दीपावली में ऐसे करें पूजन, जिससे प्रसन्न होंगी देवी लक्ष्मी | The complete method of Lakshmi worship in Deepawali

दीपावली में ऐसे करें पूजन, जिससे प्रसन्न होंगी देवी लक्ष्मी

दीपावली में ऐसे करें पूजन, जिससे प्रसन्न होंगी देवी लक्ष्मी

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:12 PM IST, Published Date : October 13, 2017/12:17 pm IST

दीपावली मुहूर्त 19 october 2017

 

अभिजित मुहूर्त – 11:25 am- 12:11 pm

राहू काल – 13:15 से 14:42  

 

चौघडिया

शुभ- 06:02 AM – 07:28 AM 

चर- 10:22 AM – 11:48 AM  

लाभ- 11:48 AM – 13:15 PM

अमृत- 13:15 PM – 14:42 PM

शुभ- 16:08 PM – 17:35 PM

 

संध्या

अमृत- 17:35 PM -19:08 PM  

चर-  19:08 PM – 20:42 PM

लाभ- 23:48 PM – 01:22 AM   ( अगले दिन 01.22 AM )

शुभ- 26:55- 28:29    (अगले दिन 02.55 AM से 04.29 AM)

अमृत- 28:29-30:02  (अगले दिन 04.29 AM  से 06.02 AM)

 

स्थिर लग्न

वृश्चिक- 08:28 am से 10:45 am 

कुम्भ- 02:38 pm से 04:09 pm

वृषभ- 07:14 pm से 09:10 pm

सिंह- 01:42 am से 03:56 am

 

 

पूजन सामग्री :-

• लक्ष्मी एवं गणेश जी की मूर्ति – मिट्टी या धातु की 

• रोली 10 ग्राम (Roli 10 gm) 

• मौली 2 गोला (Mauli 2 pieces)

• लौंग 10 ग्राम (Clove 10 gm) 

• इलायची 10 ग्राम (Cardamon 10 gm)

• साबुत सुपारी 11 पीस (Areca nut(Supari) 11 pieces)

• इत्र 1 शीशी (Scent 1 small bottle )

• देशी घी 250 ग्राम (Ghee 250 gm)

• आम के पत्ते (एक पल्लो) (Mango Leaves (in a bunch) )

• खील 250 ग्राम (Kheel (made up from rice) 250 gm)

• बताशा 250 ग्राम (Bataasha (type of sweet made from sugar in different shape) 250 gm ) 

• सिंदूर 10 ग्राम (श्री हनुमान जी वाला ) (Vermillion (sindoor) 10 gm (orange colour) ) 

• लाल सिंदूर की डिब्बी-1 (Red vermillion(Lal sindoor) – 1 small box)

• कपूर 10 ग्राम (Camphor (kapur) 10 gm ) 

• रुई की बत्ती (Cotton lint( cotton batti)) 

• माचिस (Matchstick – 1) 

• कमल गट्टा 10 ग्राम(Kamal Gatta 10 gm ) 

• साबुत धनिया (Coriander whole – 5gm)

• तोरण (Festoon of ashok leaves (ashok leaves toran)) 

• साबुत चावल 1 किलो (Whole rice 1 kg)

• पंच पात्र या 1 गिलास (plate or glass- 1 )

• आचमनी या एक चम्मच (spoon -1)

• अर्धा या जलपात्र कलश ढ़क्कन सहित (Finial with cover( earthen pot with coverlid) – 1 )

• दीप पात्र (utensil for lamp -1)

• धूप पात्र (utensil for dhoop -1 ) 

• एक पानी वाला नारियल(Coconut( with water) – 1 ) 

• लाल कपड़ा 2.5 मीटर (चौकी पर बिछाने के लिये एवं नारियल पर लपेटने के लिये ) (Red Cloth 2 (2.5 meter each) (one for small stool and one to cover coconut))

• केसर 2 ग्राम (Saffron (Kesar) 2 gm )

• कुशासन या लाल कम्बल -आसन के लिये (Mat made up with grass/kush or red blanket – for sitting)

