नई दिल्ली। एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी लड़की को ‘कॉल गर्ल’ कहना उसे खुदकुशी के लिए उकसाना नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक यदि कोई कॉल गर्ल कहे जाने पर कोई महिला आत्महत्या करती है तो केवल इतना कहना आत्महत्या के लिए उकसाने का आधार नहीं हो सकता।
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बता दें कि पश्चिम बंगाल में एक कोचिंग में पढ़ने वाली युवती को अपने शिक्षक से प्यार हो गया था। इसके बाद दोनों ने विवाह करने का फैसला किया और लड़की 5 मार्च, 2004 को लड़के के परिजनों से मिलने और शादी की बात करने पहुंची। इस बात पर लड़के के माता-पिता लड़की पर भड़क गए और उन्होंने उसे गुस्से में उसे ‘कॉल गर्ल’ कह दिया। लड़के के अभिभावकों ने अपने लड़के की उसके साथ शादी कराने से इंकार कर दिया। इसके बाद लड़की अपने घर लौटी और अगले दिन उसने खुदकुशी कर ली। आत्महत्या से पहले लड़की ने दो सुसाइड नोट भी छोड़े, जिसमें उसने लड़के और उसके माता-पिता को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया।
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मृतका के पिता की शिकायत पर पुलिस ने इस मामले में खुदकुशी के लिए उकसाने का प्रकरण दर्ज कर लिया। मामले में लड़के और उसके माता-पिता को आरोपी बनाया गया। हालांकि लड़के के पिता की मौत के बाद प्रकरण में अब लड़के की मां ही बस आरोपी हैं।
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बता दें कि खुदकुशी के लिए उकसाने पर 10 साल तक की सजा सुनाई जा सकती है। उच्चतम न्यायालय की डिवीजन बैंच की जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस आर.सुभाष रेड्डी ने बंगाल सरकार की अपील को डिसमिस खारिज करते हुए यह निर्णय सुनाया है।
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