गोवर्धन पूजन की संपूर्ण विधि, और अन्नकूट का महत्व | The complete law of Govardhan worship

गोवर्धन पूजन की संपूर्ण विधि, और अन्नकूट का महत्व

गोवर्धन पूजन की संपूर्ण विधि, और अन्नकूट का महत्व

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:16 PM IST, Published Date : October 18, 2017/12:15 pm IST

अन्नकूट, गोवर्धन पूजा 

– दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है। अन्नकूटध्गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारंभ हुई। 

– देव स्थान के मुख्य द्वार के सामने गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है। 

– इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराके धूप-चंदन तथा फूल माला से श्रृंगार किया जाता है।

– उनका श्रृंगार होने के बाद उनकी गंध, अक्षत और फूल अर्पण कर पूजन किया जाता है। उनके पैर धो कर उनकी प्रदक्षिणा ली जाती है

– पौराणिक दृष्टि से चूँकि कृष्ण ने इंद्र का मान-मर्दन किया था अत: इंद्र के स्थान पर कृष्ण के पूजन का विशेष महत्व है। कहते हैं कि इस पर्व का अनुष्ठान करने से भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह दिन पवित्र होने के बावजूद इस दिन चंद्रदर्शन वर्ज्य माना गया है। लोगों का विश्वास है कि इस दिन शाम को मार्गपाली और राजा बलि की पूजा करने तथा मार्गपाली के बंदनवार के नीचे होकर निकलने से सभी प्रकार की सुख शांति रहती है तथा कई रोग दूर हो जाते हैं।

– गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। 

वर्ष 2017 में अन्नकूट 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन पूजा का मुहूर्त निम्न – 

इस बार गोवर्धन पूजा का शुभ समय मुहूर्त सुबह – 07:22 से 9:29 बजे तक रहेगा. पुरे दिन प्रतिपदा होने से पूजा का मुहूर्त दिन भर है. 

 

प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ = 19 अक्टूबर 2017 को रात्रि 11:42 बजे से 

प्रतिपदा तिथि समाप्त = 20 अक्टूबर 2017 को रात्रि 12:22 बजे

 

गोवर्धन (अन्न कूट) पूजा सामग्री

– गाय का गोबर, गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाने के लिए

– लक्ष्मी पूजन वाली थाली, बड़ा दीपक, कलश 

– लक्ष्मी पूजन में रखे हुए गन्ने के आगे का हिस्सा तोड़कर गोवर्धन पूजा में काम लिया जाता है।

– रोली, मौली, अक्षत

– फूल माला, पुष्प

– बिना उबला हुआ दूध।

– 2 गन्ने, बताशे, चावल, मिट्टी का दीया

– जलाने के लिए धूप, दीपक, अगरबत्ती

– नैवेद्य के रूप में फल, मिठाई आदि 

– पंचामृत के लिए दूध, दही, शहद, घी और शक्कर

– भगवान कृष्ण की प्रतिमा

 

गोवर्धन (अन्न कूट) पूजन विधि

इस दिन प्रात:काल शरीर पर तेल की मालिश के बाद स्नान करना का प्रावधान हैं। उसके बाद पूजा स्थान पर बैठें और अपने कुलदेव का ध्यान करें पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनायें। इसे लेटे हुए पुरुष की आकृति में बनाया जाता है । फूल , पत्तियों , टहनियों व गाय की आकृतियों से या अपनी सुविधानुसार उस आकृति को सजायें और उनके मध्य में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति रखे, नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्डा बना लें और वहाँ एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रखे फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिए जाते हैं और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांट देते हैं।

अब इस मंत्र को पढ़ें

गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।

विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।।

इसके बाद गायों को स्नान कराएं और उन्हें सिन्दूर आदी से सजाएं. उनकी सींग में घी लगाएं और गुड़ खिलाएं. फिर इस मंत्र का उच्चारण करें.

लक्ष्मीर्या लोक पालानाम् धेनुरूपेण संस्थिता।

घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु।।

नैवेद्य के रूप में फल, मिठाई आदि अर्पित करें। गन्ना चढायें। एक कटोरी दही नाभि स्थान में डाल कर बिलोने से झेरते है और गोवर्धन के गीत गाते हुवे गोवर्धन की सात बार परिक्रमा करते हैं । परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व अन्य खील (जौ) लेकर चलते हैं। जल के लोटे वाला व्यक्ति पानी की धारा गिराता हुआ तथा अन्य जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं।

 

गोवर्धन (अन्न कूट) कथा-

गोवर्धन पूजा की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। उससे पूर्व ब्रज में इंद्र की पूजा की जाती थी। मगर भगवान कृष्ण ने गोकुल वासियों को तर्क दिया कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं प्राप्त होता। वर्षा करना उनका कार्य है और वह सिर्फ अपना कार्य करते हैं जबकि गोवर्धन पर्वत गौ-धन का संवर्धन एवं संरक्षण करता है, जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है। इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए।

इसके बाद इंद्र ने ब्रजवासियों को भारी वर्षा से डराने का प्रयास किया, पर श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर सभी गोकुलवासियों को उनके कोप से बचा लिया। इसके बाद से ही इंद्र भगवान की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का विधान शुरू हो गया है। यह परंपरा आज भी जारी है।

वेब डेस्क, IBC24