• सफेद कपड़ा (White cloth – 2 (2.5 meter each) ) 

• सफेद चंदन (White Sandalwood – 1 packet) 

• लाल चंदन (Red Sandalwood- 1 packet)

• मिट्टी के 5, 11, 21 या अधिक छोटे दीपक (Small earthen lamp – 5 ,11,21 or more ) 

• मिट्टी का एक बडा दीपक (Big earthen lamp – 1 ) 

• पान के 11 पत्ते डंडी सहित (Betel leaves with stem – 11 ) 

• फल (ऋतु फल) (Seasonal Fruits ) 

• पंचमेवा (panchmeva( mix of cashew,raisins,date palm,coconut and peanuts )- 10 gm) 

• दूब या दुर्बा (Grass ) 

• फूल (Flower) 

• फूल माला (Garland ) 

• गणेश जी के लिये ळड्डू (Laddu for God Ganesh) 

• खुले पैसे (Change rupees) 

• मिठाई (sweets) 

• सरसो का तेल ( Mustard oil)

• साबुत हल्दी 20 ग्राम (Whole turmeric 20 gm)

• कुमकुम या गुलाल 10 ग्राम (Gulaal 10gm) 

• कलम (Ink Pen) 

• स्याही की दवात (Ink bottle )

• बही खाता (Leedger Account book) 

• तिज़ोरी या गुल्लक (Safe) 

• एक थाली आरती के लिये (Plate – for aarati) 

• कटोरी दूध दही पंचामृत के लिये (Bowl (for milk, curd, panchamrit) – 5) 

• पंचामृत – दूध,दही, शहद,घी ,शक्कर (चीनी) मिलाकर बनाये (Panchamrit – (mixture of milk, curd, honeey, ghee & sugar) ) 

• धूप का एक पैकेट (Dhoop – 1pkt ) 

• पिसी हल्दी (Turmeric powder) 

• कमल का फूल (Lotus flower ) 

• आभूषण वस्त्र (Jwellery, clothes ) 

• गंगाजल (Holy water (Ganga Jal)) 

• घंटी (Bell ) 

• गुड़ 100 ग्राम (Molasses 100 gm )

• चांदी का सिक्का (Silver coin)

• 2 थाली या चौकी (Plate or stool – 2 (थाली या चौकी-२))

 

पूजा से पूर्व की तैयारी –

• पूजा प्रारम्भ करने से पहले जलपत्र एवं कलश मे गंगा जल मिला लें । 

• ताम्बूल बनाने के लिये पान के पत्ते को उल्टा करके उस पर लौंग इलायची सुपारी एवं कुछ मीठा रखें । 

• घी का दीपक भगवान की मूर्ति के दाई ओर एवं तेल का दीपक बाई ओर रखे। धूप जल पात्र बाई ओर ही स्थापित करें।

• दो चौकी लें। यदि चौकी उपलब्ध ना हो तो थाली प्रयोग कर सकते हैं। पहले चौकी पर सफेद वस्त्र बिछायें। चौकी के ऊपरी भाग के मध्य में 卐 (स्वास्तिक या सतिया) बनायें। स्वास्तिक के बायीं ओर अर्थात् ईशाणकोण में ॐ एवं दायीं ओर अर्थात् अग्निकोण में श्री: चावल से बनायें अथवा रोली घोल कर लिखें। 

• स्वास्तिक के नीचे ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव के निमित्त तीन लम्बी ( खड़ी लकीर) लकीर ऊपर से नीचे की ओर खीचें। 

• चौकी के निचले भाग में- वायव्यकोण में नवग्रह- मण्डल हेतु चावलों के नौ पुंज या रोली से नौ बिंदु बनायें।

• नैऋत्यकोण के ऊपरी भाग में सप्तमातृका हेतु चावल से त्रिकोण में सात-सात पुंज या रोली से बिंदु बना लें। 

