नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने इच्छामृत्यु के मामले में बहुत अहम फैसला सुनाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने पैसिव यूथेनेशिया की इजाजत दे दी है हालांकि ये इजाजत दिशानिर्देशों के अनुरूप ही होगी। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने ये फैसला सुनाया, जो इसलिए भी काफी अहम है क्योंकि इस मामले की आखिरी सुनवाई में संविधान पीठ ने कहा था कि ‘राइट टू लाइफ‘ में गरिमापूर्ण जीवन के साथ-साथ गरिमामय ढंग से मृत्यु का अधिकार भी शामिल है’ ऐसा हम नहीं कहेंगे। हालांकि पीठ ने आगे कहा कि हम ये जरूर कहेंगे कि गरिमापूर्ण मृत्यु पीड़ा रहित होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इंसान को सम्मान के साथ गरिमापूर्ण मृत्यु का अधिकार है।
#Breakingnews सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा- इच्छामृत्यु की शर्तों के साथ दी जा सकती है इजाजत, सम्मान के साथ मौत इंसान का अधिकार pic.twitter.com/S6bttQ7uEe
— IBC24 (@IBC24News) March 9, 2018
आपको बता दें कि एक्टिव और पैसिव यूथेनेशिया का मतलब ये होता है कि एक्टिव यूथेनेशिया में इच्छामृत्यु चाहने वाले मरीज की मौत के लिए कुछ उपाय किया जाए, जबकि पैसिव यूथेनेशिया में मरीज की जान बचाने के लिए कुछ भी नहीं किया जाता है। मसलन मरीज को बचाने के लिए अगर लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा जाता है तो उसके लिविंग विल के मुताबिक ये सिस्टम हटाने की इजाजत दी जा सकती है, हालांकि इसके साथ शर्त जुड़ी रहेगी। इस तरह पैसिव यूथेनेशिया यानी इच्छा मृत्यु वह स्थिति है जब आखिरी सांसें गिन रहा मृत्युशैया पर लेटे व्यक्ति की मौत की तरफ बढ़ाने की मंशा से उसे इलाज देना बंद कर दिया जाता है।
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ये मामला 2005 में पहली बार सुप्रीम कोर्ट में आया था, जब एनजीओ कॉमन कॉज ने याचिका दाखिल कर अपने वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से ये दलील दी थी कि गंभीर बीमारियों का सामना कर रहे मरीजों को लिविंग विल बनाने का अधिकार होना चाहिए। इस विल में मरीज ये बता सकेगा कि जब उसके ठीक होने की उम्मीद न हो तो वो उसे जीवन रक्षक उपकरणों के सहारे नहीं रखा जाए। केंद्र सरकार का पक्ष ये था कि लिविंग विल की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि इसका दुरुपयोग हो सकता है और सैद्धांतिक रूप से यह सही नहीं है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यों की संविधान पीठ ने 11 अक्टूबर को इस याचिका पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
वेब डेस्क, IBC24
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