे में फटीग, भूख न लगना, ओवरईटिंग, अनिद्रा या ज्यादा नींद आने जैसी समस्याएं पैदा होती हैं। ईटिंग और स्लीपिंग डिसॉर्डर के कारण लोग काब्र्स का सेवन ज्यादा करने लगते हैं, जिससे उनका वजन बढऩे लगता है।

 

इससे डिप्रेशन में और इजाफा होता है। माना जाता है कि यह समस्या स्त्रियों को ज्यादा घेरती है क्योंकि वे अपनी सेहत पर कम ध्यान दे पाती हैं। वैसे भारत में ऐसे कोई शोध नहीं हुए हैं, जिनसे पता लग सके कि यह समस्या किस उम्र या जेंडर को ज्यादा घेरती है लेकिन यूके में हुई रिसर्च में इस डिसॉर्डर से स्त्रियों के ग्रस्त होने के ज्यादा मामले सामने आए हैं। इनमें भी 18 से 30 की उम्र के लोग इससे अधिक प्रभावित देखे गए।

 बचाएं खुद को

ब्रेन में न्यूरोट्रांस्मीटर्स के असंतुलन के कारण डिसॉर्डर होता है, इसलिए कई बार दवाओं की जरूरत होती है। समस्या कम हो तो खानपान, लाइफस्टाइल में बदलाव और व्यायाम से भी इसका प्रभाव कम करने में मदद मिलती है। नियमित व्यायाम से फील गुड हॉर्मोन्स यानी सेरोटोनिन और एंडोर्फिन का स्राव अधिक होता है, जिससे मूड ठीक रहता है। बाहर जाने का समय न हो तो घर पर ही वर्कआउट किया जा सकता है। इंडोर गेम्स जैसे टेनिस, कैरम या लूडो खेलने से भी मन प्रसन्न रहता है। साथ ही डाइट का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। उतनी ही कैलरी लें, जितनी वर्कआउट से खर्च कर सकें। सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर में कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) को कारगर माना जाता है।

मन को जो भाए

रोज कम से कम 30 मिनट सुबह धूप में बैठें। सुबह वक्त न मिले तो दिन में कुछ देर धूप में बैठें। इससे पर्याप्त विटमिन डी मिलेगा।

परिवार के साथ मिल कर कोई भी इंडोर गेम खेलें और हंसने का कोई मौका न छोड़ें।

अरोमा थेरेपी भी सैड के प्रभाव को कम करने में कारगर है। एसेंशियल ऑयल्स शरीर की इंटर्नल क्लॉक को ठीक करने में मदद करते हैं, जिससे स्लीपिंग और ईटिंग डिसॉर्डर दूर होता है। बाथ टब में कुछ बूंदें एसेंशियल ऑयल की डालें। दिन भर तरोताजा रहेंगे।

ट्रेडमिल, साइक्लिंग के अलावा ध्यान और योग भी इसमें लाभकारी है।

दिनचर्या को व्यवस्थित रखें और वजन नियंत्रित रखें।

छुट्टी वाले दिन घर पर रहने के बजाय पिकनिक पर जाएं या घूमें।

सकारात्मक भावनाओं को जगाने वाली पुस्तकें पढ़ें, मूवी देखें, दोस्तों से बातें करें।

स्पा लें, शॉपिंग करें, वॉर्डरोब संवारें और प्रकृति के बीच वक्त बिताएं।

रिश्तेदारों और दोस्तों को घर पर निमंत्रित करें। सामाजिक संबंधों को समय दें।

 

 

web team IBC24