• निचले भाग में षोडशमातृका हेतु चावल अथवा रोली घोलकर सोलह बिंदु बनायें। 

‍‍• स्वास्तिक के ऊपर, दोने या एक छोटी कटोरी में, दो सुपारी को अलग-अलग लाल मौली लपेट कर रखें। 

• दूसरी चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर रखकर सामने वाली चौकी के दायीं ओर रखें( लक्ष्मी की मूर्ति सदैव गणेश जी के दाहिनें ओर स्थापित की जाती है)। 

• चाँदी के सिक्के को स्थापित करने के लिये एक लाल चावल की ढेरी या अष्टदल (आठ दल / खाने) बनाकर रख सकते हैं। 

• सामने वाली चौकी के बायीं ओर अर्थात् ईशानकोण (उत्तर-पूर्व) में चावल से अष्टदल (आठ दल / खाने) बनाकर, जल से पूर्ण कलश रखें। 

• कलश में दुर्बा, गंगाजल, सुपारी, हल्दीगांठ, द्र्व्य(सिक्का) डालें। उसमें आम का पल्लव(पत्ता) डालें। कलश में कलावा बांधे। पुन: उसके ऊपर चावल से भरा पात्र रखें। पात्र पर, लाल वस्त्र में लपेट कर या कलावा बांधकर नारियल रखें। कलश पर स्वास्तिक/सतिया बना दें। 

• तस्वीर अथवा मूर्तियों के बाईं ओर (अर्थत् पूजक के दाईं ओर) तेल का दीपक, धूपबत्ती तथा दाईं ओर घी का दीपक रखें। 

• प्रसाद, वस्त्र, फल, मिठाई, खील, बतासे, दीपक, भेंट सामग्री इत्यादी सामने की ओर रखें।

•दीपावली पूजन के पश्चात सभी सामग्री देवि एवं देवताओ की स्थापना को सारी रात यथा स्थान रहने दे। विसर्जन अगले दिन करे । ध्यान रहे कि गणेश लक्ष्मी जी की मूर्ति को विसर्जन नहीं करना है, एक वर्ष रखना होता है अगले वर्ष नई मूर्तियो के पूजन के बाद ही पुराने वर्ष की मूर्ति को विसर्जन करना चहिये ।

•चढ़ाई हुइ दक्षिणा किसी ब्राह्मण को दे या मंदिर में दान करे ।

 

सावधानी –

• गणपति पर तुलसी दल ना चढ़ायें ।

• श्री लक्ष्मी जी को कमल का फूल बहुत प्रिय है ।

• जमीन पर गिरा हुआ ,बासी ,कीड़ा खाया हुआ फूल न चढ़ायें ।

• टूटी फूटी मुर्तियों को नदी मे, मंदिर में या पीपल के नीचे विसर्जित करे । 

• लक्ष्मी प्राप्ति के लिये लक्ष्मी मंत्र कमलगट्टे की माला पर जपना अधिक उत्तम होता है।

• धन प्राप्ति के लिये लाल आसन उत्तम रह्ता है ।

• ध्यान रहे कि पूजा करते समय या मंत्र उच्चारण के समय हाथ कभी भी खाली ना रहे । हाथ मे फूल या चावल अवश्य रखें ।

• रक्षा सूत्र (मौली) बांधते समय हाथ मे पैसा एवं अक्षत ले खाली हाथ रक्षा सूत्र ना बांधे ।

• यदि पूजा करते समय कोइ भी चीज़ कम पड़ जाये तो आप उसकी जगह साबुत लाल चावल चढ़ा सकते है ।

माता लक्ष्मीजी के पूजन की सामग्री अपने सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए। इसमें लक्ष्मीजी को कुछ वस्तुएँ विशेष प्रिय हैं। इनका उपयोग अवश्य करना चाहिए। 

वस्त्र  में इनका प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है।

माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है। 

फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं। 

सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें। 

अनाज में चावल तथा 

मिठाई में केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य शुद्धता पूर्ण उपयुक्त है।

प्रकाश के लिए गाय का घी, तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है। 

अन्य सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए।

 

