नई दिल्ली | लोकसभा चुनाव में साथ आए बुआ-बबुआ की जोड़ी अब आगे नहीं चलेगी, इसका ऐलान खुद बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अपने ट्वीटर पर किया है। बसपा प्रमुख ने सपा के साथ गठबंधन खत्म करने का ऐलान करते हुए लिखा- वैसे भी जगजाहिर है कि सपा के साथ सभी पुराने गिले-शिकवों को भुलाने के साथ-साथ सन् 2012-17 में सपा सरकार के बीएसपी व दलित विरोधी फैसलों, प्रमोशन में आरक्षण विरूद्ध कार्यों एवं बिगड़ी कानून व्यवस्था आदि को दरकिनार करके देश व जनहित में सपा के साथ गठबंधन धर्म को पूरी तरह से निभाया। परन्तु लोकसभा आमचुनाव के बाद सपा का व्यवहार बीएसपी को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ऐसा करके बीजेपी को आगे हरा पाना संभव होगा? जो संभव नहीं है। अतः पार्टी व मूवमेन्ट के हित में अब बीएसपी आगे होने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अकेले अपने बूते पर ही लड़ेगी।
बीएसपी की आल इण्डिया बैठक कल लखनऊ में ढाई घण्टे तक चली। इसके बाद राज्यवार बैठकों का दौर देर रात तक चलता रहा जिसमें भी मीडिया नहीं था। फिर भी बीएसपी प्रमुख के बारे में जो बातें मीडिया में फ्लैश हुई हैं वे पूरी तरह से सही नहीं हैं जबकि इस बारे में प्रेसनोट भी जारी किया गया था।
— Mayawati (@Mayawati) June 24, 2019
बीएसपी की आल इण्डिया बैठक कल लखनऊ में ढाई घण्टे तक चली। इसके बाद राज्यवार बैठकों का दौर देर रात तक चलता रहा जिसमें भी मीडिया नहीं था। फिर भी बीएसपी प्रमुख के बारे में जो बातें मीडिया में फ्लैश हुई हैं वे पूरी तरह से सही नहीं हैं जबकि इस बारे में प्रेसनोट भी जारी किया गया था।
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बता दें कि इससे पहले बसपा सुप्रीमो ने लोकसभा चुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर आरोप लगाया था कि उन्होंने मुझे मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट न देने का संदेश दिया था। बसपा प्रमुख ने कहा कि सपा प्रमुख द्वारा मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट ने देने के पीछे धार्मिक आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण होने का तर्क दिया गया, हालांकि मैंने उनकी बात नहीं मानी।
परन्तु लोकसभा आमचुनाव के बाद सपा का व्यवहार बीएसपी को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ऐसा करके बीजेपी को आगे हरा पाना संभव होगा? जो संभव नहीं है। अतः पार्टी व मूवमेन्ट के हित में अब बीएसपी आगे होने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अकेले अपने बूते पर ही लड़ेगी।
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मायावती द्वारा सपा प्रमुख पर लगाया जा रहे आरोपों और अकेले चुनाव लड़ने के निर्णय से देश के सबसे बड़े सूबे की सियासत हिलती नजर आ रही है, लेकिन अब देखने वाली बात ये होगी कि आरोप-प्रत्यारोप की सियासत के बीच अकेले चुनाव लड़ने से दोनों ही पार्टियों को कितना फायदा और कितना नुकसान होता है।
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