शादी में समाज को भोज न कराने पर गरीब परिवार को मिली ये सजा, प्रसाशन से लगाई न्याय की गुहार | The punishment for the poor family has not been given banquet to the society at the wedding.

शादी में समाज को भोज न कराने पर गरीब परिवार को मिली ये सजा, प्रसाशन से लगाई न्याय की गुहार

शादी में समाज को भोज न कराने पर गरीब परिवार को मिली ये सजा, प्रसाशन से लगाई न्याय की गुहार

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:30 PM IST, Published Date : July 12, 2019/6:25 am IST

महासमुंद। शासन-प्रशासन शादियों में खर्च कम करने के लिए जहां सामूहिक विवाह को बढावा दे रहा है, वहीं समाज के ठेकेदार किस प्रकार समाजिक परंपराओं के नाम पर लोगों को परेशान करते हैं, उसकी बानगी महासमुंद जिले में देखने को मिली है। समाज के पदाधिकारियों ने एक गरीब को इसलिए 21 हजार का अर्थदण्ड व समाज को भोज कराने का तुगलकी फरमान सुनाया क्योंकि आर्थिक तंगी के कारण उस परिवार ने अपने ही समाज के युवती के साथ सामाजिक रीति रिवाज के बजाए आर्यसमाज के मंदिर में जाकर शादी कर ली।

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समाज के इस तुगलकी फरमान के बाद पीडित पक्ष अब न्याय की गुहार लगा रहा है, वहीं समाज के पदाधिकारी आरोपों को निराधार बताते हुए केवल भोज के लिए कहने की बात कह रहे हैं। बता दें कि महासमुंद के तुमगांव नगर पंचायत के वार्ड नं0 13 के रहने वाले नागेश्वर निर्मलकर ने आर्थिक तंगी के कारण अपनी शादी समाज की युवती से 3 दिसंबर 2018 को आर्य समाज के मंदिर रायपुर में कर ली। उसके बाद रायपुर नगर निगम में शादी का पंजीयन भी करावा लिया।

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अब सात महीने बाद 8 जून 2019 को समाज का चपरासी नागेश्वर के घर आता है और समाज के बैठक में बुलाये जाने की जानकारी देता है । नागेश्वर अपने पिता रमेश को लेकर सामाजिक बैठक में जाता है, जहाॅ कथित समाज के ठेकेदार नागेश्वर की शादी सामाजिक रीति रिवाज से नही करने एवं समाज को भोज नही देने के कारण अवैध बताते हुवे रमेश पर 21 हजार का अर्थ दण्ड व समाज के लोगों को भोज कराने का फैसला सुना देते हैं और इसके लिए परिवार को दो माह का समय देते हैं ।

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गरीब परिवार जब अर्थदण्ड व समाज को भोज कराने में असमर्थता जाहिर करते हैं तो समाज के ठेकेदार रमेश के परिवार को समाज से बहिकृत कर देने की धमकी देते हैं । रमेश के द्वारा मिन्नत करने पर अर्थ दण्ड 21 हजार रूपये से घटाकर 16 हजार रूपये करने के बाद समाज के पदाधिकारी वहाॅ से चले जाते हैं। उसके बाद पीडित रमेश अपने प्रदेश अध्यक्ष से गुहार लगाता है। प्रदेश अध्यक्ष के समझाने के बाद भी तुमगांव के पदाधिकारी नही मानते हैं। तब पीड़ित ने पुलिस महानिदेशक से गुहार लगाई ।

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इस पूरे मामले में एसपी का कहना है कि प्राथमिक जांच में अर्थदण्ड लगाना व बहिष्कृत करना सही पाये जाने पर समाज के आठ लोगों पर भादवि 385,34 एवं नागरिक अधिकार सरंक्षण अधिनियम 1955 की धारा 7 (2) के तहत मामला पंजीबद्ध कर विवेचना की जा रही है । 21 वीं सदी में इस तरह की सामाजिक कुरितियों का सामने आना और पीड़ित पक्ष का इंसाफ के लिए गुहार लगाना ये साबित करता है कि समाज के ठेकेदार आज भी कानून को ठेंगा दिखाने से बाज नही आ रहे हैं ।

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