लक्ष्मी पूजन विधि :- 

मूर्ति कहाँ स्थापित करें :- 

– लक्ष्मी पूजन में जो व्यक्ति पूजा कर रहे हैं उनका मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा में होना चाहिये। 

– वह लाल आसन या कम्बल या कुश के आसन पर पत्नी तथा परिवार के साथ बैठे । 

– पूजा करते समय पत्नी हमेशा पति के दाईं ओर बैठे । यदि ब्राह्मण पूजा करा रहे हो तो उनका मुख उत्तर की ओर होना चाहिये। 

 

पवित्रीकरण करें –

पंच-पात्र में से फूल अथवा चम्मच द्वारा थोड़ा जल अपने बाएं हाथ मे लेकर दाएं हाथ की चारों अंगुलियों से पूजा की सारी सामग्री व उपस्थित सभी व्यक्तियों पर जल छिड़कते हुए लिखे हुए मंत्र का उच्चारण कर,सभी सामग्री और उपस्थित जन-समूह के साथ अपने आप को पवित्र कर लें।

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्व अवस्थांगत: अपिवा।

यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्य अभ्यन्तर: शुचिः॥

ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु,

ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु।

 

आचमन विधि :-

पुष्प या चम्मच से दाएँ हाथ में जल लें। अब “ॐ केशवाय नमः” मंत्र का उच्चारण करते हुए जल को पी लें।

फिर पुष्प या चम्मच से दाएँ हाथ में जल लें। अब “ॐ नारायणाय नमः” मंत्र का उच्चारण करते हुए जल को पी लें।

फिर पुष्प या चम्मच से दाएँ हाथ में जल लें। अब “ॐ वासुदेवाय नमः” मंत्र का उच्चारण करते हुए जल को पी लें।

फिर “ॐ हृषिकेशाय नमः” कहते हुए दाएँ हाथ के अंगूठे के मूल से होंठों को दो बार पोंछकर हाथों को धो लें।

पृथ्वी पूजन

अपने दाएँ हाथ मे पुन: थोड़ा जल लेकर लिखे हुए मंत्र का उच्चारण करते हुए जल को पृथ्वी पर छिड़कें तथा पृथ्वी पर सफेद और लाल,चंदन,पुष्प व चावल छोड़ें ।

ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।

त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम्‌॥

दीपक पूजन

अब दीपक प्रज्जवलित कर पुष्प हाथ में लेकर दीपक का ध्यान करते हुए दीप पूजन मंत्र का उच्चारण करें तथा पुष्प दीपक के पास छोड़े ।

भो दीप देवरूप: त्वं कर्मसाक्षी हि अविघ्नकृत्।

यावत् कर्म समाप्ति: स्यात् तावत् अत्र स्थिरोभव ॥

गुरु वंदना

गुरु का चित्र (गुरु न हो तो महालक्ष्मी को ही गुरु माने) चौकी पर दाएँ हाथ की ओर स्थापित करें।सर्वप्रथम गुरु के चित्र को गीले वस्त्र से पोंछे, उसके बाद रोली,धूप-दीप,चंदन,पुष्पादि चढ़ायें। फिर दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करें। गुरु: ब्रह्मा गुरु: विष्णु: गुरु: देवो महेश्वर:।

गुरु: साक्षात्परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।।

अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।

तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ।।

ॐ गुरुवे नम:। ॐ परम गुरुवे नम:।

ॐ परातार गुरुवे नम:। ॐ परमेश्टी गुरुवे नम:।

ॐ गुरु पंक्ते नम:

 

आह्वान- 

इस मंत्र से आवाहन करे

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ।। (1) 

अर्थ:- हे जातवेदा अग्निदेव आप मुझे सुवर्ण के समान पीतवर्ण वाली तथा किंचित हरितवर्ण वाली तथा हरिणी रूपधारिणी सुवर्नमिश्रित रजत की माला धारण करने वाली , चाँदी के समान धवल पुष्पों की माला धारण करने वाली , चंद्रमा के सद्रश प्रकाशमान तथा चंद्रमा की तरह संसार को प्रसन्न करने वाली या चंचला के सामान रूपवाली ये हिरण्मय ही जिसका सरीर है ऐसे गुणों से युक्त लक्ष्मी को मेरे लिए बुलाओ ।।

