राजधानी स्थित कंकाली माता का है खास महत्त्व , रहस्यों से भरी है इसकी कहानी | tour and travels raipur :kankali mandir

राजधानी स्थित कंकाली माता का है खास महत्त्व , रहस्यों से भरी है इसकी कहानी

राजधानी स्थित कंकाली माता का है खास महत्त्व , रहस्यों से भरी है इसकी कहानी

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 11:04 AM IST, Published Date : April 8, 2019/1:12 pm IST

पर्यटन डेस्क। रायपुर स्थित कंकाली माता मंदिर वैसे तो घनी आबादी के बीचो बीच बसा है लेकिन इसकी ख्याति तांत्रिक पीठ के रूप में है। मंदिर को लेकर कई किवदंतियां है।कहा जाता है कि कंकाली मठ के पहले महंत कृपालु गिरी को देवी ने सपने में दर्शन देकर कहा था कि मुझे मठ से हटाकर तालाब के किनारे स्थापित करो देवी की बात मानकर ही महंत ने तालाब के किनारे देवी की अष्टभुजी प्रतिमा को प्रतिष्ठित करवाया।कंकाली माता मंदिर आने वाला हर शख्स देवी से जुड़े चमत्कारों को मानता है। नवरात्रि के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मंदिर में प्रवेश करते ही सबसे पहले भगवान भैरवनाथ के दर्शन होंगे जो अस्त्र-शस्त्र के साथ देवी के गर्भगृह की रखवाली कर रहे हैं।

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भारत में अखाड़ा और नागा साधुओं की दुनिया हमेशा से रहस्यमयी रही है। नागा साधुओं के तंत्र-मंत्र, इनकी सिद्धी और उपासना हमेशा रहस्यों से भरी हुई होती है। रायपुर के कंकाली माता मंदिर और कंकाली मठ का इतिहास भी नागा साधुओं की साधना से जुड़ा हुआ है। नागा साधुओं ने ही शमशान घाट पर देवी के इस मंदिर की स्थापना की थी। 13 वीं शताब्दी में दक्षिण भारत से कुछ नागा साधुओं की टोली यहां से गुजरी। तब इस जगह पर शमशान घाट हुआ करता था। नागा साधुओं ने अपने सिद्धि और तप के लिए यहां मठ की स्थापना की।

17 वीं शताब्दी में कृपालु गिरी इस मठ के पहले महंत हुए। कृपालु गिरि के बाद उनके शिष्य भभुता गिरी ने मंदिर की बागडोर संभाली और उनके बाद उनके शिष्य शंकर गिरि ने..कंकाली मंदिर में एक और मान्यता है कि मंदिर प्रतिष्ठा के बाद महंत कृपाल गिरि को कंकाली देवी ने साक्षात कन्या के रूप में दर्शन दिया था। लेकिन महंत देवी को नहीं पहचान पाए और देवी का उपहास कर बैठे जब उनको अपनी गलती का अहसास हुआ तब महंत कृपालु गिरी ने मंदिर के बगल में ही जीवित समाधी ले ली। महंत के समाधि स्थल के पास ही शिवलिंग की स्थापना की गई है।

कंकाली मंदिर को लेकर एक मान्यता ये भी है कि मंदिर के स्थान पर पहले शमशान था जिसकी वजह से दाह संस्कार के बाद हड्डियां कंकाली तालाब में डाल दी जाती थी। कंकाल से कंकाली तालाब का नामकरण हुआ। कंकाली तालाब में लोगों की गहरी आस्था है। ऐसी मान्यता है कि इस तालाब में स्नान करने मात्र से त्वचा संबंधी बीमारी से निजात मिल जाती है। कंकाली तालाब पर कई शोध भी हुए हैं। जिसमें ये कहा गया है कि शमशान होने की वजह से मृतक अस्थि कंकाल का विसर्जन तालाब में किया जाता था। और यही वजह है कि हड्डी के फास्फोरस के अंश घुलने की वजह से इस तालाब में नहाने से चर्मरोग दूर होते हैं। श्रद्धालु पहले कंकाली तालाब में स्नान करते हैं। फिर इसी मंदिर में झाड़ू चढ़ाते हैं जिससे उन्हे चर्म रोग से मुक्ती मिलती है। आज भी घर-घर में घट स्थापना के दौरान बोए जाने वाला जवारा और प्रज्ज्वलित ज्योति का विसर्जन रायपुर शहर के लोग कंकाली तालाब में ही करते हैं। तालाब में विसर्जन करने आने वाले मन्नतधारी श्रद्धालु अपने पूरे शरीर पर नुकीले सांग-बाणा धारण कर आते हैं और तालाब के पानी को शरीर पर छिड़कते हैं।

 

गुंबद,मंडप, स्तंभ,गर्भगृह और ये पाषाण प्रतिमाएं पुरातन दौर की कहानियां कहती हैं।500 साल पुराने देवी के इस मंदिर की वास्तु कला में तांत्रिक पीठ होने के साक्ष्य मिलते हैं..तालाब के किनारे ऊंचाई पर बने देवी मंदिर को का निर्माण 17 वीं सदी में किया गया था..मंदिर के ऊंचे खंभे मिट्टी की कलाकृतियां और प्राचीन मूर्तियां आपको पुरातन दौर में ले चलेंगी।मंदिर के गर्भगृह की दीवारों पर गणेश, ब्रह्मा, विष्णु और शिव प्रतिमा स्थापित है.क्योंकि इस मंदिर का निर्माण तांत्रिक पीठ के रूप में हुई थी।इसलिए तंत्र मंत्र के साक्ष्य भी मंदिर में मौजूद हैं।मंदिर के दाहिने तरफ भगवान शिव का मंदिर है। शिवलिंग कितना पुराना है इस बारे में तो ज्यादा जानकारी नहीं पर मंदिर की बनावट और मूर्तियों को देखकर इनकी प्राचीनता का अंदाजा लगाया जा सकता है। वर्तमान के साथ कदमताल करते हुए वैसे तो मंदिर में कई बदलाव हो चुके हैं लेकिन बावजूद उसके आज भी यहां की वास्तुकला में 17वीं सदी के नजारे दिखाई देते हैं।इसीलिए कंकाली माता मंदिर धार्मिक दृष्टि से ही नहीं। वास्तुकला की दृष्टि से भी अनुपम है । इसका भव्य द्वार देखने वालों के ह्दय में मानो बस जाता है ।