 

आसन –

इस मंत्र से आसन समर्पण करे

ॐ तां म आ व ह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।। (2)

अर्थ:- हे जातवेदा अग्निदेव आप उन जगत प्रसिद्ध लक्ष्मी जी को मेरे लिए बुलाओ जिनके आवाहन करने पर मै सुवर्ण, गौ, अश्व और पुत्र पौत्रदि को प्राप्त करूँ ।।

 

पाद्द  – 

इस मंत्र से पाद्द समर्पण करे

ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद्प्रमोदिनीम् ।

श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ।। (3)

अर्थ:- जिस देवी के आगे और मध्य में रथ है अथवा जिसके सम्मुख घोड़े रथ से जुते हुए हैं, ऐसे रथ में बैठी हुई, हथिनियों की निनाद से संसार को प्रफुल्लित करने वाली देदीप्यमान एवं समस्त जनों को आश्रय देने वाली लक्ष्मी को मैं अपने सम्मुख बुलाता हूँ । देदीप्यमान तथा सबकी आश्रयदाता वह लक्ष्मी मेरे घर में सर्वदा निवास करे ।।

 

अर्ध्य – 

इस मंत्र से अर्ध्य समर्पण करे

ॐ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।

पद्मेस्थितां पदमवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ।। (4)

अर्थ:- जिसका स्वरूप वाणी और मन का विषय न होने के कारण अवर्णनीय है तथा जो मंद हास्ययुक्ता है, जो चारों ओर सुवर्ण से ओत प्रोत है एवं दया से आर्द्र ह्रदय वाली देदीप्यमान हैं । स्वयं पूर्णकाम होने के कारण भक्तो के नाना प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने वाली । कमल के ऊपर विराजमान, कमल के सदृश्य गृह मैं निवास करने वाली संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने पास बुलाता हूँ ।।

 

आचमन – 

इस मंत्र से आचमन करावे

ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्ती श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।

तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।। (5)

अर्थ:- चंद्रमा के समान प्रकाश वाली प्राकृत कान्तिवाली, अपनी कीर्ति से देदीप्यमान, स्वर्ग लोक में इन्द्रादि देवों से पूजित अत्यंत दानशीला, कमल के मध्य रहने वाली, सभी की रक्षा करने वाली एवं अश्रयदाती, जगद्विख्यात उन लक्ष्मी को मैं प्राप्त करूँ इसलिए मैं तुम्हारा आश्रय लेता हूँ ।।

 

स्नान – 

इस मंत्र से स्नान करावे

ॐ आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।

तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्य अलक्ष्मीः ।। (6)

अर्थ:- हे सूर्य के समान कांति वाली देवी आपके तेजोमय प्रकाश से बिना पुष्प के फल देने वाला एक वृक्ष विशेष उत्पन्न हुआ जिसे विल्व वृक्ष कहते हैं । आपके हाथ से बिल्व का वृक्ष उत्पन्न हुआ, वह बिल्व वृक्ष का फल मेरे बाह्य और आभ्यन्तर की दरिद्रता को नष्ट करें ।।

 

वस्त्र – 

इस मंत्र से वस्त्र चढ़ावे

उपैतु मां देवसखः किर्तिश्च मणिना सह ।

प्रदुभुर्तॉऽस्मि रास्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिंमृद्धिम ददातु मे ।। (7)

अर्थ:- हे लक्ष्मी ! देवसखा अर्थात श्री महादेव के सखा (मित्र ) इन्द्र, कुबेरादि देवताओं की अग्नि मुझे प्राप्त हो अर्थात मैं अग्निदेव की उपासना करूँ । एवं मणि के साथ अर्थात चिंतामणि के साथ या कुबेर के मित्र मणिभद्र के साथ या रत्नों के साथ, कीर्ति कुबेर की कोषशाला या यश मुझे प्राप्त हो अर्थात धन और यश दोनों ही मुझे प्राप्त हों । मैं इस संसार में उत्पन्न हुआ हूँ, अतः हे लक्ष्मी आप यश और ऐश्वर्य मुझे प्रदान करें ।।

 

उपवस्त्र – 

इस मंत्र से उपवस्त्र(चोली) चढ़ावे 

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठमलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।

अभूतिमसमृद्धि च सर्वां निर्गुद में गृहात् ।।

अर्थ:- भूख एवं प्यास रूप मल को धारण करने वाली एवं लक्ष्मी की ज्येष्ठ भगिनी दरिद्रता मुझसे सदा ही दूर रहें, ऐसी प्रार्थना करता हूँ । हे लक्ष्मी आप मेरे घर में आने वाले ऐश्वर्य तथा धन को बाधित करने वाले सभी विघ्नों को दूर करें ।।

 

गंध – 

इस मंत्र से चन्दन चढ़ावे

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।

ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप हवये श्रियम् ।। 

अर्थ:- सुगन्धित पुष्प के समर्पण करने से प्राप्त करने योग्य, किसी से भी न दबने योग्य, धन धान्य से सर्वदा पूर्ण कर गौ, अश्वादि पशुओं की समृद्धि देने वाली, समस्त प्राणियों की स्वामिनी तथा संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने घर परिवार में सादर बुलाता हूँ ।।

 

सोभाग्यद्रव्य   – 

इस मंत्र से सोभाग्यद्रव्य(सिन्दूर आदि ) चढ़ावे

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।

पशुनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ।। 

अर्थ:- हे लक्ष्मी ! मैं आपके प्रभाव से मानसिक इच्छा एवं संकल्प तथा वाणी की सत्यता, गौ आदि पशुओ के रूप (अर्थात दुग्ध -दधिआदि) एवं अन्नों के रूप (अर्थात भक्ष्य,भोज्य, चोष्य, चतुर्विध भोज्य पदार्थ) इन सभी पदार्थो को प्राप्त करूँ । सम्पति और यश मुझमें आश्रय ले अर्थात मैं लक्ष्मीवान एवं कीर्तिमान बनूँ ऐसी कृपा करें ।।

 

पुष्प –

 इस मंत्र से पुष्प चढ़ावे

कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम ।

श्रियम वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।

अर्थ:- हे कर्दम आप अपनी माँ लक्ष्मी से हमारे लिए ही नहीं, अपितु हमारे सभी परिवार तथा हमारी समस्त प्रजा के कल्याण के लिए हमारे तरफ से प्रार्थना करें, कि माँ लक्ष्मी हम सभी के कल्याणार्थ हमारे घर आयें, हमारे यहाँ आप अपनी माँ के साथ रहें ताकि हम भी सुख पूर्वक निवास करें । हे कर्दम ! आपसे हमारी प्रार्थना है कि आप हमारे घर आयें, हमारे यहाँ निवास करें, क्योंकि आपके हमारे यहाँ आने से माँ लक्ष्मी को मेरे यहाँ आना ही पड़ेगा । हे कर्दम ! मेरे घर में लक्ष्मी निवास करें, केवल इतनी ही प्रार्थना नहीं है अपितु कमल की माला धारण करने वाली संपूर्ण संसार की माँ लक्ष्मी को मेरे घर में आप निवास कराओ ।।

 

धुप – 

इस मंत्र से धुपबती दिखावे

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस् मे गृहे ।

नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ।।

अर्थ:- जिस प्रकार कर्दम की संतति ‘ख्याति ‘से लक्ष्मी अवतरित हुई उसी प्रकार कल्पान्तर में भी समुन्द्र मंथन द्वारा चौदह रत्नों के साथ लक्ष्मी का भी आविर्भाव हुआ है । इसी अभिप्राय से कहा जा सकता है कि वरुण देवता स्निग्ध अर्थात मनोहर पदार्थो को उत्पन्न करें । (पदार्थो कि सुंदरता ही लक्ष्मी है । लक्ष्मी के आनंद, कर्दम ,चिक्लीत और श्रित – ये चार पुत्र हैं । इनमें ‘चिक्लीत’ से प्रार्थना की गई है कि हे चिक्लीत नामक लक्ष्मी पुत्र ! तुम मेरे गृह में निवास करो । केवल तुम ही नहीं अपितु दिव्यगुण युक्त सर्वाश्रयभूता अपनी माता लक्ष्मी को भी मेरे घर में निवास कराओ ।।

 

दीप –

 इस मंत्र से दीपक दिखावे

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंडगलां पदमालिनीम् ।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह ।। 

अर्थ:- हे अग्निदेव ! तुम मेरे घर में पुष्करिणी अर्थात दिग्गजों (हाथियों ) के सूंडाग्र से अभिषिच्यमाना (आर्द्र शरीर वाली) पुष्टि को देने वाली अथवा पुष्टिरूपा रक्त और पीतवर्णवाली, कमल कि माला धारण करने वाली संसार को प्रकाशित करने वाली प्रकाश स्वरुप लक्ष्मी को बुलाओ ।।

 

नैवेध – 

इस मंत्र से नैवेध समर्पण करे

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।

सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह ।। 

अर्थ:- हे अग्निदेव ! तुम मेरे घर में भक्तों पर सदा दयार्द्रर्चित अथवा समस्त भुवन जिसकी याचना करते हैं, दुस्टों को दंड देने वाली अथवा यष्टिवत् अवलंबनीया (सारांश यह है, कि ‘जिस प्रकार लकड़ी के बिना असमर्थ पुरुष चल नहीं सकता, उसी प्रकार लक्ष्मी के बिना संसार का कोई भी कार्य नहीं चल सकता), सुन्दर वर्ण वाली एवं सुवर्ण कि माला वाली सूर्यरूपा (अर्थात जिस प्रकार सूर्य अपने प्रकाश और वृष्टि द्वारा जगत का पालन -पोषण करता है उसी प्रकार लक्ष्मी ,ज्ञान और धन के द्वारा संसार का पालन -पोषण करती है) अतः प्रकाश स्वरूपा लक्ष्मी को हमारे लिए बुलाओ ।।

 

दक्षिणा – 

इस मंत्र से दक्षिणा, आरती एवं पुष्पांजलि करे

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मी मन पगामिनीम् ।

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ।। 

अर्थ:- हे अग्निदेव ! तुम मेरे यहाँ उन जगद्विख्यात लक्ष्मी को जो मुझे छोड़कर अन्यत्र न जाने वाली हों, उन्हें बुलाओ । जिन लक्ष्मी के द्वारा मैं सुवर्ण, उत्तम ऐश्वर्य, गौ, दासी, घोड़े और पुत्र -पौत्रादि को प्राप्त करूँ अर्थात स्थिर लक्ष्मी को प्राप्त करूँ ।।

 

नमस्कार – 

इस मंत्र से नमस्कार करे

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।

सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ।। 

अर्थ:- जो मनुष्य लक्ष्मी कि कामना करता हो, वह पवित्र और सावधान होकर प्रतिदिन अग्नि में गौघृत का हवन और साथ ही श्रीसूक्त कि पंद्रह ऋचाओं का प्रतिदिन पाठ करें ।।

इसके पश्चात लक्ष्मी जी की आरती और चालीसा पाठ करना चाहिए

दिवाली पूजा के लिए शास्त्र – 

स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या के दिन प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होकर सभी देवताओं की पूजा करनी चाहिए। इस दिन संभव हो तो दिन में भोजन नहीं करना चाहिए। परिवार के सदस्यों पर और घर में जल छिड़कना चाहिए। सभी छोटे दीप को घर के चौखट, खिड़कियों व छतों पर जलाकर रखना चाहिए तथा बड़े दीपक को रात भर जलता हुआ घर के पूजा स्थान पर रख देना चाहिए।